मौत तो एक दिन निश्चित है, लेकिन जिंदगी और मौत के बीच हर कोई फासला चाहता है. ऐसे कई लोग हैं जो मौत को छूकर वापस आए हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों ने ऐसे ही कुछ लोगों पर शोध किया है. शोध से हैरान करने वाले नतीजे सामने आए हैं. इन लोगों का कहना है कि उनके लिए मौत का अनुभव उतना भी बुरा नहीं था, जितना लोगों का लगता है.
कार्डियक अरेस्ट (Cardiac arrest) के बाद, जिन लोगों को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन यानी सीपीआर (Cardiopulmonary resuscitation- CPR) दिया गया था, उनका इंटरव्यू लिया गया. इस इंटरव्यू के बाद शोधकर्ताओं को पता चला कि इनमें से हर 5 में से 1 व्यक्ति ने मौत का स्पष्ट अनुभव किया था.
मौत के वक्त हुए अनोखे अनुभव
इस शोध में 567 लोगों को शामिल किया गया था. ये अस्पताल में भर्ती वे लोग थे और जिनके दिल ने धड़कना बंद कर दिया था और उनकी जान बचाने के लिए डॉक्टरों ने उन्हें एमरजेंसी प्रोसीजर दिया था. इनमें से 10 प्रतिशत से भी कम लोग ठीक हुए. जो लोग बच गए उन्होंने महसूस किया कि वे अपने शरीर से अलग हो गए हैं और दर्द या किसी भी परेशानी के बिना घटनाओं को देख रहे हैं. कुछ मरीजों ने कहा कि जब वे बेहोश थे, तो वे अपने पूरे जीवन का आकलन और मूल्यांकन कर पा रहे थे. ठीक वैसे ही जैसे कहा जाता है कि मौत के वक्त आपका पूरा जीवन आपकी आंखों के सामने से गुजर गया हो.
मौत के मुहाने पर बहुत तेज हो गई थीं दिमागी गतिविधियां
हालांकि, इन लोगों की बातों पर भरोसा करने के बजाय, शोधकर्ताओं ने सीपीआर के दौरान मरीजों के ब्रेनवेव एक्टिविटी पैटर्न को स्टडी किया. उन्हें डेल्टा, थीटा, अल्फा और बीटा तरंगों जैसी एक्टिविटी की स्पाइक्स दिखाई दीं, जो आमतौर पर सचेत अवस्था के दौरान दिखती हैं. आश्चर्यजनक रूप से, सीपीआर के एक घंटे तक, जबकि मरीज में जीवन के कोई संकेत नहीं दिख रहे थे, इन तरंगों की एक्टिविटी बहुत तेज नजर आ रही थी .
शोध के लेखक सैम परनिया (Sam Parnia) का कहना है कि मरीजों के अनुभव और ब्रेन वेव्स में होने वाले बदलाव ही मौत के अनुभव का पहले संकेत हो सकते हैं. शोध के ज़रिए हमें पहली बार इसका पता चला है. उन्होंने कहा कि हमारे नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि मौत के बेहद करीब और कोमा में, लोगों को आंतरिक चेतना का अनोखा अनुभव होता है, जिसमें इंसान बिना किसी दर्द या परेशानी के होश में रहता है.
लोगों को याद रहीं कुछ खास बातें
डेटा को AWARE II (AWAreness during REsuscitation) के क्लिनिकल ट्रायल के हिस्से के तौर पर इकट्ठा किया गया था. पहला AWARE शोध, 2014 में किया गया था जिसमें लेखकों ने 101 सीपीआर सर्वाइवर का इंटरव्यू किया था. इन लोगों में से 46 प्रतिशत ने कहा था कि उन्हें वह अनुभव याद था.
उन मरीजों की यादों में सात चीजें खास थीं, जिनमें एक तेज रोशनी दिखना, देजा-वू (deja-vu) महसूस करना, जीवन की घटनाओं को याद करना और परिवार के सदस्यों को देखना शामिल है. कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने जानवरों या पौधों को भी देखा, जबकि कुछ ने जीवन के आखिरी मोड़ पर डर, हिंसा या उत्पीड़न का अनुभव किया था.
मौत के अनुभव ने लोगों को बदल दिया
2019 में, शोधकर्ताओं ने इंटरव्यू के एक और राउंड के नतीजे पेश किए. इन लोगों के अनुभवों की तुलना कार्डियक अरेस्ट सर्वाइवर्स से करने पर पता चला कि जिन लोगों को अपने अनुभव याद थे, उनमें से 95 प्रतिशत ने आनंद और शांति का अनुभव किया, 86 प्रतिशत ने एक रोशनी देखी और 54 प्रतिशत ने अपने जीवन की खास घटनाओं को देखा. मौत को छूकर वापस लौटने वाले 95 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस अनुभव ने उन्हें सकारात्मक रूप से बदल दिया है.
New research involving those who have come back from the brink reveals that the experience of passing away may be less distressing than many of us think.https://t.co/X6yorntni6
— IFLScience (@IFLScience) November 8, 2022
नए नतीजों के बारे में बताते हुए परनिया ने कहा कि इन स्पष्ट अनुभवों को खराब होते या फिर मरते हुए दिमाग की उपज नहीं माना जा सकता, बल्कि यह वह अनोखा मानव अनुभव है, जो मौत के कगार पर ही महसूस होता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, जैसे ही हम मरते हैं, मस्तिष्क विघटन (disinhibition) नाम की प्रक्रिया से गुजर सकता है, जिसकी वजह से गतिविधियों की बाढ़ सी आ जाती है, जो चेतना की सबसे गहरी परतों तक पहुंच जाती है.
ऐसा क्यों होता है, यह कहना मुश्किल है. जबकि परनिया जोर देकर कहते हैं कि यह घटना मानव चेतना के बारे में कुछ दिलचस्प सवाल उठाती है, यहां तक कि मौत के वक्त भी. यह शोध अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के साइंटिफिक सैशन में प्रस्तुत किया गया था.