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Bullet Train to Moon: चंद्रमा तक जाएगी जापान की बुलेट ट्रेन... धरती की ग्रैविटी का होगा उपयोग

Japan Mega Space Mission: दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां अंतरिक्षयान से चंद्रमा तक पहुंचने का प्लान बना रहे हैं. जापान ने बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना डाली है. ये ट्रेन चांद तक धरती की ग्रैविटी का उपयोग करके जाएगी. जापान ने यह घोषणा करके अंतरिक्ष में एक नए तरह की प्रतियोगिता की शुरुआत कर दी है.

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धरती से चांद और मंगल ग्रह तक चलेगी बुलेट ट्रेन. बेहद अत्याधुनिक योजना है जापान के पास. (प्रतीकात्मक फोटोः पिक्साबे)
धरती से चांद और मंगल ग्रह तक चलेगी बुलेट ट्रेन. बेहद अत्याधुनिक योजना है जापान के पास. (प्रतीकात्मक फोटोः पिक्साबे)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चांद और मंगल ग्रह पर ग्लास नाम की कॉलोनी भी बनेगी
  • धरती से मंगल तक वाया चांद ट्रेन से कराई जाएगी यात्रा

जापान एक बेहद बड़ी योजना पर काम करने जा रहा है. वह धरती से एक बुलेट ट्रेन चलाएगा, जो लोगों को चांद पर पहुंचाएगी. यह ट्रेन पहले चांद तक जाएगी. इसमें सफलता हासिल करने के बाद इसे मंगल ग्रह तक चलाया जाएगा. इसके अलावा मंगल ग्रह पर ग्लास (Glass) हैबिटेट बनाने की भी योजना है. यानी इंसान एक आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट में रहेगा, जिसका वातावरण धरती जैसा बनाया जाएगा. 

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आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि वहां पर इतनी ग्रैविटी और ऐसा वायुमंडल हो ताकि इंसान की मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर न हो. जबकि, आमतौर पर कम ग्रैविटी वाले स्थानों पर मासंपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. देखने वाली बात ये है कि जहां एक तरफ अमेरिका फिर से चांद पर जा रहा है. चीन मंगल ग्रह पर खोज कर रहा है. रूस और चीन मिलकर चंद्रमा के लिए संयुक्त मिशन की योजना बना रहे हैं. वहीं, जापान ने बुलेट ट्रेन और आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट की योजना बना ली. ऐसे में इंसानों का जल्दी ही किसी अन्य ग्रह पर रहना आसान होगा. 

चांद और मंगल पर इस सदी के अंत तक रहना शुरु करेगा इंसान

ग्लास (Glass) एक ऐसी बड़ी कॉलोनी होगी जिसमें इंसान रहेगा. यह कॉलोनी चांद और मंगल ग्रह पर बनाई जाएगी. इसके बाहर जाने के लिए आपको स्पेससूट पहनना होगा. लेकिन अंदर रहने के लिए शायद ये न करना पड़ा. लेकिन यहां रहने पर मांसपेशियां और हड्डियां उतनी कमजोर नहीं होंगी जितनी खुले में रहने पर होतीं. यहां बच्चे पैदा करना कितना मुश्किल होगा ये बता पाना फिलहाल संभव नहीं है, क्योंकि अब तक अंतरिक्ष में यह काम नहीं किया गया है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि 21वीं सदी के दूसरे हिस्से में इंसान चांद और मंगल पर रहने लगेगा. 

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ये है वो ग्लास हैबिटेट, जिसमें इंसान चांद और मंगल ग्रह पर रहेंगे. इसके ही अंदर से अन्य ग्रहों के लिए हेक्साकैप्सूल निकलेंगे. (फोटोः क्योटो यूनिवर्सिटी)
ये है वो ग्लास हैबिटेट, जिसमें इंसान चांद और मंगल ग्रह पर रहेंगे. इसके ही अंदर से अन्य ग्रहों के लिए हेक्साकैप्सूल निकलेंगे. (फोटोः क्योटो यूनिवर्सिटी)

क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन ने बनाई है योजना

यह योजना बनाई है क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन ने मिलकर. ग्लास (Glass) एक कोन जैसा रहने लायक स्थान होगा. जिसमें आर्टिफिशियल ग्रैविटी होगी. सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था होगी. हरे-भरे इलाके होंगे. जलस्रोत होंगे. इसके अंदर नदियां, पार्क, पानी आदि सबकुछ होगा जो एक इंसान के लिए जरूरी होता है. यह इमारत करीब 1300 फीट लंबी होगी. इसका प्रोटोटाइप 2050 तक बनकर तैयार हो जाएगा. फाइनल वर्जन बनने में लगभग एक सदी का समय लग सकता है. 

कॉलोनी का नाम- लूनाग्लास और मार्सग्लास, हेक्साट्रैक पर चलेगी ट्रेन

चांद पर बनने वाले ग्लास (Glass) कॉलोनी का नाम होगा लूनाग्लास (Lunaglass) और मंगल पर बनने वाली कॉलोनी का नाम होगा मार्सग्लास (Marsglass). इसके अलावा क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन मिलकर स्पेस एक्सप्रेस (Space Express) नाम की बुलेट ट्रेन बनाने जा रहे हैं. जो धरती से चांद और मंगल के लिए रवाना होगी. यह एक इंटरप्लैनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम (Interplanetary Transportation System) होगा. जिसे नाम दिया गया है हेक्साट्रैक (Hexatrack). 

चांद पर कैसे चलेगी बुलेट ट्रेन और कैसे बनेगा हैबिटेट... यहां देखिए पूरा वीडियो

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मैगलेव ट्रेन की तकनीक पर अंतरिक्ष में चलाए जाएंगे हेक्साकैप्सूल

हेक्साट्रैक लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा में भी 1G की ग्रैविटी की ताकत बना कर रखेगी. ताकि लंबे समय तक जीरो ग्रैविटी का नुकसान यात्रियों को बर्दाश्त न करना पड़े. हेक्साट्रैक पर हेक्साकैप्सूल (Hexacapsules) चलेंगे. जो हेक्सागोनल आकार में होंगे. ये 15 मीटर लंबे मिनी कैप्सूल होंगे. इनके अलावा 30 मीटर लंबे लार्ज कैप्सूल भी होंगे जो चांद और मंगल की यात्रा कराएंगे. ये धरती से मंगल वाया चांद होकर जाएंगे. कैप्सूल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक टेक्नोलॉजी पर चलेंगे. जैसे जर्मनी और चीन में मैगलेव ट्रेन (Maglev Train) चलती है. 

धरती पर बनेगा टेरा स्टेशन, इस पर से लॉन्च होगी स्पेस एक्सप्रेस

हर कैप्सूल रेडियल सेंट्रल एक्सिस पर चलेंगे. यानी चांद से मंगल ग्रह पर आने जाने के लिए 1G की ग्रैविटी मेंटेन की जाएगी. धरती पर बनने वाले ट्रैक स्टेशन का नाम होगा टेरा स्टेशन. ये स्टैंडर्ड गॉज ट्रैक से चलेंगी. जिसमें छह कोच होंगे. जिसे स्पेस एक्सप्रेस (Space Express) नाम दिया गया है. पहले और आखिरी कोच में रॉकेट बूस्टर्स लगे होंगे. जो इन्हें आगे और पीछे की तरफ ले जाने में मदद करेंगे. ताकि अंतरिक्ष में गति बढ़ाई या कम की जा सके. साथ ही धरती और चांद के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के हिसाब से काम कर सकें. 

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