अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने सबसे पहले चांद पर इंसान को पहुंचाया था. नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने 10 जुलाई 1969 को चांद की सतह पर पैर रखा था. नील ने सतह पर उतरने के बाद कहा था कि One small step for man, one giant leap for mankind. यानी इंसान का एक छोटा कदम, पूरी इंसानियत के लिए एक लंबी छलांग है. लेकिन इस छोटे कदम या लंबी छलांग के बाद नासा ने पांच दशकों से चंद्रमा पर दोबारा कदम क्यों नहीं रखा. वजह क्या थी? क्या तकनीक खत्म हो गई थी? या फिर उन्होंने वहां एलियन देख लिया था. या डर की वजह से नहीं गए. आइए जानते हैं कि इसके पीछे की वजह क्या थी.
नासा दुनिया का सबसे ताकतवर और सबसे बड़ा रॉकेट चंद्रमा (World's Most Powerful and Biggest Rocket) पर भेज रहा है. दुनिया नासा के इस SLS रॉकेट को मेगारॉकेट (Megarocket) भी कह रही है. सबसे बड़ा उद्देश्य है 50 सालों बाद इंसानों को चंद्रमा पर फिर से भेजना. SLS की पहली लॉन्चिंग 29 अगस्त 2022 को हो रही है. इसमें किसी इंसान को नहीं भेजा जा रहा है. फिलहाल इसमें सिर्फ ओरियन स्पेसशिप (Orion Spaceship) जा रहा है. जो चांद के चक्कर लगाकर वापस धरती पर आएगा. सबकुछ ठीक रहा तो अर्टेमिस-3 मिशन तक इंसानों को इसी स्पेसशिप में बिठाकर चंद्रमा पर भेजा जाएगा. ये मिशन 2025 में होगा.
पहली बार नील ने कदम रखे थे, पर आखिरी कदम किसके थे?
नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने तो पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखे थे. आखिरी बार दिसंबर 1972 में एस्ट्रोनॉट जीन सर्नैन और हैरिसन श्मिट ने अपोलो प्रोग्राम के तहत मूनवॉक किया था. हैरिसन श्मिट ने कहा कि ऐसा नहीं है कि नासा ने प्रयास नहीं किया. पिछले पांच दशकों में हमने दो बार और प्रयास किया लेकिन सरकारों ने मना कर दिया. अब इस बार का Artemis-1 मिशन के सफल होने की मैं कामना करता हूं. ट्रंप की सरकार के बाद इस मिशन को लिफ्ट मिला है. उम्मीद है कि तीन साल में इंसान फिर से चांद की मिट्टी पर अपने जूतों के निशान बनाएगा. जैसा नील ने बनाया था.
2004 में राष्ट्रपति बुश ने बनाया था चांद पर जाने का प्लान... पर
साल 2004 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने चंद्रमा पर फिर से इंसानों को भेजने का लक्ष्य बनाया था. उस समय बनाए गए प्लान के मुताबिक अगर उस समय तैयारियां शुरू कर दी गई होंती तो अधिकतम 2020 तक इंसान चांद पर पहुंच जाता. बल्कि साल 2015 में ही चंद्रमा पर एस्ट्रोनॉट्स लैंड हो चुके होते. कुछ देरियां तकनीकी वजहों से होती हैं. जैसे NASA SLS रॉकेट हो ही ले लीजिए. अर्टेमिस प्रोग्राम का सबसे बड़ा हिस्सा. बनने में 12 साल लग गए. 20 बिलियन डॉलर्स से ज्यादा लग गए. अपने ओरिजिनल टाइमलाइन और बजट से दोगुना समय लग गया.
First tank: full! The liquid oxygen tank has been loaded and will be replenished while we continue topping off the liquid hydrogen tank. pic.twitter.com/hZ9CNdfzUr
— NASA_SLS (@NASA_SLS) August 29, 2022
चांद पर इंसानों को भेजने में देरी की सबसे बड़ी वजह ये है
लेकिन नासा के वैज्ञानिकों, एस्ट्रोनॉट्स और प्रमुखों की बात मानें तो साइंस और टेक्नोलॉजी कभी भी मून मिशन को लेकर देरी की वजह नहीं रही. चांद पर इंसानों को भेजने में देरी की सबसे बड़ी वजह थी बजट की कमी और राजनीतिक इच्छाशक्ति. इस वजह से पांच दशकों में एक बार भी चांद पर इंसानों को भेजने के लिए किसी भी सरकार ने तैयारी नहीं की. न ही इसे लेकर कोई योजना बनाई. नासा एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन (Bill Nelson) ने कहा कि अंतरिक्ष की उड़ान बेहद खतरनाक होती है. तकनीक के जरिए यात्रा आसान नहीं है.
पूर्व नासा प्रमुख जिम ब्रिडेन्स्टीन ने कही थी ये चौंकाने वाली बात
साल 2021 में नासा एडमिनिस्ट्रेटर बनने से पहले बिल नेल्सन फ्लोरिडा के सीनेटर थे. उसके पहले लंबे समय तक स्पेस के लिए बनी कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे. बिल से पहले नासा प्रमुख जिम ब्रिडेन्सटीन (Jim Bridenstine) थे. उस समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) का समय था. तब जिम ने कहा था कि इस प्रोग्राम ने जरुरत से ज्यादा पैसे खर्च करवा दिए हैं. अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत होती तो हम इस समय चांद ही नहीं बल्कि मंगल पर खड़े होते. लेकिन पॉलिटिकल डिले यानी राजनीतिक देरी की वजह से हम आज पीछे हैं.
We are ready. 🚀
— NASA Artemis (@NASAArtemis) August 24, 2022
In just five days, the first launch opportunity of the integrated @NASA_SLS rocket and @NASA_Orion spacecraft will take place. The uncrewed #Artemis I mission around the Moon will pave the way for future crewed missions and begin a new chapter of exploration. pic.twitter.com/fT1tMiGjeb
नासा को फंडिंग में की गई देरी और कमी भी बनी थी वजह
सरकारों की तरफ से नासा को दी गई फंडिंग में देरी और कमी भी वजह बनी थी. उसके अलावा अमेरिकी लोगों का मून मिशन में कोई इंट्रेस्ट भी नहीं था. साल 2018 में PEW ने एक सर्वे किया था, जिसमें ज्यादातर अमेरिकी लोगों ने मून मिशन की तुलना में क्लाइमेट रिसर्च (Climate Research), उल्कापिंडों की निगरानी (Monitoring Asteroids) और बेसिक स्पेस साइंस पर जोर देने को कहा था. हालांकि, 72 फीसदी अमेरिकी ये मानते थे कि अमेरिका को स्पेस एक्सप्लोरेशन में दुनिया का नंबर एक देश बने रहना चहिए. सिर्फ 13 फीसदी लोगों ने ये कहा था कि चंद्रमा पर एस्ट्रोनॉट्स को भेजना चाहिए. पिछली साल एक और सर्वे में भी यही नतीजे आए थे.
नई सरकारें और राष्ट्रपति कर देते हैं प्राथमिकताओं में बदलाव
जब भी नई सरकारें आती हैं. नए राष्ट्रपति बनते हैं. तब नासा की प्राथमिकताओं में बदलाव होता है. इस वजह से किसी भी इंसानी मिशन को पूरा करना कठिन हो जाता है. क्योंकि इंसानी मिशन में काफी ज्यादा लागत, रिसर्च और समय लगता है. हर चार या आठ साल में सरकार बदलते ही नासा की प्राथमिकताओं को बदल दिया जाता है. साल 2004 में बुश की सरकार के पास दो बड़े प्रोजेक्टस थे. पहला स्पेश शटल (Space Shuttle) को खत्म करना. दूसरा चांद के लिए नया मिशन शुरू करना.
बुश से शुरू हुआ प्रोजेक्ट को ओबामा ने तेजी से बढ़ाया
तब नासा ने नया प्रोजेक्ट बताया जिसका नाम था कॉन्स्टीलेशन प्रोग्राम (Constellation Program). इसके तहत एरीज (Ares) रॉकेट और ओरियन स्पेसशिप से इंसानों को चांद पर पहुंचाना था. इस मिशन को लेकर पांच साल तक रिसर्च चलती रही. 9 बिलियन डॉलर्स से ज्यादा खर्च हो गए. इसके बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barack Obama) बने. उन्होंने कॉन्स्टीलेशन को बंद करके SLS रॉकेट के प्रोगाम को आगे बढ़ाने की अनुमति दी. इसके बाद शुरू हुआ नासा के ह्यूमन स्पेसफ्लाइट मिशन की नई शुरुआत. बाद में नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने इस प्रोजेक्ट यानी अर्टेमिस मिशन का बजट बढ़ाया. तब जाकर तेजी से मिशन शुरू किया गया.