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कैसी होती है कोरोना वैरिएंट की पहचान? देखिए लखनऊ की वो लैब जहां होती है जीनोम सिक्वेंसिंग

चीन में कोरोना का बम फूट चुका है. देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोना सैंपल के जीनोम सिक्वेंसिंग के आदेश दिए हैं. जानिए लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में कैसे होती है जीनोम सिक्वेंसिंग.

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SGPGI का वो लैब जहां पर होती है जीनोम सिक्वेंसिंग.
SGPGI का वो लैब जहां पर होती है जीनोम सिक्वेंसिंग.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दो संस्थानों में जीनोम सिक्वेंसिंग होती है. पहला है किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिर्सिटी (KGMU) और दूसरा है संजय गांधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (SGPGIMS). पीजीआई में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. अतुल गर्ग बताते हैं कि BF-7 वैरिएंट को ट्रेस करने के लिए हर सैंपल का जीनोम सिक्वेंसिंग होना जरुरी है. 

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पीजीआई में मल्टी-स्पेशियलिटी लैब है, जहां पर सिक्वेंसिंग होती है. यहां किसी भी तरह के इन्फेक्शियस मैटेरियल से डील कर सकते हैं. आरटी-पीसीआर के बाद सैंपल यहां आता है. लैब पूरी तरह से नॉन-इन्फेक्टिव है. तमाम मशीनों को दिखाते हुए. उनका इस्तेमाल समझाते हुए डॉक्टर गर्ग ने बताया कि सबसे पहले कोरोना लैब से पेशेंट का जो RNA निकला है, सबसे पहले उसी को देखा जाता है. 

Genome Squencing Lab in SGPGI

यह पता करना होता है कि आरएनए किस क्वालिटी का है. सिक्वेंसिंग के समय कई मशीनों का इस्तेमाल होता है. क्योंकि इसमें समय लगता है. पहले आरएनए लैब में आता है. फिर उसका डीएनए बनाया जाता है. इसमें तीन घंटे लगते हैं. यह सब नॉन-इन्फेक्टिव होता है. हर स्टेप पर क्वालिटी देखना जरूर होता है. अगला स्टेप है लाइब्रेरी प्रिपरेशन का. इसमें धूल से बचना होता है. इसके लिए खास ड्रेस पहननी पड़ती है. 

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एक बार लाइब्रेरी प्रिपरेशन होने तक करीब 6 घंटे बीत चुके होते हैं. एक पूरा दिन लग जाता है. डॉक्टर सौम्या जो टेक्निकल एक्सपर्ट हैं उन्होंने मशीन दिखाते हुए बताया लाइब्रेरी में कई किताबें होती हैं. हम उन्हे ऑर्गनाइज करना चाहते हैं. ठीक वही काम यहां भी करते हैं जिसे हम एम्प्लीफिकेशन कहते हैं. क्योंकि लाइब्रेरी का प्योर फॉर्म में होना जरूरी है. इसके लिए हम एम्प्लीफाइड और नॉन एम्प्लीफायड लाइब्रेरी को अलग कर देते हैं.

Genome Squencing Lab in SGPGI

मशीन की चिप में लाइब्रेरी के सैंपल को लोड करते हैं. फिर इसे सिक्वेंसर मशीन में डालते हैं. यह मशीन सर्वर से कनेक्ट रहती है.  कोरोना की सिक्वेंसिंग में स्ट्रेन को पहले डेटाबेस से मिलाते हैं. इससे पता चलता है कि म्यूटेशन कहां हुआ हैं. इससे पता चलता कि है यह स्ट्रेन किस वैरिएंट का है. दूसरे लैब में अलग सिक्वेंसर मशीन दिखाते हुए डॉक्टर गर्ग ने बताया कि अगर छोटे टेस्ट्स करने हैं तो दूसरे लैब में करते हैं. डॉक्टर शुभांगी श्रीवास्तव ने मशीन रन कर दिखाई और बताया कि यह 24 कैपिलियरी है, जो एक साथ कई सैंपल को ले लेती है. 

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