जलवायु प्रदूषित सिर्फ गाड़ियों और इंडस्ट्री के धुओं से नहीं होता. आपके खाने से भी होता है. जलवायु प्रदूषण में 25 फीसदी हिस्सा भोजन संबंधी उत्सर्जन होता है. जिसे वैकल्पिक आहार कहते हैं, जैसे कॉफी, अल्कोहल और केक. लेकिन इंग्लैंड में हुई एक स्टडी के मुताबिक जो पुरुष ज्यादा मांस (Meat) खाते हैं, वो महिलाओं की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा जलवायु प्रदूषित करते हैं. यानी अधिक जलवायु उत्सर्जन (Climate Emission) करते हैं.
इस स्टडी के जरिए साइंटिस्ट यह बताना चाहते हैं कि लोगों को सस्टेनेबल फूड यानी टिकाऊ भोजन पर ज्यादा ध्यान देने की बात कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर पौधों पर आधारित खाद्य सामग्री का उपयोग किया जाए तो जलवायु प्रदूषण यानी क्लाइमेट एमिशन कम होगा. एक और स्टडी पश्चिमी देशों में हुई जिसमें कहा गया है कि वेगन (Vegan) और शाकाहारी (Vegetarian) भोजन किसी भी सामान्य खाने से सस्ता होता है.
खाद्य उत्पादों से होता 30% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
फूड प्रोडक्शन यानी खाद्य उत्पादों की वजह से 30 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. इससे पहले भी कई स्टडीज में यह बताया जा चुका है कि मांस खाने वाले देशों में इन गैसों का उत्सर्जन ज्यादा होता है. इसलिए वहां के लिए लोगों को शाकाहार और वेगन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. ताकि जलवायु संकट से जूझा जा सके. प्रदूषण को कम किया जा सके. मवेशियों से जुड़े जंगली कटाव और मीथेन उत्सर्जन से दिक्कत और बढ़ जाती है.
नई स्टडी जिसे Plos One जर्नल में प्रकाशित किया गया है. इस स्टडी में 3200 खाद्य उत्पादों की स्टडी की गई है. वैज्ञानिकों ने 212 ब्रिटिश लोगों के खान-पान का अध्ययन किया गया. उनके खाने-पीने के पैटर्न को तीन दिन तक रिकॉर्ड किया गया. पता चला कि 31 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन मांसाहार से हो रहा है. 14 फीसदी डेयरी उत्पादों से. 15 फीसदी तरल पदार्थ और 8 फीसदी केक, बिस्किट और कॉन्फेक्शनरी से हो रहा है.
मांसाहारी लोग शाकाहारियों से 59% ज्यादा उत्सर्जन करते हैं
स्टडी में पता चला कि मांसाहार करने वाले लोग शाकाहारियों से 59 फीसदी ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं. पुरुष मांस खाकर महिलाओं की तुलना में 41 फीसदी ज्यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं. क्योंकि उनके खाने में जितना ज्यादा मांस होता है, उतना ही ज्यादा तरल पदार्थ भी होता है. इसलिए उनके खाने से प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. लीड्स यूनिवर्सिटी की साइंटिस्ट होली रिपिन ने कहा कि यह स्टडी बताती है कि कितना खाना चाहिए और कितना नहीं. किस तरह का खाना चाहिए और किस तरह का नहीं. ताकि हम अपनी धरती को बचा सकें.
Men’s meat-heavy diets cause 40% more climate emissions than women’s, study finds https://t.co/mS5RRz2tZm
— The Guardian (@guardian) November 22, 2021
होली रिपिन ने कहा कि मांसाहार कम करके धरती को बचाया जा सकता है. खासतौर से लाल मांस (Red Meat). लेकिन लोगों को लगता है कि हमारा क्या हम तो प्रलय आने तक जिंदा नहीं रहेंगे, इसलिए जितना मन करे खा लो. पर वो अपनी संतानों की भलाई नहीं सोचते. धरती का न सोचो लेकिन संतानों को सही जमीन और पर्यावरण देने के बारे में तो सोचना होगा. हमारी स्टडी में यह नहीं कहा जा रहा है कि पुरुष ज्यादा मांस खाते हैं. आमतौर पर पुरुषों की डाइट महिलाओं से ज्यादा होती है लेकिन वो जितना भी खाते हैं, उससे वो महिलाओं से ज्यादा ग्रीनहाउस गैस निकालते हैं.
एक ऐसी ही स्टडी और आई थी जिसमें कहा गया था कि पुरुष सामानों पर जो पैसे खर्च करते हैं, उससे वो महिलाओं की तुलना में 160 फीसदी ज्यादा उत्सर्जन करते हैं. जिसमें पेट्रोल और डीजल का खर्च सबसे ज्यादा है. होली रिपिन ने कहा कि वैज्ञानिकों के पास 40 हजार से ज्यादा ब्रांडेड खाद्य उत्पादों की सूची है, जिस पर रिसर्च हो रही है कि ये भविष्य में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं, बिना इंसानी सेहत बिगाड़े.