भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी, आकार, विजन सब बढ़ता जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO इसकी पूरी तैयारी कर चुका है. श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर में तीसरा लॉन्च पैड बनाने की तैयारी हो चुकी है. एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में इसरो चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ ने ये खुलासा किया.
डॉ. सोमनाथ ने बताया कि इस समय हमारे पास दूसरा लॉन्च पैड ही है. पहला लॉन्च पैड सिर्फ PSLV रॉकेट के लिए बनाया गया था. उससे हम GSLV रॉकेट नहीं छोड़ सकते. क्योंकि वह क्रायोजेनिक स्टेज के लायक लॉन्च पैड नहीं है. जब हमारे पास LVM-3 रॉकेट आया. तब हमने सेकेंड लॉन्च पैड की री-इंजीनियरिंग की.
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अब LVM-3 के पास सेमी-क्रायो स्टेज है. शुरूआती ह्यूमन स्पेसफ्लाइट इसी लॉन्च पैड से होगी. यानी गगनयान के शुरूआती लॉन्च दूसरे लॉन्च पैड से ही होंगे. इस लॉन्च पैड को हम पिछले 20 साल से लगातार अपग्रेड और अपडेट करते आ रहे हैं. खतरा ये है कि अगर इस लॉन्च पैड पर मान लीजिए विस्फोट होता है, तो हमारे पास जीएसएलवी की लॉन्चिंग के लिए कोई और लॉन्च पैड है ही नहीं. इससे इसरो के सारे मिशन रूक जाएंगे.
तीसरे लॉन्च पैड की जरूरत क्यों?
इसरो चीफ ने बताया कि तीसरा लॉन्च पैड नया, आधुनिक और बैकअप प्लान के तहत बनाया जा रहा है. क्योंकि हम नए रॉकेट NGLV यानी नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल की तरफ बढ़ रहे हैं. इस रॉकेट को लिटाकर असेंबल किया जाएगा. फिर उसे टेढ़ा करके खड़ा किया जाएगा. जैसे स्पेसएक्स के रॉकेट होते हैं.
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यह वर्टिकली असेंबल नहीं होगा. इसलिए हमें ऐसे लॉन्च पैड की जरूरत है, जहां रॉकेट की लिटाकर असेंबल करके वापस सीधा कर सकें. यहीं से फिर लॉन्च कर सकें. इसलिए ऐसा लॉन्च पैड चाहिए जो इस तकनीक को सपोर्ट कर सके. NGLV में ज्यादा लिक्विड इंजन बूस्टर होंगे. जेट डिफ्लेक्टर डिजाइन भी बदलेगा.
जेट डिफ्लेक्टर यानी लॉन्च पैड के नीचे लॉन्च के समय जो धुआं, आग निकलता है, उसे सुरक्षित निकालने का रास्ता. सभी स्टेज की टेस्टिंग भी यहीं होगी. इसके लिए महेंद्रगिरी सेंटर की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसलिए इस लॉन्च पैड का ज्यादा एडवांस होना जरूरी है. एक ही लॉन्च पैड से कई सारी चीजें पूरी जाएंगी.
क्या होगा NGLV रॉकेट में...
NGLV तीन स्टेज का रॉकेट होगा. जिसका पहला स्टेज रीयूजेबल यानी फिर से इस्तेमाल किया जाएगा. जैसे स्पेसएक्स के फॉल्कन रॉकेट का पहला स्टेज वापस आ जाता है. ठीक वैसे. यह रॉकेट काफी किफायती पड़ेगा. भविष्य की जरूरत भी यही है. अभी LVM3 अपने साथ 9.2 टन वजनी पेलोड LEO तक पहुंचा सकता है.
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We now have the details of the different variants of the upcoming NGLV rocket under consideration by #ISRO! 🚀
— ISRO Spaceflight (@ISROSpaceflight) January 24, 2024
Recently, Dr. V Narayanan (Director, LPSC) gave a presentation containing 2 slides on NGLV which showed 4 variants - two "core-alone" variants with methalox & hydrolox… pic.twitter.com/jxcQ3hyfG8
इसे बढ़ाकर 20 टन पेलोड की क्षमता करनी है. जीटीओ तक अभी 4.3 टन पेलोड पहुंचा पाते हैं. इसे बढ़ाकर 9 टन करनी है. NGLV ये दोनों काम पूरा कर देगा. साथ ही इसे हम जमीन और समंदर कहीं से भी रिकवर कर लेंगे. इसमें एकदम स्पेसएक्स के फाल्कन रॉकेट के वापस आने वाली तकनीक होगी.