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520 साल से जमा 'एनर्जी' बनी खतरा, पश्चिमी नेपाल के साथ भारत के इस शहर में बड़े भूकंप की आशंका

राष्ट्रीय भूकंप निगरानी एवं अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ भूकंप विज्ञानी भरत कोइराला ने बताया कि लंबे समय से धरती के अंदर सक्रिय यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव हो रहा है, कोइराला ने बताया कि पश्चिमी नेपाल के गोरखा (जिला) से लेकर भारत के देहरादून तक टेक्टोनिक हलचल के कारण बहुत सारी एनर्जी जमा हो गई है. भूकंप ही उस एनर्जी को मुक्त करने का एकमात्र तरीका है.

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पश्चिमी नेपाल में अभी भी खतरनाक भूकंप का खतरा मंडरा रहा है
पश्चिमी नेपाल में अभी भी खतरनाक भूकंप का खतरा मंडरा रहा है

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में शुक्रवार रात आए 6.4 तीव्रता वाले भूकंप ने भारी तबाही मचाई है. अब तक 154 लोगों की मौत हो चुकी है, सैकड़ों लोग घायल हैं. भूकंप के झटके इतने तेज थे कि नेपाल में कई मकान जमींदोज हो गए. भूकंप के कारण ज्यादातर लोगों की मौत रुकुम पश्चिम और जाजरकोट में हुई है. वहीं, एक भूकंपविज्ञानी का कहना है कि  खतरनाक हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र पर स्थित नेपाल अत्यधिक भूकंप-संभावित देश है और इसके भूकंप प्रभावित पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र में बड़े भूकंप का खतरा होने की सबसे ज्यादा आशंका है.

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PDNA की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल दुनिया का 11वां सबसे अधिक भूकंप झेलने वाला देश है. इसलिए जब शुक्रवार देर रात नेपाल के सुदूर पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया, तो यह पहला भूकंप नहीं था. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि शुक्रवार आधी रात को पश्चिमी नेपाल में आया भूकंप इस साल नेपाल में आए 70 से ज्यादा भूकंपों की लंबी लिस्ट में से एक था. भूकंप का केंद्र काठमांडू से लगभग 500 किमी उत्तर-पश्चिम में जाजरकोट जिले में था, जिससे 2015 के विनाशकारी भूकंप की दर्दनाक यादें ताजा हो गईं.

एजेंसी के मुताबिक नेपाल के राष्ट्रीय भूकंप निगरानी एवं अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ भूकंपविज्ञानी भरत कोइराला ने बताया कि लंबे समय से धरती के अंदर सक्रिय यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव हो रहा है, जिससे जबरदस्त एनर्जी एकत्र हो गई है. नेपाल इन 2 प्लेटों के बॉर्डर पर स्थित है और इसलिए अत्यधिक सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र (seismic zone) में स्थित है, लिहाजा नेपाल में भूकंप आना आम बात है.

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520 साल से नहीं आया बड़ा भूकंप

भूकंप विज्ञानी कोइराला ने बताया कि पश्चिमी नेपाल में भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा है. उन्होंने कहा कि पिछले 520 वर्षों से पश्चिमी नेपाल में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. इसलिए बहुत सारी एनर्जी जमा हो गई है भूकंप ही उस एनर्जी को मुक्त करने का एकमात्र तरीका है.

भारत का देहरादून भी खतरे की जद में

कोइराला ने बताया कि पश्चिमी नेपाल के गोरखा (जिला) से लेकर भारत के देहरादून तक टेक्टोनिक हलचल के कारण बहुत सारी एनर्जी जमा हो गई है, इसलिए इस एनर्जी को जारी करने के लिए इन क्षेत्रों में छोटे या बड़े भूकंप आ रहे हैं, जो बेहद सामान्य है.

हर 100 साल में आगे खिसक रही प्लेट

भूकंप विज्ञानियों के मुताबिक दुनिया की सबसे नई माउंटेन रेंज हिमालय है. इसके दक्षिणी छोर पर तिब्बत और भारतीय महाद्वीपीय प्लेट के टकराव के परिणामस्वरूप यूरेशियाई प्लेट ऊपर उठ रही हैं और सदियों से टेक्टोनिक रूप से विकसित हो रही हैं. भूकंप विज्ञानियों ने कहा कि ये प्लेट हर 100 साल में 2 मीटर आगे की ओर खिसर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप धरती के अंदर एक्टिव एनर्जी अचानक रिलीज हो जाती है, जिससे धरती के उपरी हिस्से में हलचल होती है.

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नेपाल में हर दिन आते हैं कम तीव्रता वाले भूकंप 

भूकंप निगरानी और अनुसंधान केंद्र के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जनवरी 2023 से अब तक नेपाल में 4.0 और उससे अधिक तीव्रता के कुल 70 भूकंप आए हैं. इनमें से 13 की तीव्रता 5 और 6 के बीच थी, जबकि तीन की तीव्रता 6.0 से ऊपर थी. कोइराल ने कहा कि टेक्टोनिक प्लेट मूवमेंट के माध्यम से एकत्र हुई एनर्जी को रिलीज करने के लिए सदियों से हर दिन दो या दो से अधिक तीव्रता के भूकंप आते रहे हैं.

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