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Red Hot Sky in Summer: तपती गर्मी का मौसम आया! जानिए क्यों 'लाल होता आसमान' 60 करोड़ भारतीयों के लिए बन सकता है खतरा

भारत के 60 करोड़ लोगों के लिए खतरा बन रहा है हीटवेव. चिलचलाती गर्मी. अल-नीनो की वजह से पारा ऊपर जा रहा है. इस बार मॉनसून भी पानी को तरसेगा. गर्मी का महीना आगे खिसक चुका है. फिलहाल गर्म भट्टी की आंच जैसी हवा बर्दाश्त करिए. भविष्य तो तवे पर तपने जैसा होगा. भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर दिख रहा है.

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2019 के बाद से सूरज भी आग उगलने लगा है. वह सोलर मैक्सिमम में चल रहा है. आफत धरती तक दिख रही है.
2019 के बाद से सूरज भी आग उगलने लगा है. वह सोलर मैक्सिमम में चल रहा है. आफत धरती तक दिख रही है.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने माना है कि अल-नीनो की वजह से भारतीय मॉनसून पर नकारात्मक असर पड़ेगा. यह सिस्टम जुलाई के महीने में सक्रिय होगा. उस समय मॉनसून का दूसरा हिस्सा चल रहा होगा. सिर्फ इतना ही नहीं, अल-नीनो की वजह से देश में गर्मी भी बढ़ी हुई है. कई जगहों पर पारा 45 डिग्री सेल्सियस या उसके आसपास पहुंच गया है. 

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मौसम विभाग का मानना है कि अगले महीने तक तापमान औसत से करीब डेढ़ डिग्री सेल्सियस ऊपर चढ़ेगा. इसका असर जुलाई के महीने पर भी पड़ेगा. तब भी तीखी गर्मी पड़ेगी. वैसे भी वैज्ञानिकों ने माना है कि साल 2100 तक 60 करोड़ भारतीयों के लिए गर्मी एक बड़ी मुसीबत है. बढ़ते तापमान से भारतीयों को निपटना नहीं आ रहा है. 

Heatwave in India

क्योंकि अभी जो नीतियां बनी हुई हैं, उनकी बदौलत पृथ्वी पर मौजूद सभी इंसानों का पांचवें हिस्से की जान मुसीबत में आएगी. ये इस सदी के अंत तक हो जाएगा. वैज्ञानिकों ने बड़ी स्टडी के बाद यह खुलासा किया है. सबसे बुरी हालत भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया, फिलिपींस और इंडोनेशिया की होने वाली है. यहीं के लोगों की जान ज्यादा खतरे में है. 

मौसम विभाग का मानना है कि भारत में इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) सिस्टम बन रहा है, जो मॉनसून को कमजोर पड़ने से रोकेगा. इसलिए उम्मीद है कि मॉनसून सामान्य रहेगा. 1951 से अब तक अल-नीनो भारतीय मॉनसून के लिए 60 फीसदी फायदेमंद रहा है. भारत में जब भी अल-नीनो आया तब मॉनसून सामान्य रहा है. 

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Heatwave in India

भारत में 60 करोड़ लोग जूझ रहे हैं भयानक गर्मी से

इस समय भी भारत में 60 करोड़, नाइजीरिया में 30 करोड़, इंडोनेशिया में 10 करोड़, पाकिस्तान और फिलिपींस में 8-8 करोड़ लोग गर्मी से जूझ रहे हैं. साल 2100 तक जमीन की सतह का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की आशंका जताई गई है. इतनी गर्मी से कुल मिलाकर 200 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान आफत में आने वाली है. यह स्टडी हाल ही में नेचर सस्टेनिबिलिटी में प्रकाशित हुई है. 

यूनिवर्सिटी ऑफ एक्स्टर में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर टिम लेन्टन कहते हैं कि हमें धरती पर कुछ बड़े बदलाव करने होंगे. नहीं तो यहां रहने वाली बड़ी आबादी कायदे से जी नहीं पाएगी. गर्मी से मरना एक बुरी मौत होती है. किसी को इससे बचाना आसान है, लेकिन गर्मी लगे ही क्यों? लोगों को इस मुसीबत से हमलोग मिलकर बचा सकते हैं. 

Heatwave in India

पिछले 8 साल से लगातार तेजी से बढ़ रही है गर्मी

2015 में हुई पेरिस क्लाइमेट ट्रीटी के तहत साल 2100 तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे नहीं बढ़ने देना था. अगर तापमान बढ़ने की दर यह रही तो अगले छह-सात दशक में दुनिया की आबादी 950 करोड़ होगी. जिसमें से करीब 50 करोड़ लोग गर्मी से खत्म हो जाएंगे.  

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पिछले आठ साल से लगातार गर्मी बढ़ रही है. हर साल पिछले वाले से ज्यादा गर्म होता है. पिछले आठ सालों में औसत तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है. जिसकी वजह से हीटवेव्स आ रही हैं. जंगलों में आग ज्यादा लग रही है. लेकिन इंसान जीवाश्म ईंधन को छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है. जिससे कार्बन उत्सर्जन बंद नहीं हो रहा. इसलिए तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. 

Heatwave in India

0.1 डिग्री तापमान बढ़ेगा तो 14 करोड़ लोग होंगे दुखी

आज के समय में जितनी बार 0.1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ेगा, उससे 14 करोड़ लोग प्रभावित होंगे. वह भी भयानक गर्मी का सामना करेंगे. अगर सालाना औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस निकलता है, तो इसे डेंजरस हीट यानी खतरनाक गर्मी कहते हैं. 

आप अगर इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि इंसान हमेशा उन स्थानों पर घनी आबादी में रहती आई है, जहां पर 13 डिग्री सेल्सियस रहा हो. या फिर 27 डिग्री सेल्सियस या उससे कम तापमान रहा हो. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पूरी दुनिया का तापमान बदल रहा है. अब तो कई जगहों का औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है. 

Heatwave in India

40 साल पहले गर्मी के शिकार थे 1.20 करोड़, अब 200 करोड़ 

आझ से 40 साल पहले तक सिर्फ 1.20 करोड़ लोग ही इस तरह की गर्मी का सामना करते थे. लेकिन 40 साल के अंदर ही यह संख्या 200 करोड़ पहुंच चुकी है. भूमध्यरेखा यानी इक्वेटर लाइन के आसपास इंसानों की आबादी ज्यादा है. ऐसे इलाकों को उष्णकटिबंधीय (Tropical) बोलते हैं. यहां के जलवायु में बहुत ज्यादा बदलाव आ रहा है. ये ज्यादा जानलेवा होता जा रहा है. यहां तो कम तापमान और उच्च आद्रता की वजह से भी लोग मारे जा रहे हैं. 

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1979 के बाद से उच्च आद्रता वाली गर्मी (Extreme Humid Heat) की मात्रा दोगुनी हो गई है. विश्व बैंक के मुताबिक भारत का हर इंसान साल भर में दो टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन करता है. नाइजीरिया के लोग आधा टन. जबकि यूरोपीय देशों के लोग सात टन प्रतिवर्ष और अमेरिकी लोग 15 टन प्रतिवर्ष. कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का सरकारों का वादा और कंपनियों का इरादा अमली जामा पहनता नहीं दिख रहा है. 

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2027 से ही बढ़ने लगेगा औसत तापमान

सिर्फ चार साल और. यानी 2027 से पहले, पूरी दुनिया का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. ये डरावना खुलासा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization - WMO) ने किया है. इसका मतलब ये नहीं है कि दुनिया का तापमान 2015 के पेरिस एग्रीमेंट के स्तर से ऊपर चला जाएगा. पर गर्मी बढ़ेगी. 

ये तो पक्का है. पूरी दुनिया जलेगी. मौसम का समय बदलेंगे. आपदाएं आएंगी. WMO ने यह खुलासा 30 साल के औसत वैश्विक तापमान (Average Global Temperature) के आधार पर किया है. संगठन ने कहा कि 2027 तक दुनिया का तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. इसकी 66 फीसदी संभावना है. 

हर पांच साल में एक साल होगा बेहद गर्म

WMO ने एक और खतरनाक चेतावनी जारी की है. जिसमें कहा है कि अगले हर पांच साल में एक साल रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ने के 98 फीसदी आशंका है. यह प्रक्रिया साल 2016 से शुरू हो चुकी है. यह एक बड़े स्तर का जलवायु संकट है, जिसे ज्यादातर देश गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. 

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जलवायु परिवर्तन से आएंगे ज्यादा अल-नीनो

जब तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं करेंगे, हम बढ़ती गर्मी को रोक नहीं पाएंगे. इसका असर अलग-अलग देशों के हर मौसम पर पड़ेगा. भारत की हालत इसलिए खराब होगी क्योंकि अल-नीनो के साथ जब इंसानों द्वारा किया जा रहा जलवायु परिवर्तन मिलेगा तो स्थितियां और भी बद्तर हो जाएंगी. 

अल-नीनो से गर्म होगा वायुमंडल, फिर धरती

WMO के महासचिव पेटेरी तालस ने कहा कि ज्यादा गर्मी बढ़ने से अल-नीनो की स्थिति भी पैदा होगी. इसकी वजह से ट्रॉपिकल प्रशांत महासागर की ऊपरी सतह गर्म होगी. इससे वायुमंडल भी गर्म होगा. जब वायुमंडल गर्म होगा तो पूरी दुनिया का तापमान बढ़ेगा. अगले कुछ महीनों में पूरी दुनिया में अल-नीनो का असर देखने को मिलने वाला है. 

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भारत-चीन का बड़ा इलाका बदलेगा रेगिस्तान में

पिछले साल एशिया के कई इलाकों में तापमान बढ़ने की वजह से सूखे की हालत बनी. ग्लेशियर पिघले. यानी वाटर टावर कहे जाने वाले हिमालय के ग्लेशियरों को पिघलने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. अगर ये पिघल गए तो नदियां सूख जाएंगी. भविष्य में इंसानों को पानी नहीं मिलेगा. जंगलों को पानी नहीं मिलेगा. यानी पाकिस्तान, भारत और चीन बहुत बड़ा इलाका रेगिस्तान में बदल जाएगा. 

बढ़ेंगी प्राकृतिक आपदाएं, नुकसान अरबों में होगा

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प्राकृतिक आपदाएं आर्थिक नुकसान लेकर आती हैं. पिछले साल सूखे की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान 63 फीसदी बढ़ गया. बाढ़ से होने वाला नुकसान 23 फीसदी और भूस्खलन से होने वाला नुकसान 147 फीसदी बढ़ गया. ये तुलना साल 2001 से 2020 के औसत आर्थिक नुकसान से की गई है.  

Heatwave in India

साल 2021 में एशिया में 100 से ज्यादा प्राकृतिक आपदाएं आईं. जिसमें से 80 फीसदी बाढ़ और तूफान से संबंधित थे. इनकी वजह से 4 हजार लोगों की मौत हुई. इनमें ज्यादातर मौतें बाढ़ की वजह से हुईं. इन आपदाओं से 4.83 करोड़ लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए. अगर आप एशिया का तापमान देखेंगे तो साल 2020 में जमीन के ठीक ऊपर बहने वाली हवा 0.86 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म थी. 1981-2010 के औसत तापमान से ज्यादा. लेकिन 2020 पांचवां और 2021 सातवां सबसे गर्म साल था. 

40 साल में हिमालय के पांच बड़े ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं

पिछले साल एशिया के उच्च पहाड़ी इलाकों पर ग्लेशियर तेजी से पिघले. सूखे और बढ़ते तापमान का असर दक्षिण-पूर्वी तिब्बती पठार, पूर्वी हिमालय और पामीर अलाई में देखने को मिला. 2020-2021 लगातार दो ऐसे साल रहे जब हिमालय बेल्ट के ग्लेशियर तेजी से पिघले, जो साल 2009 के आंकड़ों के बराबर थे. पिछले 40 सालों में हिमालय के पांच बड़े ग्लेशियर बहुत ज्यादा पिघल चुके हैं. 

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यूपी से लेकर बंगाल तक गर्मी का टॉर्चर

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