RLV-TD असल में एक खास तरह का स्पेस शटल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका बड़ा स्वरूप अभी विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के दौरे के दौरान देखा. यह विमान एक रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (Reusable Launch Vehicle) है. जो भविष्य में अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स और कार्गो ले जाने का काम करेगा.
इसका नाम पुष्पक (Pushpak) रखा गया है. आइए जानते हैं कि इसके कितने और किस तरह के टेस्ट हो चुके हैं. 2 अप्रैल 2023 को कर्नाटक के चित्रदुर्ग में ISRO, DRDO और IAF ने मिलकर टेस्ट किया. RLV-TD की लैंडिंग कराई गई. चिनूक हेलिकॉप्टर से RLV को साढ़े चार km की ऊंचाई से छोड़ा गया. यान ने सफल लैंडिंग की.
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RLV एक स्वदेशी स्पेस शटल है. कुछ साल में हमारे एस्ट्रोनॉट्स इसके बड़े वर्जन में कार्गो डालकर अंतरिक्ष तक पहुंचा सकते हैं. या फिर इसके जरिए सैटेलाइट लॉन्च किए जा सकते हैं. यह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस आएगा. ताकि फिर से उड़ान भर सके.
जासूसी करवाइए, सैटेलाइट छुड़वाइए या फिर हमला... सब कर लेगा
इतना ही नहीं इसके जरिए किसी भी देश के ऊपर जासूसी करवा सकते हैं. या हमला भी. या अंतरिक्ष में ही दुश्मन की सैटेलाइट को बर्बाद कर सकते हैं. ऐसी ही टेक्नोलॉजी का फायदा अमेरिका, रूस और चीन भी उठाना चाहते है. यह एक ऑटोमेटेड रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है. ऐसे विमानों से डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) चला सकते हैं.
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RLV के जरिए बिजली ग्रिड उड़ाना या फिर कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट करना जैसे काम भी किए जा सकते हैं. इसरो का मकसद है कि साल 2030 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए. ताकि बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचे. इससे सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगी. थोड़ा मेंटेनेस के बाद इससे फिर लॉन्चिंग कर सकते हैं.
भविष्य में भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस की यात्रा भी कराएगा
सैटेलाइट लॉन्च किया जा सकता है. रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के अत्याधुनिक और अगले वर्जन से भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस में भी भेजा जा सकता है. अभी ऐसे स्पेस शटल बनाने वालों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान ही हैं. रूस ने 1989 में ऐसा ही शटल बनाया था जिसने सिर्फ एक बार ही उड़ान भरी.
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2016 में रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल की टेस्ट फ्लाइट हुई थी. तब यह एक रॉकेट के ऊपर लगाकर अंतरिक्ष में छोड़ा गया था. करीब 65 km तक हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ान भरी थी. उसके बाद 180 डिग्री पर घूमकर वापस आ गया था. 6.5 मीटर लंबे इस स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन है. बाद में इसे बंगाल की खाड़ी में उतारा गया था.
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल दो स्टेज का स्पेसक्राफ्ट है. पहला रीयूजेबल पंख वाला क्राफ्ट जो ऑर्बिट में जाएगा. जिसके नीचे एक रॉकेट होगा जो इसे ऑर्बिट तक पहुंचाएगा. एक बार ऑर्बिट में पहुंचने के बाद स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में सैटेलाइट छोड़कर वापस आ जाएगा.