scorecardresearch
 

ISRO ने उतारा पुष्पक विमान, भारत के भविष्य का अंतरिक्षयान तैयार

ISRO ने आज सुबह सात बजे अपने पुष्पक विमान की सफल लैंडिंग कराई. लैंडिंग आंध्र प्रदेश के चित्रदुर्ग चल्लाकेरे में की गई. यह 2030 में भारतीय स्पेस स्टेशन पर कार्गो और सैटेलाइट्स ले जाने का काम करेगा. हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे के समय इसका नाम पुष्पक रखा गया था.

Advertisement
X
ये है इसरो का स्वदेशी स्पेस शटल पुष्पक. जो भविष्य में अंतरिक्ष में कार्गो पहुंचाने और सैटेलाइट ले जाने का काम करेगा. (सभी फोटोः इसरो)
ये है इसरो का स्वदेशी स्पेस शटल पुष्पक. जो भविष्य में अंतरिक्ष में कार्गो पहुंचाने और सैटेलाइट ले जाने का काम करेगा. (सभी फोटोः इसरो)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज यानी 22 मार्च 2024 की सुबह अपने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (Reusable Launch Vehicle) की लैंडिंग का सफल परीक्षण किया. इसका नाम पुष्पक है. लैंडिंग आंध्र प्रदेश के चित्रदुर्ग चल्लाकेरे में की गई. यहां डीआरडीओ की एक फैसिलिटी है. जहां पर इसकी लैंडिंग और टेकऑफ टेस्ट होते हैं. 

Advertisement

पुष्पक खास तरह का स्पेस शटल है. जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स और कार्गो ले जाने का काम करेगा. इससे पहले 2 अप्रैल 2023 को ISRO, DRDO और भारतीय वायुसेना ने मिलकर इसका लैंडिंग टेस्ट किया था. उस समय चिनूक हेलिकॉप्टर से पुष्पक को 4.5 km की ऊंचाई से छोड़ा गया था. जिसके बाद यान ने खुद ही सफल लैंडिंग की. पुष्पक पूरी तरह से स्वदेशी है. कुछ साल में हमारे एस्ट्रोनॉट्स इसके बड़े वर्जन में कार्गो डालकर अंतरिक्ष तक पहुंचा सकते हैं. या फिर इससे सैटेलाइट लॉन्च कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: ISRO चीफ एस सोमनाथ को कैंसर, Aditya-L1 की लॉन्चिंग के दिन चला पता, लेकिन...

यह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस आएगा. ताकि फिर से उड़ान भर सके. इतना ही नहीं इसके जरिए किसी भी देश के ऊपर जासूसी करवा सकते हैं. या हमला. अंतरिक्ष में ही दुश्मन की सैटेलाइट को बर्बाद कर सकते हैं. ऐसी ही टेक्नोलॉजी का फायदा अमेरिका, रूस और चीन भी उठाना चाहते है. इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में कचरा साफ करने और सैटेलाइट्स की मरम्मत के लिए भी किया जा सकता है. 

Advertisement

दुश्मन पर किसी तरह का हमला कर सकता है

यह एक ऑटोमेटेड रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है. ऐसे विमानों से डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) चला सकते हैं. पुष्पक से बिजली ग्रिड उड़ाना या फिर कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट करना जैसे काम भी किए जा सकते हैं. इसरो का मकसद है कि साल 2030 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए. ताकि बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचे. 

यह भी पढ़ें: ISRO चीफ का खुलासा... अगले साल एस्ट्रोनॉट भेजे जाएंगे अंतरिक्ष में, इस साल Gaganyaan के कई टेस्ट होंगे

ISRO Pushpak

सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगा

इससे सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगी. थोड़ा मेंटेनेस के बाद इससे फिर लॉन्चिंग कर सकते हैं. सैटेलाइट लॉन्च किया जा सकता है. रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के अत्याधुनिक और अगले वर्जन से भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस में भी भेजा जा सकता है. अभी ऐसे स्पेस शटल बनाने वालों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान ही हैं.

2016 का परीक्षण था मील का पत्थर

2016 में पुष्पक की टेस्ट फ्लाइट हुई थी. तब यह एक रॉकेट के ऊपर लगाकर अंतरिक्ष में छोड़ा गया था. करीब 65 km तक हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ान भरी थी. उसके बाद 180 डिग्री पर घूमकर वापस आ गया था. 6.5 मीटर लंबे इस स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन है. बाद में इसे बंगाल की खाड़ी में उतारा गया था.  

Advertisement

साइंस के साथ डिफेंस में भी मददगार है ये यान  

रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल दो स्टेज का स्पेसक्राफ्ट है. पहला रीयूजेबल पंख वाला क्राफ्ट जो ऑर्बिट में जाएगा. जिसके नीचे एक रॉकेट होगा जो इसे ऑर्बिट तक पहुंचाएगा. एक बार ऑर्बिट में पहुंचने के बाद स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में सैटेलाइट छोड़कर वापस आ जाएगा. इसका उपयोग रक्षा संबंधी कार्यों में भी किया जा सकता है. 

Live TV

Advertisement
Advertisement