धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर ओजोन लेयर में छेद की बात हम बरसों से सुनते आ रहे हैं. लेकिन अब एक खबर ये आ रही है कि इक्वेटर लाइन और उसके आसपास के उष्णकटिबंधीय यानी ट्रॉपिकल इलाकों में ओजोन परत में बड़ा छेद हो गया है. यह छेद अंटार्कटिका के ऊपर बने ओजोन होल से सात गुना बड़ा बताया जा रहा है. अगर इसकी वजह से धरती के इस इलाके में गर्मी बढ़ गई है, तो ये बुरी खबर है. हालांकि वैज्ञानिकों के बीच इस खबर को लेकर मतभेद हैं. आइए समझते हैं कि पूरी कहानी क्या है?
कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक ट्रॉपिकल इलाकों के ऊपर बने इस ओजोन होल की वजह से भविष्य में दिक्कतें आ सकती हैं. क्योंकि ट्रॉपिकल के ऊपर ओजोन में होल कई वर्षों से है. यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. एक अनुमान के अनुसार यह 1980 के दशक से खुला हुआ है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ट्रॉपिकल इलाके में ओजोन लेयर में छेद नहीं हो सकता. यह गलत धारणा है.
ट्रॉपिकल ओजोन होल कई तरह के वायुमंडलीय और अंतरिक्ष से आने वाली कॉस्मिक किरणों के मिलने से होने वाले दुष्प्रभावों की वजह से बना है. ओजोन होल एक ऐसे क्षेत्रों को परिभाषित करता है. जहां आस-पास के वातावरण में O3 (अकार्बनिक ट्राई ऑक्सीजन कणों) की मात्रा कम से कम 25 फीसदी बढ़ जाती है. इससे इंसान, जीव, पेड़-पौधों पर सब पर बुरा असर पड़ता है. इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
AIP Advances जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रॉपिकल क्षेत्रों के ऊपर बना ओजोन होल दुनिया की बड़ी आबादी को खतरे में डाल सकता है. वाटरलू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक किंग बिन लू कहते हैं कि ट्रॉपिकल इलाके धरती का आधा हिस्सा कवर करते हैं. अगर इनके ऊपर किसी प्रकार का ओजोन होल बनता है तो यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. क्योंकि इससे कई मध्यम आय और गरीब देशों पर आफत आ सकती है.
1970 के दशक में वैज्ञानिक यह मानते और जानते थे कि मानव निर्मित इंडस्ट्रियल केमिकल से ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचता है. जिस कारण उस बीच क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) को बैन करा दिया गया था. लेकिन फिर भी ओजोन लेयर में CFC अधिक मात्रा में पाई गई. ऐसा लगता है क्लोरोफ्लोरोकार्बन वहां जाकर बैठ चुका है.
पृथ्वी के ट्रॉपिकल क्षेत्र में बना होल और अंटार्कटिका पर बने ओजोन होल से काफी अलग है. यह केवल आकार में ही नहीं बल्कि मौसमी सहनशक्ति में भी अलग है. अंटार्कटिका का ओजोन होल अपने आप को मौसम के अनुरूप बदलते रहता है. इस होल में सितंबर से अक्टूबर के बीच O3 सबसे कम होता है. लेकिन इसके साइकल शुरू होने से पहले O3 अपने आप भर जाता है. जबकि ट्रॉपिकल क्षेत्र में बने ओजोन होल से अल्ट्रावायलेट रेडिएशन बढ़ता है. जिससे इंसान को कई तरह की बीमारी का सामना करना पड़ता है. (ये खबर इंटर्न ज्योति मिश्रा ने लिखी है)