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रत्नों से ठसाठस भरा है मार्स क्रेटर, मिल सकते हैं जीवन के संकेत 

एक नए शोध से पता चलता है कि मंगल के क्रेटर में, दरारों के आसपास चट्टानों पर दिखने वाली रहस्यमयी 'चमक', पानी से भरे ओपल रत्न की वजह से हो सकती है. ये चमक, एक-दो जगहों पर नहीं बल्कि गेल क्रेटर की 154 किलोमीटर चौड़ी, पुरानी प्राचीन झील की पूरी तलहटी पर दिखती है.

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यहां बड़ी संख्या में पानी से भरे हुए ओपल रत्न हो सकते हैं (Photo: Malin Space Science Systems-NASA)
यहां बड़ी संख्या में पानी से भरे हुए ओपल रत्न हो सकते हैं (Photo: Malin Space Science Systems-NASA)

नासा (NASA) के मार्स क्यूरियोसिटी रोवर (Mars Curiosity rover) के नए डेटा से पता चलता है कि मंगल ग्रह (Mars) पर एक पुरानी सूखी झील की तलहटी में भारी मात्रा में ओपल जेमस्टोन (Opal gemstones) हो सकते हैं. 

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जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: प्लैनेट्स (Journal of Geophysical Research: Planets) में छपी एक स्टडी के मुताबिक, ओपल जेमस्टोन की वजह से ही, मंगल के गेल क्रेटर (Gale Crater) की दरार वाली सतह चमकदार दिखती है. साथ ही, इनसे इस संभावना को भी बल मिलता है कि मंगल ग्रह की सतह के नीचे, चट्टान और पानी एक साथ थे. इससे इस बात को भी मज़बूती मिलती है कि मंगल ग्रह पर जीवाणुओं यानी माइक्रोबियल जीवन (Microbial life) का वजूद था. 

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 दरारों के आसपास हल्के रंग की चमकने वाली चट्टानें देखी गई थीं (Photo: NASA)

दूसरी दुनिया पर जीवन के संकेतों की खोज करते समय वैज्ञानिक अक्सर पानी पर ही फोकस करते हैं, क्योंकि यह जीवन के लिए ज़रूरी है. हालांकि, अब मंगल ग्रह पर पानी नहीं है इसलिए वैज्ञानिकों को पानी के भूवैज्ञानिक संकेतों की तलाश करनी चाहिए, जो मंगल की चट्टानों और मिट्टी से मिलते हैं. इनमें कुछ खनिज और ऐसी संरचनाएं मौजूद हैं, जिनके लिए चट्टान और पानी का एक दूसरे से मिलना ज़रूरी होता है. 

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शोधकर्ताओं ने कुछ सालों पहले, मंगल ग्रह की सतह में दिखने वाली दरारों (Fractures in the Martian surface) के आस-पास भी ऐसा ही संकेत देखा था. इनमें से कुछ दरारों के आसपास हल्के रंग की चमकने वाली चट्टानें देखी गई थीं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ओपल रत्न की मौजूदगी ही जीवन का संकेत है, क्योंकि सिलिका युक्त चट्टानें जब पानी के साथ क्रिया करती हैं, तभी ओपल बनता है.

इस तरह के संकेत मिलने के बाद, शोधकर्ताओं ने क्यूरियोसिटी रोवर के आर्काइव का गहन अध्ययन किया और पाया कि ओपल की ये चमक, एक-दो जगहों पर नहीं बल्कि गेल क्रेटर की 154 किलोमीटर चौड़ी, पुरानी प्राचीन झील की पूरी तलहटी पर दिखती है.

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (U.S. Geological Survey) के शोधकर्ता, भौतिक विज्ञानी ट्रैविस गेब्रियल (Travis Gabriel) ने बताया कि नई जानकारी और आर्काइव के डेटा की स्टडी से पता चला है कि दोनों में काफ़ी समानताएं हैं. उन्होंने बताया कि इतने बड़े पैमाने पर दरारों का मिलना और उन दरारों में इतनी मात्रा में ओपल का होना अविश्वसनीय है.

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गेल क्रेटर की पूरी तलहटी पर ये चमक दिखती है.(Photo: NASA)

गेब्रियल और उनके सहयोगी गेल क्रेटर के चारों ओर क्यूरियोसिटी के ट्रैवर्स के आर्काइव से बड़ी संख्या में मिली पुरानी इमेज की स्टडी कर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने देखा कि नए मिशन से बहुत पहले की एक इमेज में, दरार के आस-पास की चट्टानों में ठीक वैसी ही चमक थी जैसी हाल की इमेज में देखी गई है. 

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इमेज और स्पेक्ट्रोमेट्री का इस्तेमाल करके चट्टानों का विश्लेषण करने वाले क्यूरियोसिटी के केमकैम इंस्ट्रूमेंट (ChemCam instrument) के डेटा से पता चलता है कि हाल ही में जिन हल्की चट्टानों की स्टडी की गई है, उनमें सिलिका युक्त ओपल होने की संभावना है.

इन चट्टानों के बारे में और ज़्यादा जानकारी पाने के लिए गेब्रियल और उनकी टीम ने लुबंगो ड्रिल साइट (Lubango drill site) क्रेटर के अंदर एक अलग जगह पर चमकने वाली एक दूसरी दरार की जांच की. यहां, टीम ने क्यूरियोसिटी के डायनेमिक अल्बेडो ऑफ न्यूट्रॉन इंस्ट्रूमेंट (Dynamic Albedo of Neutrons -DAN) का इस्तेमाल किया. यह इंस्ट्रूमेंट उन न्यूट्रॉन को मेज़र करता है जो कॉस्मिक किरणों, सौर मंडल के बाहर से उच्च ऊर्जा वाले कणों से मंगल की सतह पर दस्तक देते हैं. ये मंगल ग्रह पर लगातार गिरते हैं, हालांकि हाइड्रोजन की उपस्थिति में, उछलते हुए न्यूट्रॉन की गति धीमी हो जाती है क्योंकि हाइड्रोजन पानी का मुख्य घटक है. डीएएन इंस्ट्रूमेंट को बड़ी संख्या में धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन का पता लगा है, जिसका मतलब है कि उस इलाके में पानी से भरी हुई चट्टानें यानी ओपल हैं.

 

मिशन से पहले की दरार की चमक वाली फोटो और इस डेटा से शोधकर्ताओं को पता चलता है कि काफ़ी पहले, गेल क्रेटर में पानी मौजूद रहा होगा. नई स्टडी से इस बात के संकेत मिलते हैं कि झील के सूखने के बाद भी गेल क्रेटर में लंबे समय तक पानी बचा रहा होगा. इसका मतलब है कि मंगल जीवन थोड़ा और लंबा रहा होगा. शोधकर्ताओं ने बताया कि मंगल की आधुनिक भूगर्भीय अवधि करीब 290 करोड़ साल पुरानी है. जबकि मंगल लगभग 406 करोड़ साल पुराना माना जाता है.

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