दुनिया में अजूबों की बात चलें तो हम एक के बाद एक इमारतों के नाम गिनाते हैं. ये इमारतें सुंदर और भव्य तो हैं, लेकिन इनमें अनोखापन कुछ नहीं. वहीं कुदरत के पास एक से बढ़कर एक ऐसे रहस्य हैं, जिनका ओर-छोर नहीं मिलता. रोमानियन कस्बे कोस्टेस्टी के लिविंग स्टोन्स ऐसी ही चीज हैं. वे चलते-फिरते और बच्चों को जन्म देते लगते हैं. लंबे समय तक लोग उन्हें चमत्कारी पत्थर मानते रहे. बाद में उन्हें ट्रोवेंट्स कहा जाने लगा.
किस तरह के होते हैं पत्थर?
ट्रोवेन्ट शब्द जर्मन टर्म सैंडेस्टाइन कॉन्क्रीशन्स से आया है, जिसका मतलब है, सीमेंट की तरह की रेत. ये अलग-अलग शेप और साइज के हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर ये अंडाकार और चिकने दिखते हैं. कई बार पत्थर 15 फीट के भी होते हैं तो बेबी ट्रोवेन्ट कुछ ग्राम के हो सकते हैं, मतलब इतने छोटे कि हथेली में समा जाएं. बाद में इनका आकार बढ़ता चला जाता है.
लोग इसे एलियन पॉड भी मानने लगे थे
18वीं सदी में जब पहली बार लोगों का इसपर ध्यान गया तो वे डर गए. पहले उन्हें डायनासोर के अंडों का जीवाश्म समझा गया. फिर एलियन पॉड समझा जाने लगा जो धरती के लोगों पर नजर रखने आए थे. लंबे समय तक जगह के आसपास कोई आबादी नहीं बस सकी क्योंकि कोई भी लिविंग स्टोन्स का रहस्य नहीं जानता था. स्थानीय लोग इन्हें पारलौकिक ताकतों से भी जोड़ते रहे.
ये वजह हो सकती है आकार बदलने की
दुनियाभर के जियोलॉजिस्ट इन पत्थरों पर रिसर्च कर चुके लेकिन अभी भी इनके आकार बढ़ने की वजह साफ नहीं हो सकी. असल में जीवाश्म विज्ञानियों का मानना है कि ये 6 मिलियन साल पुराने पत्थर हैं, जो बलुआ पत्थर यानी ग्रिटस्टोन्स से बने हैं. ये चूना पत्थर के भीतर लिपटे होते हैं. इसी बात को देखते हुए एक थ्योरी मानती है कि बारिश के वक्त ये पत्थर कई मीटर तक बढ़ जाते हैं. इसका कारण इनमें मौजूद मिनरल सॉल्ट की भारी मात्रा हो सकती है जो पानी पड़ते ही फैलने लग जाती है. हालांकि इसपर भी वैज्ञानिक ही सहमत नहीं हो सके.
खुद वैज्ञानिक अपनी थ्योरीज को नकारते रहे
साल 2008 में ओस्लो में इंटरनेशनल जियोलॉजिकल कांग्रेस ने कहा कि ट्रोवेंट्स के बारे में गलत अनुमान लगाया गया. हालांकि असल बात क्या है, जिसकी वजह से पत्थरों के साइज में बदलाव हो रहा है, या वे बाकी पत्थरों से अलग हैं, इसपर कोई स्पेसिफिक कारण नहीं दिया जा सका. सिर्फ इतना माना गया कि ये पत्थर लगभग 5.3 मिलियन साल पहले किसी बड़े भूकंप के बाद जमीन के भीतर से आए रिसाव से बने होंगे.
समुद्री इलाका रहा होगा!
इसके आसपास की जमीन से ये भी लगता है कि किसी समय यहां पर समुद्र रहा होगा. ये बात नेचर कम्युनिकेशन्स में द जियोलॉजिकल एंड पेलिओन्टोलॉजिकल हैरिटेज ऑफ द बुजाऊ लैंड जियोपार्क नाम से साल 2017 में प्रकाशित हुई थी. इसमें भी ये नहीं साफ हो सका कि चट्टानें आखिर क्यों आकार बदल रही हैं.
पत्थरों पर दिखती हैं एज रिंग्स
रिसर्चरों का कहना है कि हर हजार साल में ट्रोवेंट्स लगभग 1.5 से 2 इंच (4 से 5 सेंटीमीटर) बढ़ जाते हैं. पत्थर पर ये ग्रोथ बल्बनुमा होती है, यानी उसपर एक छोटा उभार हो आता है. इसी बात को देखकर कहा जाता है कि पत्थरों से बच्चों का जन्म हो रहा है. लेकिन इसमें कई अनोखी चीजें हैं जो आमतौर पर जिंदा पेड़ों में दिखती हैं. जैसे एज रिंग्स. पत्थरों पर निकले उभारों को अगर काटा जाए, तो उनके भीतर छल्लेनुमा शेप दिखता है, जो पुराने पेड़ों के भीतर होता है. इससे ये पता लगता है कि वे कितने पुराने हैं.
रोमानिया के अलावा ये पत्थर रूस, कजाकिस्तान और चेक गणराज्य में भी कहीं-कहीं दिखते हैं. यूनेस्को ने ऐसी सारी जगहों को संरक्षित घोषित किया है.
डेथ वैली के पत्थरों में भी छिपे हैं राज
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि पत्थर न केवल बढ़ते हैं, बल्कि सरकते भी हैं. इसके मूवमेंट पर भले ही कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल सका, लेकिन इनकी तुलना डेथ वैली के पत्थरों से होने लगी. अमेरिका के कैलीफोर्निया की डेथ वैली को वैसे तो अपने जला देने वाले तापमान के लिए जाना जाता है, लेकिन वहां के पत्थर भी कम रहस्यमयी नहीं. यहां भारी भरकम पत्थर अपने-आप मीटरों दूर खिसक जाते हैं. सेलिंग स्टोन कहलाने वाले इन पत्थरों पर भारी रिसर्च हुई लेकिन उनमें गति का कोई भी वैज्ञानिक कारण पता नहीं लग सका.
माइक्रोब्स की वजह से होता होगा मूवमेंट!
स्पेन की कम्प्लूटेंस यूनिवर्सिटी ने शोधकर्ताओं ने माना कि वैली की मिट्टी में बहुत से माइक्रोब्स हैं, जो जमीन को चिकना बना देते हैं. इसी वजह से पत्थर सरकने लगते हैं. कुछ वैज्ञानिक वैली की तेज हवाओं को इसकी वजह मानते रहे, लेकिन ये बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं कि सैकड़ों किलोग्राम तक के वजनी पत्थर मिट्टी या हवा की वजह से जगह बदलने लगेंगे.