Vikram Lander ने 17 अगस्त 2023 को प्रोपल्शन मॉड्यूल का साथ छोड़ दिया था. उसके बाद से वह उसके आगे-आगे चल रहा था. आज उसने प्रोपल्शन मॉड्यूल वाले रास्ते को छोड़कर दूसरा रास्ता पकड़ लिया है. यह रास्ता उसे चांद के नजदीक ले जाएगा. 18 अगस्त 2023 की दोपहर तीन बजकर 50 मिनट से पहले विक्रम लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल 153 km x 163 km की ऑर्बिट थे.
इसके बाद विक्रम लैंडर 113 km x 157 km की ऑर्बिट में आ गया. अब इसकी दूरी चांद की सतह से मात्र 113 किलोमीटर बची है. यानी विक्रम 113 किलोमीटर वाले पेरील्यून और 157 किलोमीटर वाले एपोल्यून में है. पेरील्यून यानी चांद की सतह से कम दूरी. एपोल्यून यानी चांद की सतह से ज्यादा दूरी. ये बात तो कल ही पक्की हो गई थी कि प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होकर विक्रम लैंडर गोलाकार ऑर्बिट में नहीं घूमेगा.
इस समय विक्रम लैंडर उल्टी दिशा में घूम रहा है. यानी रेट्रोफायरिंग कर रहा है. विक्रम लैंडर अब अपनी ऊंचाई कम करने के साथ-साथ गति भी धीमी कर रहा है. अगली डीबूस्टिंग (Deboosting) 20 अगस्त 2023 की देर रात करीब 2 बजे के आसपास होगी. तैयारी ये है कि अगली डीबूस्टिंग के बाद विक्रम लैंडर चंद्रमा से मात्र 24 से 30 km की दूरी पर पहुंच जाए.
मिशन चंद्रयान-3 से जुड़ी स्पेशल कवरेज देखने के लिए यहां क्लिक करें
चांद के चारों तरफ चंद्रयान-3 का आखिरी ऑर्बिट मैन्यूवर 16 अगस्त 2023 को किया गया था. जब लॉन्चिंग हुई थी, तब इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 को 100 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट में लाएंगे. उसके बाद प्रोपल्शन और विक्रम लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे. लेकिन इस बार ऐसा हुआ नहीं.
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 18, 2023
The Lander Module (LM) health is normal.
LM successfully underwent a deboosting operation that reduced its orbit to 113 km x 157 km.
The second deboosting operation is scheduled for August 20, 2023, around 0200 Hrs. IST #Chandrayaan_3#Ch3 pic.twitter.com/0PVxV8Gw5z
2019 में भी चंद्रयान-2 को 100 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट में डालने की बात हुई थी. लेकिन तय प्लान के हिसाब से सारे काम नहीं होते. लैंडिंग से पहले चंद्रयान-2 की आखिरी ऑर्बिट 119 km x 127 km थी. यानी कि ऑर्बिट में मामूली सा अंतर रहता है. इस अंतर से किसी तरह की परेशानी नहीं होती.
एक बार जब विक्रम लैंडर को 30 km की ऑर्बिट मिल जाएगी, तब शुरू होगा इसरो के लिए सबसे कठिन चरण. यानी सॉफ्ट लैंडिंग. चांद के एकदम नजदीक 30 km की दूरी पर आने के बाद विक्रम की गति को कम करना. उसके लिए सही जगह खोजना. सही गति में लैंडिंग कराना. वह भी पौने चार लाख किलोमीटर दूर से. यह सारा काम बेहद जटिल और कठिन होने वाला है.