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सूखी जगह पर बारिश... वर्षा वाले स्थान पर सूखा, भारत में तेजी से बदल रहा मौसम, थिंक टैंक की स्टडी

एक नई स्टडी में खतरनाक मौसमी बदलाव का खुलासा हुआ है. पिछले दस साल में देश के 55% तहसीलों में मॉनसूनी बारिश बढ़ी है. इससे फ्लैश फ्लड का खतरा भी बढ़ा है. सूखे जगहों पर बारिश हो रही है. जहां बारिश हो रही थी, वहां पर सूखा पड़ रहा है. मैदानी इलाकों, पूर्वोत्तर भारत, हिमालय के इलाकों के 11% तहसीलों में कम बारिश हुई है.

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15 जुलाई 2023 को नई दिल्ली की यमुना नदी के ऊपर मंडराते मॉनसूनी बादल. (फोटोः रॉयटर्स)
15 जुलाई 2023 को नई दिल्ली की यमुना नदी के ऊपर मंडराते मॉनसूनी बादल. (फोटोः रॉयटर्स)

भारत के अधिकांश हिस्से में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून वर्षा में बढ़ोतरी देखी जा रही है. पर्यावरण के लिए काम करने वाले थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) की एक स्टडी के मुताबिक देश की 55% तहसीलों या सब-डिस्ट्रिक्ट में पिछले दशक यानी 2012-2022 में बारिश में 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. 

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इसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ भाग जो पारंपरिक रूप से सूखे रहते हैं, वहां ज्यादा बारिश हो रही है. इनमें से लगभग एक-चौथाई तहसीलों में जून से सितंबर के दौरान 30 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है. 

‘डिकोडिंग इंडियाज चेंजिंग मॉनसून पैटर्न’ (Decoding India’s Changing Monsoon Patterns) अध्ययन में देश की 4,500 से अधिक तहसीलों में 40 वर्षों (1982-2022) के दौरान हुई बारिश की माइक्रो-एनालिसिस किया है. इसमें पता चला कि पिछले 10 साल में मॉनसून पैटर्न में अनियमित बदलाव आया है. इसकी मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन (Climate Change) है.  

India Monsoon Pattern
पिछले दस सालों में भारतीय मॉनसून के दौरान मौसमी बदलाव काफी देखने को मिला है. (मैपः CEEW)

कम समय मे भारी बारिश... नई समस्या बनकर सामने आई है
 
CEEW की स्टडी से यह भी पता चला है कि इन तहसीलों में कम समय में भारी बारिश हो रही है. इसी दौरान बारिश में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है. इससे अचानक आने वाली बाढ़ की दिक्कत होती है. यानी फ्लैश फ्लड (Flash Flood) आते हैं. पिछले दशक में उससे पहले के 30 वर्षों की तुलना में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारत की 31% तहसीलों में प्रति वर्ष भारी बारिश वाले दिनों में चार या अधिक दिनों की वृद्धि हुई है. 

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2023 को वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म साल घोषित किया गया था. 2024 में भी यही हाल रहने वाला है. ऐसे में मौसम की चरम घटनाओं (Extreme Weather) में बढ़ोतरी देख सकते हैं. 2023 में चंडीगढ़ में करीब आधी सालाना बारिश सिर्फ 50 घंटों में हुई थी. वहीं, जून में केरल को बारिश में करीब 60% घाटे का सामना करना पड़ा था. 

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जहां सबसे ज्यादा खेती-बाड़ी, वहां कम हो रही है बारिश

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मॉनसून बेहद जरूरी है. पूरी खेती-बाड़ी इसी से जुड़ी है. भारत की आधी से अधिक आबादी को रोजगार खेती-बाड़ी से मिलता है. लेकिन इस स्टडी में पता चला है कि पिछले दशक में देश की सिर्फ 11% तहसीलों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसूनी बारिश में कमी हुई है. 

ये सभी तहसीलें वर्षा आधारित सिंधु-गंगा के मैदान, पूर्वोत्तर भारत और ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में स्थित हैं. ये क्षेत्र भारत के कृषि उत्पादन के लिए अति-महत्वपूर्ण हैं. यहां नाजुक पारिस्थितिकी-तंत्र (fragile ecosystems) है, जो जलवायु की चरम घटनाओं के प्रति संवेदनशील है. 

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मॉनसूनी बारिश का महीनों के हिसाब से बंटना भी जरूरी

यह भी देखना जरूरी है कि बारिश में हुई बढ़ोतरी सभी मौसमों और महीनों में अच्छी तरह से बंटी या फैली है कि नहीं.  दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से बारिश में कमी का सामना करने वाली तहसीलों में से 87% बिहार, उत्तराखंड, असम और मेघालय जैसे राज्यों में हैं. इन तहसीलों में जून-जुलाई में कम बारिश हुई. ये महीने खरीफ फसलों की बुआई के लिए जरूरी होते हैं. दूसरी तरफ, 48% तहसीलों में अक्टूबर में बारिश में 10 प्रतिशत ज्यादा हुई है. इसके पीछे उपमहाद्वीप से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का देरी से वापस जाना जिम्मेदार हो सकता है. इसका सीधा असर रबी फसलों की बुआई पर पड़ता है.

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मौसम के पैटर्न में भी आया है बड़ा बदलाव
 

यह रिपोर्ट अक्टूबर से दिसंबर तक उत्तर-पूर्व मॉनसून में बदलते पैटर्न को भी दिखाती है, जो प्रायद्वीपीय भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है. पिछले दशक में तमिलनाडु की लगभग 80 प्रतिशत, तेलंगाना की 44 फीसदी और आंध्र प्रदेश की 39% तहसीलों में उत्तर-पूर्व मॉनसून से बारिश में 10% से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. इसी दौरान ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ महाराष्ट्र और गोवा में भी बारिश में बढ़ोतरी हुई है.  

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पिछले 40 वर्षों में भारत के करीब 30 प्रतिशत जिलों में बारिश की कमी वाले वर्षों और 38 प्रतिशत जिलों में बारिश की अधिकता वाले वर्षों की संख्या बढ़ी है. इनमें से नई दिल्ली, बेंगलुरु, नीलगिरी, जयपुर, कच्छ और इंदौर जैसे 23 प्रतिशत जिलों में कम और ज्यादा बारिश वाले दोनों प्रकार के वर्षों की संख्या भी बढ़ी है. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट? 

CEEW के सीनियर प्रोग्राम लीड डॉ. विश्वास चितले ने बताया कि केंद्र सरकार को बढ़ती अनियमित बारिश के पैटर्न को देखते हुए अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना होगा. भविष्य में ऐसी घटनाओं से सुरक्षित बनाने पर ध्यान देना होगा. यह स्टडी न केवल पूरे भारत में 40 वर्षों के दौरान दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी मॉनसून के उतार-चढ़ावों की जानकारी देता है, बल्कि स्थानीय स्तर पर जोखिम के आकलन के लिए डिसिजन मेकर्स को तहसील स्तर की बारिश की जानकारी देता है.    

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इस स्टडी के रिसर्च एनालिस्ट श्रवण प्रभु ने बताया कि भारत में सूखे और बाढ़ जैसी एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स का मॉनसून से सीधा संबंध है. भारतीय मॉनसून काफी उतार-चढ़ाव वाला रहता है. लेकिन पिछले दस साल में इसमें तेजी आई है. मौसम का पैटर्न बदला है. सूखे वाली जगहों पर बारिश, बारिश वाली जगहों पर सूखा. 

इन उभरती हुई चुनौतियों का ढंग से सामना करने के लिए, कृषि, जल और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर मॉनसून के बदलाव के प्रभावों का आकलन होना चाहिए. इसे सभी स्तरों पर - राज्यों से लेकर जिलों तक- जलवायु कार्य योजनाओं में जोड़ा जाना चाहिए. 

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