scorecardresearch
 

ISRO's NGLV: इसरो के नए रॉकेट का डिजाइन बनकर तैयार, बस सरकार की हरी झंडी का इंतजार

ISRO के नए रॉकेट NGLV का डिजाइन बनकर तैयार है. बस अब सरकार की तरफ से रॉकेट बनाने का निर्देश मिलना बाकी है. जैसे ही हरी झंडी मिली. इसरो देश के लिए नया रॉकेट बना देगा. इसके बाद इसरो रॉकेट के मामले में अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन समेत पूरी दुनिया को और बड़ी टक्कर देगा.

Advertisement
X
इसरो NGLV के कई वैरिएंट्स बनाएगा. जो अलग-अलग वजन के सैटेलाइट ले जाने में सक्षम होंगे. (प्रतीकात्मक फोटो)
इसरो NGLV के कई वैरिएंट्स बनाएगा. जो अलग-अलग वजन के सैटेलाइट ले जाने में सक्षम होंगे. (प्रतीकात्मक फोटो)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का नया रॉकेट तैयार होने वाला है. इसका डिजाइन फाइनल स्टेज में पहुंच चुका है. इसका नाम है नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV). यह एक हैवी लिफ्ट रॉकेट होगा, जो दशकों से इसरो के काम आ रहे PSLV की जगह लेगा. इसकी डिजाइन पूरी होने वाली है.

Advertisement

इसरो को अब सरकार की हरी झंडी का इंतजार है, ताकि डिजाइन को प्रैक्टिकल प्लेटफॉर्म पर उतारा जा सके. यानी इसका रॉकेट बनाया जा सके. NGLV रॉकेट तीन स्टेज का होगा. यह 10 टन के पेलोड को जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट तक पहुंचा सकेगा. साथ ही यह अन्य रॉकेटों की तुलना में किफायती होगा. 

यह भी पढ़ें: 50 साल का सबसे बड़ा सौर तूफान... ISRO के Aditya-L1 ने कैप्चर की भयावह सौर लहर

अगर इसके फायदों की बात करें तो इसरो भविष्य में इससे काफी भारी कम्यूनिकेशन सैटेलाइट्स को लॉन्च किया जा सकेगा. क्योंकि अभी तक इसरो के पास जो भी रॉकेट हैं, वो अधिकतम 4-5 टन के सैटेलाइट ही लॉन्च कर पाते हैं. यह रीयूजेबल रॉकेट होगा. यानी इसका कुछ हिस्सा फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जाएगा. 

लॉन्च के खर्च में आएगी कमी, रॉकेट बनाना होगा आसान

Advertisement

दोबारा इस्तेमाल करने वाले हिस्सों की वजह से रॉकेट लॉन्च का खर्च कम हो जाएगा. इसकी डिजाइन मॉड्यूलर होगी. ताकि ज्यादा मात्रा में इसका प्रोडक्शन किया जा सके. इसका बड़ा फायदा ये है कि इससे इसका मेंटेनेंस आसान हो जाएगा.  इसमें सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम होगा. 

यह भी पढ़ें: धरती पर कहां आने वाला है भूकंप? ये सैटेलाइट पहले ही बता देगा, जानिए कैसे काम करेगा NISAR

नई ईंधन के इस्तेमाल से लॉन्चिंग हो जाएगी और किफायती

सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम यानी रिफाइंड केरोसिन और लिक्विड ऑक्सीजन को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. इस ईंधन के इस्तेमाल से भी खर्चा बचेगा. ओपन सोर्सेस पर मौजूद जानकारी के मुताबिक NGLV की ऊंचाई 246 फीट होगी. इसका व्यास 16 फीट होगा. वजन 600 टन से 700 टन के बीच होगा. 

अलग-अलग वैरिएंट्स ले जाएंगे अलग-अलग सैटेलाइट्स

इसके अलग-अलग वैरिएंट्स बनाए जाएंगे. NGLV रॉकेट्स लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक 17 हजार से 48 हजार किलोग्राम के पेलोड ले जा पाएंगे. जबकि जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) तक 8500 से 24 हजार किलोग्राम तक के पेलोड को पहुंचा पाएंगे. 

Live TV

Advertisement
Advertisement