सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकंद नरवणे (Army Chief Gen MM Naravane) ने एजेंडा आजतक के मंच से कहा कि जब देश की जनता और जवान एकसाथ होते हैं तो किसी भी जंग को जीता जा सकता है. किसी भी मुसीबत का सामना किया जा सकता है. इसका उदाहरण हर युद्ध में देखने को मिला है. जनरल नरवणे ने बताया कि 1971 युद्ध की खबरें उन लोगों को अखबारों और मैगजीनों से मिलती थी.
युद्ध से लौटते समय जवानों को लोगों ने खाना-पीना दिया. सोने के लिए खटिया तक दिया. वो तस्वीरें देखकर लगा कि हमारे देश में लोगों का जज्बा बहुत ऊंचा है. करगिल में वही जज्बा देखने को मिला. खुद से लोग मदद करने आगे आते हैं. देश वासी जब सपोर्ट करते हैं तब हमारा मनोबल ऊंचा होता है. इसी आधार पर हम अपनी ड्यूटी अच्छे से निभा पाते हैं. भविष्य में भी हमें अपने देशवासियों का साथ मिलेगा. जब हम सब एक साथ होंगे तो हमारा देश हर तरह की चुनौती का सामना कर पाएंगे.
बांग्लादेश हमारा बेहतरीन दोस्त है, हर मामले में हमारे साथः सेना प्रमुख
1971 का युद्ध एक और चीज के लिए याद रखना चाहिए. इस युद्ध के बाद एक नया देश बना. जब बांग्लादेश बना तो हमें दो तरफ के युद्ध लड़ना पड़ा था. आज हमारे इस देश के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं. मैं इसी साल बांग्लादेश गया था एक यूएन पीस एक्सरसाइज देखने. हम सब बेहतरीन दोस्त हैं. राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक समेत कई तरह के मामलों में हम दोनों देश साझेदार हैं.
जनरल नरवणे- हर युद्ध कमांडर कुछ सिखाता है, हम लगातार उनसे प्रेरित होते हैं
13 दिन में युद्ध खत्म होना क्या है टी-20 या टेस्ट? इस सवाल पर तब जनरल नरवणे ने कहा कि वो वन डे मैच था. जब हम मिलिट्री कैंपेन पढ़ते हैं. हम एनडीए और प्रमोशन टेस्ट में ये पढ़ाया जाता है कि किस युद्ध में किस कमांडर ने क्या किया. हमें अलग-अलग कमांडर्स से सीखने को मिलता है. हम उनकी कहानियों और तरीकों से प्रेरित होते हैं. हमारे ऑफिसर ज्यादा शहीद होते हैं...जबकि पाकिस्तान में जवान ज्यादा मरते हैं. ये परंपरा कैसे आगे बढ़ रही है. इस सवाल पर जनरल ने कहा कि उम्मीद है कि हम इस परंपरा को बनाए रखेंगे.
बांग्लादेश में मानवीय संकट था, हमनें उनकी और उन्होंने हमारी मदद की
जनरल नरवणे ने कहा कि बांग्लादेश में हम दूसरे फ्रंट पर भी काम कर रहे थे. ह्यूमेनिटेरियन क्राइसिस था. हम इंसानों की मदद करने गए थे. हमने मुक्तिवाहिनी और बाकी आबादी की काफी मदद की. बदले में उन्होंने हमें मदद की. उनकी मदद के बिना हम इतनी बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाती. इस जीत में उनका भी उतना ही योगदान है जितना भारतीय सेनाओं का है. संयुक्त प्रयास का था सेनाओं का. यह जीत तीनों सेनाओं की थी. हमारी अंडरस्टैंडिंग बहुत अच्छी थी. भविष्य में हम इसी परंपरा को जारी रखेंगे. ये पूरा वर्ष हम स्वर्णिम विजय वर्ष के तौर पर मना रहे हैं. हमने चार मशालें रवाना की थीं. इस साल 16 दिसंबर को ये नेशनल वॉर मेमोरियल में वापस आएंगी. राजपथ पर 11 से 16 दिसंबर को कार्यक्रम होगा. इस विजय पर्व में जरूर हिस्सा लें. इसे दिल्ली आकर देखें. चैनलों पर देखें.