केदारनाथ धाम और उसके आसपास का मौसम खराब है. बर्फबारी हो रही है. दिन का तापमान 4-5 डिग्री चल रहा है. केदारनाथ घाटी में बादलों का आना-जाना लगा है. कभी ऊपर, कभी नीचे. बर्फबारी और 13 फीसदी ह्यूमेडिटी की वजह से कोहरा बन गया. अब ये बन गया मौत की वजह. गिरती बर्फ, बादल और कोहरे की वजह से दृश्यता कम हो गई. हेलिकॉप्टर अचानक एक पहाड़ी से टकरा गया. नीचे गरुड़चट्टी के पहाड़ी मैदान में गिर गया. आग लग गई और सभी यात्रियों की मौत हो गई. क्या ऐसी खतरनाक घाटियों में ये हेलिकॉप्टर सेवाएं सही से उड़ान भरती हैं? सुरक्षा मानकों का ख्याल रखती हैं?
अगर सुरक्षा मानकों का ख्याल रखती तो इस बर्फबारी और कम दृश्यता वाले मौसम में हेलिकॉप्टर नहीं उड़ता. 31 मई 2022 को केदारनाथ में ही यात्रियों से भरे एक हेलिकॉप्टर की हार्ड लैंडिंग हुई थी. जिसके बाद जून में डॉयरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने 7 और 8 जून को ऑडिट कराया. इसमें पता चला कि केदारनाथ में हेलिकॉप्टर सेवा देने वाली पांचों कंपनियां सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करती. सुरक्षा संबंधी नियमों पर ध्यान कम देती हैं.
DGCA ने ऑडिट पूरा होने के बाद केदारनाथ में हेलिकॉप्टर सेवाएं देने वाली पांचों कंपनियों पर पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. इसके अलावा दो अन्य ऑपरेटर्स के अधिकारियों को सुरक्षा मानकों को तोड़ने के जुर्म में तीन महीने निलंबित कर दिया था. ऑडिट के समय डीजीसीए की टीम ने देखा कि हेलिकॉप्टर सेवा देने वाली कंपनियां चॉपर शटल ऑपरेशंस के दौरान सुरक्षा मानकों के बताए गए सभी नियमों को क्रॉसचेक नहीं करती हैं.
क्या बेल 407 हेलिकॉप्टर इस मौसम में उड़ान भरने लायक है?
जो हेलिकॉप्टर गरुड़चट्टी पर क्रैश हुआ, उसे आर्यन एविएशन कंपनी उड़ाती थी. कहा जा रहा है कि यह बेल 407 हेलिकॉप्टर (Bell 407 Helicopter) था. यह हेलिकॉप्टर अमेरिका और कनाडा में बनाया जाता है. इस हेलिकॉप्टर की पहली उड़ान जून 1995 में हुई थी. तब से लेकर अब तक दुनिया के कई देशों में इस हेलिकॉप्टर का उपयोग नागरिक उड्डयन के लिए किया जा रहा है. आमतौर पर इसे सिविल यूटिलिटी हेलिकॉप्टर कहते हैं.
इस हेलिकॉप्टर को एक पायलट उड़ाता है. 41.8 फीट लंबे हेलिकॉप्टर में सात लोगों के बैठने की क्षमता होती है. दो आगे और पांच पीछे. 11.8 फीट ऊंचे इस हेलिकॉप्टर में सिंगल इंजन लगा होता है. जो इसे अधिकतम 260 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ने की क्षमता प्रदान करता है. लेकिन आमतौर पर इसे 246 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति में ही उड़ाते हैं. यह अधिकतम 18,690 फीट की ऊंचाई तक जा उड़ान भर सकता है. केदारनाथ पहाड़ की ऊंचाई 22,411 फीट है. जबकि घाटी की ऊंचाई करीब 11,755 फीट है.
अब हेलिकॉप्टर को उड़ना है इन्हीं दो ऊंचाइयों के बीच. बेल हेलिकॉप्टर 18,690 फीट से ऊपर जा नहीं सकता. उड़ान भरने के लिए उसे ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच बनी घाटियों में से निकलना पड़ता है. घाटियों में बादलों का फंसना सामान्य बात है. ह्यूमेडिटी बढ़ने पर कोहरे का बनना भी सामान्य प्रक्रिया है. ऐसे में दृश्यता बेहद कम हो जाती है. दुनिया भर में यह बात सबको पता है कि प्लेन से ज्यादा कठिन होता है, हेलिकॉप्टर को उड़ाना. खराब मौसम में हेलिकॉप्टर को उड़ाना और कठिन हो जाता है.
हेलिकॉप्टर उड़ान के लिए विजिबिलिटी कम होना सबसे खतरनाक
हेलिकॉप्टर उड़ान के समय अचानक आने वाली बारिश. या लगातार हो रही हल्की बर्फबारी भी घातक सिद्ध हो सकती है. किसी तरह का तूफान या फिर अचानक से सामने आए बादल या कोहरे से दृश्यता खत्म हो सकती है. ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान खतरनाक मानी जाती है. सबसे खतरनाक होता है घने कोहरे का आना. विजिबिलिटी इतनी कम हो जाती है कि कुछ फीट दूर तक नहीं दिखता. फिर उड़ान जानलेवा साबित हो सकती है.
सुरक्षित हेलिकॉप्टर उड़ान के लिए तीन चीजें बेहद जरूरी हैं
हेलिकॉप्टर की सुरक्षित उड़ान के पीछे तीन चीजें बहुत जरूरी होती हैं. पहला वजन. जो कि केदारनाथ वाले हेलिकॉप्टर का पूरा हो चुका था. उसमें सात लोग बैठे थे. दूसरा ऊंचाई, उसके बारे में पता नहीं चल पाया है. लेकिन वह 13 से 18 हजार फीट के बीच ही उड़ान भर रहा होगा. तीसरा- हवा की गति. केदारनाथ घाटी में हवा 14 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रही थी, जिस समय यह हादसा हुआ. लेकिन एक तरफ बह रही हवा से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.
कम तापमान और ज्यादा ह्यूमेडिटी से आ सकती है यंत्रों में दिक्कत
बारिश, कोहरा, बर्फबारी इसकी वजह से दृश्यता कम होती है. हेलिकॉप्टर के परफॉर्मेंस पर असर नहीं पड़ता. हां लेकिन तापमान अगर कम हो तो हेलिकॉप्टर की उड़ान में दिक्कत आ सकती है. ह्यूमेडिटी ज्यादा हो और तापमान बेहद कम तो हेलिकॉप्टर उड़ान में बाधा आ सकती है. क्योंकि इससे हेलिकॉप्टर के यंत्रों को काम करने में दिक्कत आती है. ह्यूमेडिटी से भरी हवा भी हेलिकॉप्टर के परफॉर्मेंस को बिगाड़ देती है.
हवाओं की दिशा और दशा को समझकर ही भरनी चाहिए उड़ान
हेलिकॉप्टर को यह पता होना चाहिए की हवा किस तरफ चल रही है. हेडविंड्स (Headwinds) और क्रॉसविंड्स (Crosswinds) हेलिकॉप्टर की उड़ान दिशा के परपेंडीकुलर चलती हैं, जिससे हेलिकॉप्टर की गति धीमी होती है. अगर हवा टेलविंड्स (Tailwinds) है तो वह हेलिकॉप्टर की गति बढ़ा देगी. इससे पायलट हेलिकॉप्टर को नियंत्रित नहीं कर पाते. तूफानी मौसम में हवाएं ज्यादा तेज हो जाती हैं, ऐसे में हेलिकॉप्टर पर नियंत्रण पाना मुश्किल होता है.