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पुरानी सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में ही रिपेयर कर देगी NASA की नई तकनीक, इससे सैटेलाइट की उम्र बढ़ जाएगी

वैज्ञानिक अंतरिक्ष में कई सैटेलाइट भेजते हैं. लेकिन ये सैटेलाइट हमेशा ठीक नहीं रहतीं, खराब हो जाने पर ये अंतरिक्ष का मलबा बन जाती हैं. लेकिन NASA के नए मिशन से खराब हो चुकी सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में ही रिपेयर कर दिया जाएगा, जिससे ये कुछ और समय तक काम कर सकेंगी.

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अब सैटेलाइट की उम्र बढ़ाएगी नई तकनीक (Photo: NASA)
अब सैटेलाइट की उम्र बढ़ाएगी नई तकनीक (Photo: NASA)

कभी सोचा है जो सैटेलाइट पुराने या बेकार हो जाते हैं, उनका क्या होता है? ये पुराने उपग्रह या तो वातावरण में सुरक्षित रूप से जल जाते हैं या फिर वे अंतरिक्ष में ही रह जाते हैं. लेकिन नासा अब ऐसी तकनीक पर काम कर रहा है जो अंतरिक्ष में रहते हुए ही इन सैटेलाइट्स को रिपेयर कर सकती है. इस तकनीक से पुराने सैटेलाइट में ईंधन भरा जा सकता है और उन्हें अपग्रेड किया जा सकता है. इससे इन सैटेलाइट का जीवनकाल बढ़ सकता है और अंतरिक्ष उड़ानें ज्यादा टिकाऊ बन सकती हैं.

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नासा फिलहाल, OSAM-1 टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है. OSAM-1 (ऑन-ऑर्बिट सर्विसिंग, असेंबली और मैन्युफैक्चरिंग 1) उपकरणों और तकनीक से लैस एक रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट है, जिसे सैटेलाइट का जीवन बढ़ाने के लिए बनाया गया है. ये वे सैटेलाइट हैं जिन्हें इस तरह डिज़ाइन नहीं किया गया है, जिनकी सर्विस ऑर्बिट में की जा सके.

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पहले इस मिशन को Restore-L के नाम से जाना जाता था (Photo: NASA)

अपने मिशन के दौरान, OSAM-1 सर्विसर सरकारी सैटेलाइट को रिपेयर करेगा, उसमें ईंधर भरेगा, उसे अपड्रेड करेगा या फिर उसकी जगह बदलकर उसका जीवन बढ़ाने का काम करेगा. 

लागत कम, मुनाफा ज़्यादा

इस तकनीक के कई फायदे हैं. OSAM-1 की मदद से सैटेलाइट ऑपरेटर अपने काम को और भी सही तरह से मैनेज कर पाएंगे. इसमें लागत कम है और मुनाफा ज़्यादा है. इतना ही नहीं, इससे ऑर्बिट में मलबे की बढ़ती समस्या को कम करने में भी मदद मिलेगी. क्योंकि ये खराब हो चुके सैटेलाइट अंतरिक्ष में यहां-वहां तैरते रहते हैं. कई बार तो ये बेकार हो चुके सैटेलाइट गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं. इसके अवशेष अक्सर समुद्र में तैरते दिखाई देते हैं.  

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बेकार हो चुके सैटेलाइट अंतरिक्ष का मलबा बन जाते हैं (Photo: Getty)

इस मिशन की वजह से खराब हो चुकी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ही रिपेयर कर दिया जाएगा, जिससे ये कुछ और समय तक काम कर सकेंगी. इस मिशन की सफलता के बाद, सर्विसिंग टैक्नोलॉजी नासा के बाकी मिशनों पर भी शुरू की जाएगी. नासा OSAM-1 टेक्नोलॉजी को कमर्शियल संस्था को भी दे रहा है, ताकि इस नई डोमेस्टिक सर्विसिंग इंडस्ट्री की शुरुआत हो सके. 

 

कैसा होगा OSAM-1

OSAM-1 स्पेसक्राफ्ट में एक पेलोड लगा होगा, जिसे SPIDER (स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर डेक्टेरस रोबोट) कहा जाता है. स्पाइडर में एक हल्का 16-फुट लंबा रोबोटिक आर्म भी शामिल है. OSAM-1 पर पहले ही दो रोबोटिक आर्म्स लगे हुए हैं, इसे मिलाकर कुल तीन आर्म हो जाते हैं. स्पाइडर 32-फुट हल्की कंपोज़िट बीम बनाएगा.

आपको बता दें कि अप्रैल 2020 तक, OSAM-1 को रीस्टोर-एल (Restore-L) के नाम से जाना जाता था. बाद में इसका नाम बदल दिया गया.

 

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