1. चंद्रयान-3 के जरिए चांद पर उतरने वाला दुनिया का कौन सा देश बना भारत?
एकदम स्पष्ट है कि भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है. जबकि, दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बन चुका है. इससे पहले अमेरिका ने 11 सॉफ्ट लैंडिंग की. उसका सर्वेयर-7 यान दक्षिणी ध्रुव के थोड़ा करीब गया था. लेकिन ज्यादातर चांद की भूमध्यरेखा के आसपास और दो उत्तरी गोलार्ध में की तरफ थे.
रूस (तब सोवियत संघ) ने 8 सॉफ्ट लैंडिंग की है. सभी भूमध्यरेखा के आसपास या फिर उत्तरी गोलार्ध के करीब थे. चीन के तीन प्रोजेक्ट चांद पर गए हैं. चांगई-3 और 5 चांद के उत्तरी ध्रुव के आसपास था. जबकि चांगई-4 चांद के पिछले इलाके (Far Side) की तरफ गया था. भारत दुनिया का इकलौता देश है, जिसने दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग कराई है.
2. कितने दिन तक काम करेगा Chandrayaan-3 का लैंडर-रोवर?
Chandrayaan-3 का लैंडर यानी विक्रम और रोवर यानी प्रज्ञान चांद पर 14 या 15 दिन काम करेंगे. ये दिन धरती के हिसाब से हैं. क्योंकि अगले 14-15 दिनों तक चांद पर सूरज की रोशनी पड़ती रहेगी. जैसे ही चांद के उस हिस्से सूरज की रोशनी हटेगी, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर बंद हो जाएंगे. दोबारा रोशनी पड़ने पर फिर से काम कर सकते हैं.
3. दक्षिणी ध्रुव के पास कहां उतरा है चंद्रयान-3 का लैंडर?
यहां मौजूद Video में आप देख सकते हैं कि चंद्रयान-3 कहां से लैंडिंग शुरू कर रहा है. कहां पर जाकर वह लैंड हो रहा है. इसी यात्रा को 15 से 20 मिनट का टेरर कहा गया था. आप इस वीडियो को ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि, जब सूरज की रोशनी चांद के दाहिनी तरफ वाले हिस्से पर पड़ने लगी. तब चंद्रयान-3 के लैंडर ने लैंडिंग शुरू की.
वह दक्षिणी ध्रुव के पास जाकर लैंड करता है. न कि दक्षिणी ध्रुव पर. हम लोग आम बोलचाल की भाषा में लंबी बातों या लंबे वाक्यों से बचते हैं. इसलिए लोग कह देते हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर उतरा. असल में वह दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग कर चुका है. जहां पर सूरज की रोशनी पड़ती है. ताकि उसका सोलर पैनल चार्ज हो सके.
अगर लैंडर दक्षिणी ध्रुव पर उतरता. तो वहां के माइनस 200 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा के तापमान में काम करना बंद कर देता. ऐसे में इस प्रोजेक्ट का कोई मतलब नहीं बनता. अंधेरे में काम करना आसान नहीं होता. इसलिए विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उस जगह उतारा गया है, जहां पर सूरज की रोशनी जाती है.
4. किसे होगा क्या फायदा?
देश को ... दुनिया में अब तक चांद पर सिर्फ तीन देश सफलतापूर्वक उतर पाए थे. अमेरिका, रूस (तब सोवियत संघ) और चीन. अब भारत भी उतर चुका है. भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन चुका है. देश का नाम दुनियाभर में ऊंचा हुआ है. क्योंकि सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक खुद बनाना और उसे सफलतापूर्वक पूरा करना ये किसी देश के लिए आसान नहीं होता. अब तो भारत चांद दक्षिणी ध्रुवी इलाके में पहुंचने वाला पहला देश भी बन चुका है.
ISRO को ... चंद्रयान-3 की सफलता ने इसरो का नाम नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बराबर कर दिया है. इसरो अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है. अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है. एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है. चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा. चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है. उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी. मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है.
वैज्ञानिकों को ... कुल मिलाकर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करना शुरू कर चुके हैं. इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए डेटा और जानकारी मिलेगी. रिसर्च करने में आसानी होगी.
आम आदमी को ... चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. रक्षा संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. नक्शा बनाने वाले सैटेलाइट्स में होता है. इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है. संचार व्यवस्थाएं विकसित करने में मदद मिलती है. निगरानी आसान हो जाती है.
5. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी है या नहीं?
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जमा हुआ पानी (Frozen Water) होने की संभावना है. ऐसा दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां और निजी कंपनियां मानती हैं. इसका मतलब ये है कि भविष्य में पानी वाली जगह के आसपास मून कॉलोनी बनाई जा सकती है. चांद पर खनन का काम शुरू हो सकता है. यहीं से मंगल ग्रह के लिए मिशन भेजे जा सकते हैं.
2008 में ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने बताया कि चांद पर मौजूद ज्वालामुखीय ग्लास के अंदर हाइड्रोजन फंसा मिला है. 2009 में Chandrayaan-1 में लगे नासा के एक यंत्र ने चांद की सतह पर पानी की खोज की. उसी साल नासा का प्रोब चांद के दक्षिणी ध्रुव से टकराया. उसने सतह के नीचे पानी होने की जानकारी दी.
नासा का 1998 में भेजा गया लूनर प्रॉसपेक्टर मिशन भी इस बात की पुष्टि कर चुका है कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ जमा है. खासतौर से उन गड्ढों में जहां पर सूरज की रोशनी कभी पड़ी ही नहीं. अगर चांद पर पानी की खोज होती है, तो इससे भविष्य में इंसान बस्ती बसा सकते हैं. पानी को तोड़कर ऑक्सीजन तैयार किया जा सकता है.
6. दक्षिणी ध्रुव पर जाना इतना कठिन क्यों है?
रूस बहुत तेजी से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के इलाके में लैंडिंग कराने जा रहा था. चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट से करीब 150 किलोमीटर दूर. लेकिन Luna-25 मिशन फेल हो गया. दक्षिणी ध्रुव का इलाका बेहद जटिल, खतरनाक है. यहां बड़े-बड़े और गहरे गड्ढे हैं. चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक उतर गया लेकिन चंद्रयान-2 का लैंडर हार्ड लैंडिंग कर गया था. अभी अमेरिका और चीन दोनों ने दक्षिणी ध्रुव के लिए मिशन प्लान करके रखा हुआ है.
7. क्या दक्षिणी ध्रुव पर बसेगी इंसानी बस्तियां?
अमेरिका के डिफेंस एंडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (DARPA) की प्लानिंग है कि वो चांद के दक्षिणी ध्रुव के आसपास इंसानी बस्ती बसाए. वह दस साल से लूनर आर्किटेक्चर (LunA-10) प्रोजेक्ट के तहत स्टडी करवा रहा है. आने वाले दशकों में चांद के इस हिस्से में इंसानी बस्ती बनाई जा सकती है. इसके प्रोग्राम मैनेजर माइकल नायक ने कहा कि अगले दस सालों में चांद की अर्थव्यवस्था दिखाई देने लगेगी. 2035 तक चांद पर कॉमर्शियल सर्विसेस शुरू हो जाएंगी. इसकी शुरुआत आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत होगी. इस प्रोग्राम में भारत भी शामिल है.