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अगले महीने ISRO लॉन्च करेगा नया रॉकेट... छोटे सैटेलाइट्स के बाजार में बन जाएगा 'सुप्रीम लीडर'

ISRO अपने छोटे रॉकेट की तीसरी और अंतिम डेवलपमेंटल उड़ान के लिए तैयार है. यह लॉन्च 10 जुलाई 2024 के आसपास होगी. इस रॉकेट की उड़ान से भारत सस्ती लॉन्चिंग की दुनिया में ऊंची छलांग लगा लेगा. इसके बाद इस रॉकेट को पूरी तरह से ऑपरेशनल होने का दर्जा मिल जाएगा. आइए जानते हैं इस रॉकेट की खासियत...

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ये है SSLV रॉकेट, जो सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक पर तैनात है. (फाइल फोटोः ISRO)
ये है SSLV रॉकेट, जो सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक पर तैनात है. (फाइल फोटोः ISRO)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 10 जुलाई 2024 के आसपास अपने स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) की तीसरी डिमॉन्सट्रेशन (D3) उड़ान करने जा रहा है. यह रॉकेट इसलिए बनाया गया है ताकि मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग की जा सके. वह भी कम कीमत में. 

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इस लॉन्चिंग के बाद SSLV को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिल जाएगा. साथ ही भारत दुनिया में सबसे सस्ती लॉन्चिंग के मामले में ऊंची उड़ान भर लेगा. इससे पहले इस रॉकेट के दो उड़ान हो चुके हैं. पहली उड़ान SSLV-D1 7 अगस्त 2022 को हुई थी. हालांकि मिशन में कुछ टारगेट अचीव नहीं हुए थे. 

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फिर अगली उड़ान यानी SSLV-D2 10 फरवरी 2023 को की गई थी. इसमें तीन सैटेलाइट भेजे गए थे. EOS-07, Janus-1 और AzaadiSAT-2. इन सैटेलाइट्स को 15 मिनट के अंदर ही तय 450 किलोमीटर ऊंची गोलाकार ऑर्बिट में तैनात कर दिया गया था. इसी सफलता के बाद इसरो ने तीसरी उड़ान का फैसला लिया. 

क्या काम करेगा ISRO का ये नया रॉकेट? 

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SSLV का इस्तेमाल छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए होता है. यह एक स्मॉल-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है. इससे धरती की निचली कक्षा में 500kg तक के सैटेलाइट्स को 500km से नीचे या फिर 300kg के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेज सकते हैं. इस ऑर्बिट की ऊंचाई 500km के ऊपर होती है. 

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72 घंटे में बनकर तैयार हो जाता है ये रॉकेट

SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. SSLV का वजन 120 टन है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है. फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से लॉन्च किया जाता है. 

तमिलनाडु में बन रहा है नया स्पेसपोर्ट

इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बनाया जा रहा है. तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेसपोर्ट बन रहा है. फिर एसएसएलवी की लॉन्चिंग वहीं से होगी. SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी के बनने का इंतजार करना पड़ता था. वो महंगा भी पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके भेजना होता था. 

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PSLV से पांच-छह गुना सस्ता है ये रॉकेट

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. इसलिए ISRO ने यह रॉकेट बनाया. एक SSLV रॉकेट पर 30 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपए आता है.

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