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चांद पर बेहोश पड़े अपने लैंडर SLIM को फिर जिंदा करेगा Japan, फिलहाल सोलर पैनल एक्टिव नहीं

Japan को उम्मीद है कि चांद पर मौजूद उनके SLIM मून लैंडर में अब भी जान बाकी है. 19 जनवरी 2024 को जापान ने चांद पर सफल लैंडिंग कराई. लेकिन उसके सोलर पैनल पावर देने में फेल हो गए. यानी वो खुले ही नहीं. वो बिजली पैदा कर ही नहीं पा रहे हैं. अब जापान फिर से इस लैंडर को जिंदा करने का प्रयास कर रही है.

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जापान का स्लिम लैंडर इस समय चांद पर निढाल पड़ा है, क्योंकि उसका सोलर पैनल नहीं खुल रहा है. (सभी फोटोः JAXA)
जापान का स्लिम लैंडर इस समय चांद पर निढाल पड़ा है, क्योंकि उसका सोलर पैनल नहीं खुल रहा है. (सभी फोटोः JAXA)

जापान चांद पर उतरे अपने SLIM मून लैंडर को फिर से जिंदा करने जा रहा है. उसे उम्मीद है कि वह फिर से स्लिम को सक्रिय कर सकता है. 19 जनवरी 2024 को जापान ने अपने स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक चांद पर उतारने वाला दुनिया का पांचवां देश बना. लेकिन लैंडर के सोलर पैनल नहीं खुले. इस वजह से उसे ऊर्जा नहीं मिल रही है. स्लिम का मतलब है स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून मिशन (SLIM - Smart Lander for Investigating Moon). 

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सोलर पैनल इलेक्ट्रिसिटी पैदा कर ही नहीं पा रहे हैं. जिस वजह से लैंडर का भविष्य खतरे में दिख रहा है. लेकिन जापानी स्पेस एजेंसी JAXA ने अभी तक स्लिम को मृत घोषित नहीं किया है. स्पेस एजेंसी ने कहा कि चांद पर लैंड होने के बाद जब सोलर पैनल नहीं खुले, तो एजेंसी ने जानबूझकर लैंडर की बैट्री की क्षमता को 12 फीसदी कम कर दिया.  

Japan Slim Moon Mission

ऐसा इसलिए किया गया ताकि उसे फिर से रीस्टार्ट किया जा सके. फिलहाल एजेंसी के वैज्ञानिक उसे फिर से जिंदा करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. फिलहाल सोलर पैनल चंद्रमा पर पश्चिम दिशा की ओर हैं. अगर सूरज उधर से उगा तो ये फिर से बिजली पैदा कर सकता है. लैंडर को ऊर्जा दे सकता है. लेकिन इसके लिए सोलर सेल का चार्ज होना जरूरी है. 

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लैंडिंग से पहले और उतरने तक स्लिम ने भेजा अपना डेटा

स्लिम ने काफी ज्यादा टेक्निकल डेटा और तस्वीरें जापान तक भेजी हैं. इस हफ्ते के अंत तक यह पता चल जाएगा कि जापान का स्लिम लैंडर फिर से उठेगा या उसकी मौत वहीं हो जाएगी. 19 जनवरी को लैंडिंग से पहले जापान के अंतरिक्षयान ने धरती से चांद तक पहुंचने के लिए 5 महीने की यात्रा की. 

Japan Slim Moon Mission

जापान चांद की जमीन पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला पांचवां देश बन चुका है. इससे पहले भारत, रूस, अमेरिका और चीन यह सफलता हासिल कर चुके हैं. लैंडिंग के बाद स्लिम चांद की सतह पर मौजूद ओलिवीन पत्थरों की जांच करेगा, ताकि चांद की उत्पत्ति का पता चल सके. इसके साथ कोई रोवर नहीं भेजा गया है.   

ब तक की सबसे सटीक लैंडिंग कराने वाला देश बना जापान

जापानी स्पेस एजेंसी JAXA ने बताया कि लैंडिंग के लिए उसने 600x4000 km का इलाका खोजा है. स्लिम ने इसी इलाके में लैंडिंग की है. ये जगह चांद के ध्रुवीय इलाके में है. बड़ी बात ये है कि जो स्थान चुना गया था लैंडिंग के लिए उसके पास ही यान ने सटीक लैंडिंग की. क्योंकि जापान का टारगेट था कि लैंडिग साइट के 100 मीटर दायरे में ही उसका स्पेसक्राफ्ट उतरे. और इस काम में उसने सफलता हासिल कर ली है. 

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Japan Slim Moon Mission

इस लैंडिंग साइंट का नाम है शियोली क्रेटर (Shioli Crater). यह चांद पर सबसे ज्यादा अंधेरे वाला धब्बा कहा जाता है. एक और संभावित लैंडिंग साइट मेयर नेक्टारिस (Mare Nectaris) भी है. जिसे चांद का समुद्र कहा जाता है. स्लिम में एडवांस्ड ऑप्टिकल और इमेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी लगी है. 

स्लिम के साथ एक्स-रे इमेजिंग एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन (XRISM) भी गया है. यह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए चांद पर बहने वाले प्लाज्मा हवाओं की जांच करेगा. ताकि ब्रह्मांड में तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति का पता चल सके. इसे जापान, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मिलकर बनाया है. 

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