उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering - NIM) की 41 पर्वतारोहियों की टीम द्रौपदी का डांडा (Draupadi ka Danda) पीक पर फतह करने गई थी. मकसद थी पर्वतारोहण का एडवांस ट्रेनिंग हासिल करना. 18,934 फीट ऊंची पीक पर फतह भी कर लिया. टीम अपने ट्रेनर्स के साथ नीचे लौट रही थी. अभी सिर्फ 17 हजार फीट के करीब पहुंचे ही थे कि हिमस्खलन (Avalanche) की चपेट में आ गए. हिमस्खलन ऊपर से आया. या फिर ये जहां चल रहे थे वहीं से बर्फ खिसक गई. ये बता पाना फिलहाल मुश्किल है. लेकिन यह बात तो तय है कि बड़े पैमाने पर बर्फ खिसकी है. अब भी 27 लोग लापता हैं. रेस्क्यू का काम चल रहा है.
अचानक एवलांच आया क्यों? क्या असल वजह थी उसकी. एक ही वजह थी या कई कारणों से ऐसा हुआ है. असल में द्रौपदी पीक बेहद दुर्गम पहाड़ों के बीच स्थित है. तीखीं घाटियों और ऊंची चोटियों वाले गंगोत्री रेंज (Gangotri Range) में आता है. यह रेंज गढ़वाल हिमालय के हिस्सा है. इसे गंगोत्री ग्रुप कहते हैं. यहां पर सबसे ऊंची चोटी चौखंभा (Chaukhamba) है. जिसकी ऊंचाई 23,419 फीट है. उसके बाद केदारनाथ (Kedarnath) पहाड़ है. इसकी ऊंचाई 22,769 फीट है. फिर 22,651 फीट पर थलय सागर (Thalay Sagar) है. फिर गौमुख के पास मौजूद है माउंट शिवलिंग (Mt. Shivling), इसकी ऊंचाई 21,467 फीट है. फिर मेरू (Meru) पहाड़ है. जो 21,850 फीट ऊंचा है. अब आप सोचिए जिस गंगोत्री ग्रुप में इतने ऊंचे पहाड़ हों, वहां पर पर्वतारोहण कितना मुश्किल होता होगा.
गंगोत्री ग्रुप (Gangotri Group) के पहाड़ गंगोत्री ग्लेशियर के चारों तरफ मौजूद हैं. एक छल्ले की तरह. इनकी ऊंचाइयों पर हमेशा बर्फ जमा रहती है. कई ग्लेशियर भी हैं. जिनके अलग-अलग नाम हैं. द्रौपदी का डांडा पर्वत के दो पीक हैं. आसपास ही. यहां पर उत्तरी सिरे की तरफ डोकरियानी ग्लेशियर (Dokriani glacier) है. जिसके टूटने या खिसकने की वजह से ये हिमस्खलन हुआ. जिससे 27 पर्वतारोही लापता हैं. द्रौपदी पीक पर अक्सर लोग, पर्यटक और माउंटेनियर यानी पर्वतारोही ट्रैकिंग के लिए जाते हैं. या फिर वहां पर पर्वतारोहण की ट्रेनिंग लेते हैं. द्रौपदी पीक की ऊंचाई 5771 मीटर यानी 18,934 फीट है.
क्या बारिश और ताजा बर्फ है हिमस्खलन की वजह?
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लेशियोलॉजिस्ट और हिमालयन एक्सपर्ट डॉ. मनीष मेहता ने बताया कि इस समय पहाड़ों पर ताजा बर्फ गिरी है. जो बेहद नाजुक है. बारिश भी रुक-रुक कर हो रही है. जिसकी वजह से ग्लेशियर टूट जाते हैं. ताजा बर्फ बारिश की वजह से ढाल वाली चोटियों से खिसकने लगती हैं. या फिर ग्लेशियर से बर्फ की परत या टुकड़े टूटकर या चटकर नीचे की ओर आ सकते हैं.
डॉ. मेहता ने बताया कि हाल ही में केदारनाथ के पीछे मौजूद चोराबारी ग्लेशियर में भी ऐसे हिमस्खलन हुए थे. लेकिन वह ऐसे इलाके में है जहां पर कोई जाता नहीं. इसलिए किसी तरह का हादसा नहीं हुआ. लेकिन द्रौपदी पीक पर पर्वतारोहण की एडवांस ट्रेनिंग होती है. अगर उतरते समय हिमस्खलन का हमला पीछे मौजूद ऊंचाई से हुआ है, तो उससे बचने का समय कम ही मिला होगा. क्योंकि पर्वतारोही उतरते समय नीचे देखते हैं न कि पीछे मौजूद ऊंचाई पर.
हिमस्खलन की क्या-क्या वजहें हो सकती हैं?
असल में हिमस्खलन की दो प्रमुख वजहें है. पहली हैं प्राइम फिक्स्ड (Prime Fixed) यानी जो तय हैं. दूसरी हैं वैरिएबल फैक्टर्स (Variable Factors) यानी कई अलग-अलग वजहों से होने वाले हिमस्खलन. जैसे- मौसम, जमा बर्फ का वजन और भूकंप. जब ये दोनों ही वजह आपस में मिलती हैं तब बड़े पैमाने का हिमस्खलन होता है. नहीं तो छोटे-मोटो एवलांच बर्फीली ढलानों पर होती रहती है. अब जानते हैं कि हिमस्खलन की इन दो प्रमुख वजहों के पीछे क्या कारण हैं.
प्राइम फैक्टर्स में पहले आते हैं टोपोग्राफिक फैक्टर्स (Topographic Factors) यानी ढलान का कोण, ढलान का आकार और लोकेशन (रिज या ढाल का किनारा). इसमें वेजिटेशन फैक्टर (Vegetation Factors) भी आता है. यानी पेड़ों का जाल कितना है कितने बड़े इलाके में फैला है. पेड़ों की ऊंचाई कितनी है. पेड़ों का घनत्व. इसके बाद आते हैं वैरिएबल फैक्टर्स. यानी जमा बर्फ की मोटाई. कितनी बर्फबारी हुई. हवा की गति, वायुमंडलीय और बर्फ का तपामान. अन्य वजहों में आता है बर्फ का वजन और भूकंप से कांपती धरती या फिर किसी धमाके का आवाज.
कितने प्रकार के हिमस्खलन होते हैं?
एवलांच कई प्रकार के होते हैं. पहला आकार के हिसाब से यानी लूज स्नो एवलांच (Loos Snow Avalanche) यानी ताजा बर्फ गिरी है. वह तेजी से फैल रही है. लेकिन एक प्वाइंट पर आकर जमा हो जाती है. अगर वहां पर टिकती नहीं है तो फिर नीचे की ओर लुढ़कने लगती है. दूसरा स्लैब एवलांच (Slab Avalanche) यानी वो हिमस्खलन जिसमें बड़ा सा हिस्सा अचानक से खिसकना शुरू कर देता है. ये आमतौर पर होते नहीं. लेकिन जब होते हैं तो बड़ी तबाही लेकर आते हैं.
बर्फ कैसी है. इस पर भी एवलांच होता है. जैसे सूखी बर्फ का एवलांच (Dry Snow Avalanche). इस तरह के हिमस्खलन में पानी की मात्रा नहीं होती है. दूसरे वेट स्नो एवलांच यानी गीली बर्फ का एवलांच (Wet Snow Avalanche) यानी वो हिमस्खलन जिसमें पानी की मात्रा ज्यादा हो. जैसे बारिश से होने वाले एवलांच. या बारिश के दौरान होने वाले एवलांच.
इसके अलावा हिमस्खलन के दो और प्रकार होते हैं. पहला सरफेस लेयर एवलांच (Surface Layer Avalanche) यानी मोटे ग्लेशियर के ऊपर की एक पतली परत नीचे की ओर खिसकती चली जाए. दूसरे फुल डेप्थ एवलांच (Full Depth Avalanche) यानी बर्फ के मोटी परत का अंदरूनी हिस्सा खिसकने लगे. जिससे बड़े स्तर का हिमस्खलन होता है.
द्रौपदी का डांडा में किस तरह का एवलांच आया होगा
अभी तक एक्सपर्ट्स की तरफ से यह नहीं बताया गया है कि द्रौपदी पीक पर किस तरह का हिमस्खलन हुआ है. लेकिन पूरी संभावना है कि यह वेट, फुल-डेप्थ स्नो एवलांच (Wet, full-depth Snow Avalanche) हो. क्योंकि बारिश के बाद ऊंचाई वाले स्थानों पर जमा बर्फ पिघलने लगती है, तब वो टूटकर नीचे की तरफ आती है. थोड़ा भी तापमान बढ़ता है तो भी ग्लेशियर के टूटने या खिसकने से हिमस्खलन हो सकता है. यह किसी बर्फीले पाउडर की तरह नहीं गिरता. यह शांति से और अचानक खिसकने वाली बर्फ होती है. इनकी वजह से भयावह हादसे होते हैं.
पिछले दो सालों में एवलांच में मारे गए हैं 21 लोग
पिछले दो सालों में एवलांच में 21 लोग मारे गए हैं. साल 2020 में 13 लोग और 2021 में 8 लोगों की मौत हुई है. बर्फीले पहाड़ों पर एवलांच बेहद सामान्य घटना है लेकिन उसकी वजह से मौतें कम होती हैं. साल 2013 का केदारनाथ हादसा, साल 2017 में गुरेज सेक्टर में हुआ हिमस्खलन, साल 2021 में चमोली में हुआ हादसा. ये सब कहीं न कहीं हिमस्खलन से जुड़े हैं.