कोविड के दौर के बाद लगभग सभी लोग साफ-सफाई को लेकर ज्यादा पाबंद हो गए, फिर चाहे वो पर्सनल हाइजीन हो, या घर की साफ-सफाई. यहां तक कि लगभग सभी के बैग में सैनेटाइजर की बोतल जरूर मिलेगी. इस सब के बीच एक और बॉटल भी है, जो जर्म्स (Germs) का घर बनी हुई है. रीयूजेबल वॉटर बॉटल को लेकर आया नया अध्ययन मानता है कि इसमें सबसे ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं.
पानी के ट्रीटमेंट और शुद्धता पर काम करने वाली अमेरिकी कंपनी वॉटरफिल्टरगुरु ने घरों में पाई जाने वाली कई चीजों की तुलना करते हुए बताया कि कहां लगभग कितने बैक्टीरिया होते हैं. इसमें पाया गया कि पानी की बार-बार इस्तेमाल की जा सकने वाली बॉटल भले की साफ दिखती हो, भले ही उसके प्लास्टिक को कंपनियों में हानिरहित बताया हो, लेकिन तब भी उससे पानी पीना सेफ नहीं.
बोतल के मुंह पर टॉयलेट सीट से लगभग 40 हजार गुना ज्यादा जर्म्स होते हैं. ये अमाउंट पालतू कुत्ते-बिल्लियों के पानी पीने के बर्तन से भी 14 गुना ज्यादा है. यानी उनका बर्तन भी हमारी बॉटल से कई गुना साफ रहता है.
स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने बॉटल के अलग-अलग हिस्सों की जांच की. इसमें बॉटल की ढक्कन, ऊपर का हिस्सा, मुंह, बॉटल की तली सभी शामिल थे. यहां पर दो तरह के बैक्टीरिया ज्यादा दिखे- बेसिलियस और ग्राम निगेटिव.
पहला टाइप पेट, खासकर अंतड़ियों की बीमारी की वजह बनता है. दूसरा टाइप ग्राम निगेटिव ज्यादा खतरनाक है. ये वो बैक्टीरिया है, जिसपर एंटीबायोटिक भी असर नहीं करती. फिलहाल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस को मेडिकल साइंस सबसे बड़ी चुनौती मान रहा है. ये वही कंडीशन है, जिसमें बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक बेअसर रहते हैं और मरीज ठीक नहीं हो पाता.
एक्सपर्ट ने पाया कि रीयूजेबल बॉटल को सेफ मानते हुए हम लगातार उससे मुंह लगाकर पीते हैं, यही बैक्टीरियल ब्रीडिंग की वजह बन जाता है. इसकी बजाए वो बॉटल ज्यादा सेफ होती है, जिसे ऊपर से दबाकर पानी पिया जा सके. लिड या स्ट्रॉ वाली बोतलें आमतौर पर बैक्टीरिया का घर बन जाती हैं. हालांकि स्टडी का विरोध करते हुए कई वैज्ञानिक ये भी कह रहे हैं कि बॉटल पर चाहे जितने बैक्टीरिया हों, लेकिन जब तक वे हमारे मुंह से आते हैं, हमारे लिए खतरनाक नहीं हो सकते.
पानी की बोतलों पर पहले भी कई तरह की स्टडी हो चुकी हैं. ज्यादातर का मानना है कि प्लास्टिक की बॉटल में पानी पीना सेहत के लिए खतरनाक है. इससे हॉर्मोनल बदलाव होते हैं. छोटी बच्चियों में समय से पहले प्यूबर्टी, और पुरुषों में स्पर्म काउंट कम हो जाने की एक वजह प्लास्टिक की बोतलों और बर्तनों में खाना-पीना भी है. इसकी बजाए कांच और तांबे की बोतलों के इस्तेमाल की भी बात की जाती रही. हालांकि लगातार तांबे की बोतल से पानी पीना भी पेट की बीमारियां दे सकता है.