अरब सागर की गर्मी. उसके ऊपर जमा बादलों का झुंड. इसकी वजह से केरल में तबाही आई. अगला एक हफ्ता अभी खतरनाक है. मौसम विभाग के अनुसार अगले 2-3 दिन तक केरल के निचले इलाकों में ताकतवर हवाएं चलेंगी. 30 जुलाई से 2 अगस्त तक केरल के कई इलाकों में तेज बारिश, थंडरस्टार्म आ सकता है. इसमें वायनाड भी शामिल है.
मौसम विभाग ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि 30 से 31 जुलाई को तेज और बहुत तेज बारिश होगी. पहले 24 घंटे में 7 से 11 सेंटीमीटर और दूसरे दिन 12 से 20 सेंटीमीटर बारिश. यानी ये चरम स्थिति है. इसका प्रभाव वायनाड, इडुकी, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझिकोड, कन्नूर और कासरगोड़ तक रहेगा. दूसरे दिन भी लगभग इन्हीं इलाकों में बारिश होने की पूरी संभावना है. वायनाड में बचावकार्य भी बारिश के बीच ही हो रही है.
समंदर के ऊपर हवाएं 35 से 45 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चल रही हैं. इसलिए मछुआरों को समंदर में न जाने की सलाह दी गई है. तेज बारिश, भूस्खलन से भारी नुकसान की आशंका जाहिर की गई थी. जिसमें फ्लैश फ्लड, घरों को नुकसान, पेड़ों का उखड़ना, बिजली सप्लाई बाधित होने आदि की चेतावनी जारी की गई थी.
क्यों हो रही है इतनी बारिश?
मौसम विभाग के सैटेलाइट तस्वीर में स्पष्ट दिख रहा है कि केरल के पास बादलों ने जमावड़ा कर रखा है. संभावना है कि केरल के पूर्व में स्थित पश्चिमी घाट की ऊंची पहाड़ियों ने इन बादलों को फैलने या आगे जाने का रास्ता न दिया हो. जिसकी वजह से 2013 में केदारनाथ में त्रासदी आई थी. वहां भी बादल पहाड़ों में फंस गए थे. यही वजह है कि वायनाड में ऐसी भयंकर तबाही आई.
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अरब सागर तेजी से गर्म हो रहा है. कोचीन यूनिवर्सिटी में एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक राडार रिसर्च के डायरेक्टर ए. अभिलाष ने बताया कि कासरगोड़, कन्नूर, वायनाड, कोझिकोड, मल्लपुरम में काफी तेज बारिश हो रही है. समंदर में ट्रफ बना हुआ है. इसकी वजह से पूरा कोंकण इलाका दो दिनों से प्रभावित है. ये एकदम वैसा ही माहौल है, जैसा साल 2019 में हुआ था. यहां इस समय मीसोस्केल क्लाउड सिस्टम (Mesoscale Cloud System) बना हुआ है.
बादलों के जमावड़े की वजह
वैज्ञानिकों ने देखा है कि केरल के पास अरब सागर में वेरी डीप क्लाउड सिस्टम डेवलप हो रहा है. यह अरब सागर का दक्षिणी हिस्सा है. ये सिस्टम समंदर में ही रहता है. लेकिन कई बार जमीन की तरफ बढ़ जाता है. जैसा साल 2019 में हुआ था. अरब सागर लगातार जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्म हो रहा है.
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इसका असर केरल के ऊपर मौजूद वायुमंडल में हो रहा है. केरल का वायुमंडल थर्मोडायनेमिकली असंतुलित हो चुका है. इस असंतुलन की वजह से गहरे बादलों का जमावड़ा होता है. पहले इस तरह का मौसम उत्तरी कोंकण इलाके में होता था. उत्तरी मैंगलुरू के ऊपर की तरफ. लेकिन जलवायु बदलने से ये यह अब नीचे की तरफ आ रहा है.
वायनाड की 51% जमीन ढलानों पर है
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्टडी के मुताबिक केरल के पूरे क्षेत्रफल का 43% जमीन भूस्खलन संभावित क्षेत्र है. इडुकी की 74% और वायनाड की 51% जमीन पहाड़ी ढलान हैं. यानी भूस्खलन की आशंका हमेशा रहती है. 1848 वर्ग किलोमीटर के केरल में सबसे ज्यादा ढलानी इलाका पश्चिमी घाट में हैं.
पश्चिमी घाट यानी वायनाड, कोझिकोड, मल्लपुरम, इडुकी, कोट्टायम और पत्थन्मथिट्टा जिला. इन जिलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन होता है. साल 2019 में कुल मिलाकर केरल के आठ जिलों ने 80 भूस्खलन हुए. वो भी सिर्फ तीन दिन में. इसमें 120 लोग मारे गए थे. 2018 में दस जिलों 341 बड़े भूस्खलन हुए.
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ऊंचा-नीचा है वायनाड का पूरा इलाका?
2695 मीटर यानी 8841 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाला पठारी इलाका. केरल के 40 फीसदी इलाके में पश्चिमी घाट है. भयानक नमी वाला जंगली इलाका. जहां थोड़ी देर भी बारिश होने पर भूस्खलन होने लाजमी है. ऐसे इलाके के बीच में मौजूद है वायनाड. 2130 वर्ग किलोमीटर का वायनाड भौगोलिक तौर पर चार हिस्सों में बंटा है.
प्रायद्वीपीय जेनेसिक कॉम्पलेक्स, मिगमेटाइट कॉम्प्लेक्स, चार्नोकाइट ग्रुप और वायनाड ग्रुप. वायनाड ग्रुप के पत्थर उत्तरी इलाके में है. चार्नोकाइट दक्षिण और दक्षिणी-पूर्व इलाके में. ये असल में मिट्टी और पत्थरों को समझाने का एक रासायनिक-भौगोलिक तरीका है. जिला 2084 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है.
जिले के ज्यादातर हिस्से को कबानी नदी और उसकी शाखाओं से पानी मिलता है. मैदानी इलाकों में बाढ़ आना स्वाभाविक है. क्योंकि चारों तरफ पहाड़ियां हैं. जिले का पूर्वी हिस्सा 1000 से 1400 मीटर ऊंचा है. ज्यादातर इलाके में क्ले जैसी मिट्टी है. यानी कमजोर और सरकने वाली. इसलिए भूस्खलन का खतरा बढ़ा रहता है.
क्या वजह है इतने ज्यादा भूस्खलन की?
जंगल की कटाई... केरल 100 वर्षों से ज्यादा समय से चाय के बागानों के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन पेड़-पौधों के प्रजातियों में आने वाली कमी से जंगलों में कमी आई है. जंगल भी तेजी से कटे हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पैटर्न भी बदल गया है. जिसकी वजह से ढलानों वाले इलाकों में भूस्खलन बढ़ता जा रहा है.
भौगोलिक स्थिति... पश्चिमी घाट के पठारों की ढलानों पर बसा है ये जिला. बेहद खड़ी ढलाने हैं ये. घाटियां हैं. पहाड़ियां हैं. इसलिए ऐसे इलाके में भूस्खलन की आशंका ज्यादा रहती है.
भारी बारिश... मॉनसून के मौसम में वायनाड कई बार 2000 मिलिमीटर से ज्यादा बारिश बर्दाश्त करता है. इसकी वजह से मिट्टी सैचुरेट हो जाती है. जिससे वह कटती है. और भूस्खलन होते हैं.
मिट्टी की गुणवत्ता... वायनाड में ज्यादातर लैटराइट मिट्टी है. यानी बेहद कमजोर और कटने वाली. ये अगर बारिश से सैचुरेट होती है, तब इसका वजन बढ़ता है. लेकिन ताकत खत्म होती है. फिसलती है.
जमीन का गलत इस्तेमाल लाया बड़ी मुसीबत
करीब एक दशक पहले नेशनल सेंटर फॉर अर्थ स्टडीज ने एक हजार्ड जोन का का नक्शा बनाया था. पहले जो इलाका सुरक्षित था. अब वो खतरे में है. वायनाड के व्यतीरी में 2018-19 में जो लैंडस्लाइड हुए, उनमें से 41%ढलानों पर बने घरों के आसपास हुए. 29% सड़कों के किनारे हुए. 17% व्यावसायिक जमीनों पर. 10% पेड़-पौधों वाले इलाके में हुए. सिर्फ 3 फीसदी जंगल में. यानी जमीन के इस्तेमाल बदलाव के बाद ही इस तरह की प्राकृतिक मुसीबत आती है.