भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब परमाणु ईंधन (Nucelar Powered Rocket) से चलने वाले रॉकेट पर काम करने जा रहा है. इस रॉकेट की शुरूआती डिजाइन भी सामने आ गई है. अगर अगले कुछ सालों में यह न्यूक्लियर इंजन से चलने वाला रॉकेट बन गया, तो भारत ज्यादा दूरी वाले किसी भी ग्रह पर कम से कम समय में अपना स्पेसक्राफ्ट पहुंचा सकता है.
न्यूक्लियर रॉकेट का फायदा ये होगा कि भविष्य में चांद और मंगल ग्रह पर जाने वाले मिशन में एस्ट्रोनॉट्स को वापस आने में दिक्कत नहीं होगी. ईंधन की चिंता नहीं रहेगी. परमाणु ईंधन से चलने वाले रॉकेट सौर मंडल से बाहर के सभी मिशनों के लिए बेहतरीन साबित होंगे. क्योंकि ऐसे डीप स्पेस मिशन के लिए इस तरह की सुविधा जरूरी है.
ये भी जानकारी सामने आई है कि इसरो और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) मिलकर रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर्स (RTGs) का विकास कर रहे हैं. फिलहाल रॉकेट और सैटेलाइट्स में केमिकल इंजनों का इस्तेमाल होता है. लेकिन अगर आपको किसी ग्रह पर जाकर लौटना है, तो ये केमिकल इंजन कमजोर साबित होंगे. इनमें बहुत ज्यादा ईंधन लगेगा.
अगर परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट हों तो आप सौर मंडल के बाहर के मिशन कर सकते हैं. साथ ही मंगल ग्रह पर भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को भेजकर, उन्हें वापस भी बुला सकते हैं. ऐसा माना जा रहा है कि देश की दोनों सर्वोच्च संस्थाओं ने इस पर काम शुरू कर दिया है. ताकि जल्द ही इनका उपयोग किया जा सके. टेस्टिंग वगैरह हो सके.
कैसा हो सकता है भारत का न्यूक्लियर इंजन वाला रॉकेट?
न्यूक्लियर इंजन वाला रॉकेट आम न्यूक्लियर इंजन से अलग होगा. ये बिजली पैदा करने वाले न्यूक्लियर इंजन की तरह नहीं होगा. इसमें न्यूक्लियर फिशन नहीं होगा. बल्कि RTG में रेडियोएक्टिव पदार्थों का इस्तेमाल होगा. जैसे- प्लूटोनियम-238 या स्ट्रोंटियम-90. ये पदार्थ जब डिके होते हैं, तो बहुत सारी गर्मी पैदा करते हैं. ऐसे इंजन में दो प्रमुख हिस्से होंगे.
पहले हिस्से में रेडियोएक्टिव पदार्थ को रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट में गर्म किया जाएगा. इसके बाद होगा RTG. जिसमें गर्मी को इलेक्ट्रिसिटी में बदला जाएगा. इसके बाद गर्मी को थर्मोकपल में भेजा जाएगा. यानी एक ऐसे रॉड की तरह जिसका एक हिस्सा गर्म और दूसरा हिस्सा ठंडा होगा. इस पूरे रॉड पर वोल्टेज होगा. इसी से ऊर्जा मिलेगी.