सागर और महासागर सब मिलकर इंसानों द्वारा निकाले जा रहे कार्बन डाईऑक्साइड और गर्मी को सोखते हैं. पिछले 50 सालों से इंसानों ने सागरों को ज्यादा काम पर लगा दिया है. ये सागर ओवरटाइम काम कर रहे हैं. अपनी क्षमता से 90 फीसदी से ज्यादा गर्मी सोख रहे हैं. लेकिन कुछ सागर अन्य सागरों की तुलना में ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. जिससे वैज्ञानिक परेशान हो रहे हैं. इसे लेकर हाल ही में एक स्टडी Nature Communications जर्नल में प्रकाशित हुई है.
वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के सागरों का एक ग्लोबल ओशन सर्कुलेशन मॉडल बनाया. ताकि ये पता चल सके कि पिछले 50 वर्षों में सागरों की गर्मी कितनी बढ़ी. तब पता चला कि धरती के दक्षिणी गोलार्ध के सागर यानी साउदर्न ओशन्स वायुमंडल में मौजूद गर्मी सोखने में सबसे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं ये सागर धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जी-जान से जुटे हैं.
वैज्ञानिकों को चिंता इस बात की है कि अगर धरती पर एक तरफ के सागर ज्यादा गर्मी सोखेंगे तो इकोसिस्टम पर बुरा असर पड़ेगा. अगर सदियों तक ऐसे ही गर्मी सोखते रहे तो सागर अंदर अत्यधिक गर्म हो जाएंगे. ऑक्सीजन की मात्रा खत्म हो जाएगी. या कम हो जाएगी. इससे जीवों की मौत होने लगेगी. ऐसा भी हो सकता है कि समुद्र अपने अंदर सोख रही गर्मी को वापस वायुमंडल में छोड़ने लगे. ये बेहद ही खतरनाक स्थिति पैदा कर देगा. इसे फिर बदला नहीं जा सकेगा.
कई पीढ़ियों तक महसूस किए जाएंगे सागरों के बदलाव
सागरों में अभी जो बदलाव हो रहे हैं, वो कई पीढ़ियों तक महसूस किए जाएंगे. लगातार स्थिति बिगड़ती ही चली जाएगी. अगर हमने कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन रोक कर उसे नेट जीरो नहीं किया तो कितने तरह के प्रलय आएंगे ये कोई कह भी नहीं पाएगा. वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि सागरों का बढ़ता तापमान लगातार कैसे नापा जाए. अगर गर्मी बढ़ती रही तो समुद्र का जलस्तर भी बढ़ेगा. क्योंकि ग्लेशियर और हिमखंड पिघलेंगे.
बढ़ेगा समुद्री जलस्तर तो खत्म हो जाएंगे कई द्वीपीय देश
समुद्री जलस्तर बढ़ने से जमीन खत्म होगी. समुद्र तटीय इलाकों को अपनी ज़द में ले लेगा. कई द्वीपीय देश तो पानी के अंदर चले जाएंगे. क्योंकि समुद्र का तापमान बढ़ने का मतलब है वायुमंडल उससे कहीं ज्यादा गर्म होगा. धरती पर इतनी गर्मी में रहना मुश्किल हो जाएगा. अंटार्कटिका, आर्कटिक समेत कई सागरों की स्थितियां बिगड़ जाएंगी. पोलर बीयर यानी ध्रुवीय भालू, पेंग्विंस, सील्स, सी लायन जैसे जीवों का रहना मुश्किल हो जाएगा. या फिर ये खत्म ही हो जाएंगे.
दक्षिणी हिस्से के सागर अधिक गर्मी क्यों सोख रहे हैं?
वैज्ञानिकों के पास बहुत पुराने समुद्री डेटा नहीं है. 700 मीटर की गहराई से अधिक गहरे समुद्र की स्थिति नहीं पता है. यानी 1990 से पहले इतनी ज्यादा गहराई में कितना तापमान था, ये नहीं पता है. सवाल ये उठ रहा है कि धरती के दक्षिण हिस्से के सागर ज्यादा गर्मी क्यों सोख रहे हैं? असल में इसकी बड़ी वजह है धरती के दक्षिणी गोलार्ध की भौगोलिक स्थिति. अंटार्कटिका पर बहने वाली पश्चिमी हवा. अंटार्कटिका पर बह रही ये गर्म हवा को जमीन का टुकड़ा नहीं रोकता.
55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है सागरों का पारा
इसका मतलब ये है कि दक्षिणी हिस्से के सागरों के ऊपर बहने वाली हवा काफी लंबी यात्रा करती है. ठंडा पानी सागरों की ऊपरी सतह तक ही सीमित रह जाता है. जैसे ही ठंडा पानी उत्तर की ओर बहना शुरू करता है. यहीं से गर्मी को सोखने की प्रकिया शुरू हो जाती है. न्यूजीलैंड के तस्मानिया और दक्षिणी अमेरिका के पास सागर का तापमान औसत 45 से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. जो कि खतरनाक है. वायुमंडल भी गर्म और समुद्र भी. वजह है ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन.