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उड़ने वाले डायनासोरों के चचेरे भाइयों का पता चला... 14.7 करोड़ साल पुराना जीवाश्म मिला

जर्मनी के बावरिया में उड़ने वाले डायनासोर पक्षी की नई प्रजाति का पता चला है. यह 14 करोड़ साल से 8 करोड़ साल पहले इस इलाके में पाया जाता था. यह असल में डायनासोरों का चचेरा भाई था. इस पक्षी की नई प्रजाति से उड़ाने वाले डायनासोर यानी टेरोसॉर की वंशावली समझने में वैज्ञानिकों को आसानी हो रही है.

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18 नवंबर 2024 को जारी इस चित्र में नए पहचाने गए जुरासिक काल के टेरोसॉर प्रजाति के डायनासोर का पता चला है. (फोटोः रॉयटर्स)
18 नवंबर 2024 को जारी इस चित्र में नए पहचाने गए जुरासिक काल के टेरोसॉर प्रजाति के डायनासोर का पता चला है. (फोटोः रॉयटर्स)

डायनासोरों के उड़ने वाले चचेरे भाइयों की नई प्रजाति का पता चला है. बावरिया नाम के इलाके में यह उड़ने वाला टेरोसॉर पक्षी 14.7 करोड़ साल पहले पाया जाता था. जब यह पंख फैलाता था तब इसकी लंबाई 7 फीट हो जाती थी. इसकी चोंच से लेकर नथुने तक हड्डियों का खास ढांचा होता था. जबकि मुंह के अंदर तेजधार दांतों की सीरीज. 

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इस जीव का फेवरेट शिकार होती थी छिपकलियां या फिर छोटे चूहे जैसी प्रजाति वाले जीव. वैज्ञानिकों ने जर्मनी में उड़ने वाले डायनासोरों की नई प्रजाति की खोज की है. उसका जीवाश्म खोजा है. यह जीवाश्म पूरी तरह से सुरक्षित है. इसकी वजह से टेरोसॉर (pterosaurs) डायनासोरों के बारे में और जानकारी मिल रही है. 

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Jurassic Period pterosaur

जुरासिक काल के अंत में थे ये पक्षी

इस प्रजाति को नाम दिया गया है स्किफोसुरा बावरिका (Skiphosoura bavarica). इस प्रजाति के डायनासोर पक्षी जुरासिक काल के अंत समय में मौजूद थे. यह लंबी पूंछ वाले छोटे टेरोसॉरस डायनासोरों के शरीरिक बदलाव वाली स्पीसीज थी. 8 करोड़ साल पहले क्रेटासियस काल में ये Quetzalcoatlus नाम के जीव के पूर्वज बने. इनके विंग्स आज के F-16 फाइटर जेट जितने लंबे थे. 

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टेरोसॉर पक्षियों की ज्यादा जानकारी

लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद डेविड होन ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण खोज है. जिसकी स्टडी रिपोर्ट हाल ही में करेंट बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है. स्किफोसुरा बावरिका हमें टेरोसॉर पक्षियों के बारे में ज्यादा जानकारी प्रदान कर रहा है. 

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Jurassic Period pterosaur

खोज के बाद प्रजाति पता करने में लगी मेहनत

इस पक्षी को स्वॉर्ड टेल ऑफ बावरिया भी बुलाते आए हैं. इसकी पूंछ छोटी और नुकीली होती थी. इसके जीवाश्म की खोज 2015 में हुई थी लेकिन तब से लगातार इसकी स्टडी चल रही थी. इसके विचित्र ढांचे की वजह से वैज्ञानिकों को कड़ी मेहनत करनी पड़ी. ताकि यह पता चल सके कि यह किस प्रजाति का डायनासोर है.

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