
दुनिया का पहला ट्रिलिनियर (खरबपति) अंतरिक्ष से बनेगा. ये दावा 2018 में अमेरिका के टेक्सास के सीनेटर टेड क्रूज़ ने नासा का बजट बढ़ाने को लेकर बिल साइन होने के बाद किया था. शायद यही कारण है कि दुनिया के तमाम अमीर कारोबारी और कंपनिया अब इस सपने को हकीकत में बदलने के विकल्पों पर विचार करने लगी हैं. हम बात कर रहे हैं स्पेस माइनिंग यानी अंतरिक्ष की कोख में दूसरे ग्रहों और उपग्रहों पर खनन की.
Alphabet Inc., गूगल की पैरेंट कंपनी के फाउंडर लैरी पेज, पूर्व सीईओ एरिक श्मिट और हॉलीवुड के बड़े फिल्म निर्माता जेम्स कैमरोन ने Planetary Resources Inc. में खूब सारा पैसा लगाया है. ये कंपनी स्पेस माइनिंग के लिए बनाई गई है जिसका उद्देश्य उपग्रहों से बहुमूल्य पदार्थों का खनन कर उन्हें पृथ्वी पर लाना है. ऐसी ही कई सारी कंपनियां हैं जो अंतरिक्ष में मौजूद खनिजों को पृथ्वी पर लाकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए जुटी हुईं हैं. इस काम में नासा से सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं लेकिन 2018 में ही तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नासा के Asteroid Redirect Mission से हाथ खींच लिए. इस मिशन के तहत नासा का मकसद एक क्षुदग्रह को पृथ्वी की ऑरबिट के नजदीक लाकर उसपर शोध और खनन करना था.
कितना खरा है सौदा?
अंतरिक्ष में खनन के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है तो बेशुमार फंडिग की, जो पृथ्वी के बाहर खुदाई के लिए जरूरी उपकरण, मशीनें, रॉकेट, तकनीक, ऊर्जा के स्रोत पर शोध करने में मदद कर सके. इस उद्देश्य की सबसे बड़ी जरूरत ही इसकी सबसे बड़ी चुनौती है. ज्यादातर बैंक, कंपनियां या दौलतमंद लोग इस मिशन पर पैसा फूंकने में हिचकिचा रहे हैं. ऐसा इस लिए है क्यों कि स्पेस माइनिंग में पैसा लगाना दुनिया का सबसे महंगा सौदा साबित होने के साथ ही मुनाफे की कोई गारंटी नहीं देता. एक स्टडी के अनुसार किसी उपग्रह पर खनन करने की लागत 2.6 बिलियन डॉलर यानी (1,88,42,43,40,000 रुपये) तक जा सकती है. आंकलन लगाया है कि एक फुटबॉल साइज के एस्टेरॉयड पर करीब 50 बिलियन डॉलर की कीमत के बराबर प्लैटिनम मिल सकता है. लेकिन इसके साथ ही तर्क ये भी दिया जाता है कि अगर एस्टेरॉयड के खनन से कोई भी पदार्थ अगर इतनी भारी मात्रा में पृथ्वी पर आना शुरू हो जाएगा तो न तो वह दुर्लभ बचेगा और न ही बहुमूल्य.
क्या है कानून?
अंतरिक्ष में खनन करने के पीछे एक चुनौती खनिजों के मालिकाना हक को लेकर भी है. 1967 की आउटर स्पेस ट्रीटी ये कहती है कि कोई भी देश खगोलीय पिंड पर अपने मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता है. हालांकि इस ट्रीटी में ये नहीं बताया गया कि किसी भी खगोलीय पिंड के संसाधनों पर भी यही नियम लागू होता है कि नहीं. 13 अक्टूबर 2020 को आठ देशों (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़मबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका) द्वारा चांद के दोहन को नियंत्रित करने के लिए आर्टेमिस समझौते में भी इस मुद्दे को अनसुलझा छोड़ दिया गया है.
उम्मीदों का 'खनन'
नासा के क्षुद्रग्रह पुनर्निर्देशन मिशन (Asteroid Redirect Mission)को रद्द कर दिया गया है. लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले ही सितंबर 2016 में OSIRIX-REX मिशन पृथ्वी से लॉन्च होकर एस्टेरॉयड 101955 बेन्नू की ओर बढ़ चुका है. यह इसी साल एस्टेरॉयड बेन्नू पर लैंडिग करेगा और वहां से नमूना एकत्रित कर वापस पृथ्वी तक पहुंचेगा. एस्टेरॉयड माइनर्स की इस मिशन पर बहुत सारी उम्मीदें टिकी है. इस तरह के मिशन की सफलता और इससे मिले नमूनों की शोध अंतरिक्ष में खनन का भविष्य तय करने में निर्णायक साबित होंगी.
एस्टेरॉयड माइनर्स ने इस उद्देश्य की शुरुआत ही एक गलत चीज से की है, ये खगोल विज्ञान की जानी मानी विशेषज्ञ अमारा ग्राप्स का मानना है. ASIME (Asteroid Science Intersections with In-Space Mine Engineering Conference) में संबोधित करते हुए ग्राप्स कहती हैं कि जो लोग अंतरिक्ष में खनन करना चाहते हैं वे धातुओं से भरे एस्टेरॉयड पर फोकस करके समय बर्बाद कर रहे हैं. अमारा ग्राप्स की मानें तो प्लैटिनम से भरे क्षुद्रग्रहों को माइनिंग के लक्ष्य में पहला स्थान देना ही नहीं चाहिए. उनका मानना है कि हमें कोन्ड्राइट (एक तरह के मेट्योराइट) पर फोकस करना चाहिए क्योंकि उनके पास पानी है, जो निकट भविष्य में इन कंपनियों के लिए बेशुमार राजस्व का जरिया बन सकते हैं. कल्पना कीजिए अगर किसी के पास अंतरिक्ष में पानी का स्रोत है, तो वह पृथ्वी की कक्षा में, चंद्रमा पर और गहरे अंतरिक्ष के रास्तों पर रॉकेट ईंधन स्टेशनों का मालिक बन चुका होगा. और शायद वही पहला ट्रिलीनियर यानी खरबपति होगा.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के खगोल विज्ञानी, मार्टिन एल्विस ने स्पेस यूनीवर्सिटीज़ नेटवर्क के कोरडिनेटर एंड्रीव ग्लैस्टर को बताया कि वर्तमान तकनीक के साथ खनन के लिहाज से क्षुद्रग्रहों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए उन्होंने 2013 में एक समीकरण विकसित किया. इसके अनुसार पृथ्वी के पहुंच के दायरे, वर्तमान रॉकेट तकनीक और खनन की संभावना के लिहाज से एल्विस ने अनुमान लगाया कि लगभग 10 संभावित धातु-समृद्ध और 18 पर्याप्त रूप से पानी से भरपूर क्षुद्रग्रह मौजूद हैं.
विज्ञान के नाखून
अंतरिक्ष में खुदाई के लिए मौजूदा विज्ञान के नाखून कितने पैने हैं. इस सवाल का जवाब खगोल विज्ञान विशेषज्ञ अमारा ग्राप्स ने दिया. अमारा ने Physics World को दिए इंटरव्यू में कहा कि हमें किसी एस्टेरॉयड पर खनन के लिए अपने विज्ञान में और खुदाई करने की जरूरत है. वैज्ञानिकों ने टेलीस्पोक और स्पेस मिशन की मदद से एस्टेरॉयड के बारे काफी अध्ययन और डाटा एकत्रित किया है. हालांकि इस विषय पर सबसे अहम जानकारी जापान के हायाबूसा से मिली जो 2010 में दुनिया का पहला ऐसा स्पेसक्राफ्ट साबित हुआ जो किसी एस्टेरॉयड पर लैंडिग कर सैंपल के साथ पृथ्वी पर सफलतापूर्वक लौटा.
इस मिशन से मिले सैंपल की स्टडी से पता चला कि अंतरिक्ष में दो तरह के एस्टेरॉयड हैं. एक है एकोन्ड्राइट (प्लूटोनिक पत्थरों से भरे मेट्योराइट) जिनपर प्लैटिनम समूह की कई सारी धातुओं का खजाना है. दूसरे तरह के एस्टेरॉयड हैं कोन्ड्राइट, जो पानी से समृद्ध होने के कारण शायद ज्यादा मूल्यवान हैं. अंतरिक्ष में इंसानी भविष्य के लिए कोई भी ऐसी जगह जहां पानी मौजूद है, सबसे ज्यादा कीमती साबित हो सकती है. अंतरिक्ष में खनन के लिए कोई दुर्लभ धातु खोजने से पहले पानी के स्रोत ढूंढना ज्यादा जरूरी है. क्योंकि स्पेस में उपयोग करने के लिए पृथ्वी से पानी नहीं ले जाया जा सकता. इसका प्रमुख कारण है पानी को अंतरिक्ष तक ढोने की लागत. इस बात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि अंतरिक्ष में पानी की एक बोतल भेजने में करीब 9000 डॉलर (6,52,793 रुपये) से लेकर 43,000 डॉलर (31,18,901 रुपये) के बीच खर्च आता है.
गहरे अंतरिक्ष में एस्टेरॉयड तक जाकर वापस पृथ्वी तक आने के लिए स्पेस रॉकेट को बहुत सारे ईंधन की जरूरत होगी. वर्तमान में लगभग सभी रॉकेट अपने वजन का कुल 90 फीसदी ईंधन लेकर उड़ान भरते हैं, बावजूद इसके कोई भी रॉकेट पृथ्वी और एस्टेरॉयड के बीच खनन किए पदार्थों के साथ राउंड-ट्रिप के लायक ईंधन साथ ढोकर नहीं चल सकता. इसके लिए अंतरिक्ष में एस्टेरॉयड बेल्ट और पृथ्वी की ऑर्बिट के बीच कई सारे रॉकेट फ्यूल स्टेशन स्थापित करने होंगे. सवाल ये भी है कि इन फ्यूल स्टेशनों के पास ईंधन कैसे पहुंचाया जाएगा. एस्टेरॉयड माइनर्स इस विषय पर पहले से ही खोज कर रहे हैं कि अगर अंतरिक्ष में मौजूद कोन्ड्राइट पर पानी का स्रोत मिल जाता है तो हाईड्रोजन और ऑक्सीजन को रॉकेट फ्यूल की तरह कैसे इस्तेमाल में लाया जा सकता है. अगर वैज्ञानिक मॉडर्न रॉकेट को पानी के तत्वों से चलाने में कामयाबी हासिल कर लेते हैं तो एस्टेरॉयड तक खनन करने वाली विशालकाय मशीनरी पहुंचाना बेहद आसान हो सकता है. ऐसा संभव होने के बाद स्पेसक्राफ्ट बहुत थोड़े से ईंधन और खनन के लिए भारी-भरकम मशीनरी के साथ एस्टेरॉयड की ओर उड़ान भर सकते हैं.
चुनौतियां बस यहीं नहीं रुकतीं. एक चीज जो किसी भी अंतरिक्ष खनन के मिशन को पूरी तरह प्रभावित करती है- वो है ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण. गुरुत्वाकर्षण अंतरिक्ष में खनन के लिए कई सारी तकनीकी दिक्कतें लेकर आता है. अंतरिक्ष में माइनिंग के लिए विशालकाय मशीनें और उपकरण पृथ्वी से एस्टेरॉयड तक ले जाने की लागत आसमान छू सकती है. उदाहरण के लिए स्पेस-एक्स के सबसे बड़े रॉकेट फाल्कन हैवी से मंगल ग्रह की ऑरबिट तक एक किलोग्राम का कोई सामान भेजने के लिए कम से कम 5,357 डॉलर यानी करीब 3,88,364 रुपए की लागत आती है. इस कीमत पर किसी भी एस्टेरॉयड पर कई टन भारी खुदाई की मशीनें ढोकर ले जाना लगभग कल्पना तक ही सीमित कर देता है.
इरादों की ऊन
बात सिर्फ अंतरिक्ष से बहुमूल्य पदार्थों को खोदकर पृथ्वी पर लाकर मुनाफा कमाने की नहीं होनी चाहिए. मंथन इसपर भी होना चाहिए कि अगर अंतरिक्ष से खुदाई के दौरान जो भी दुर्लभ पदार्थ इंसान के हाथ लग रहे उनका उपयोग कैसे हो. अगर इंसान को किसी क्षुद्रग्रह से ऐसे रसायनिक पदार्थ मिल जाएं जो न्यूक्लियर बम में उपयोग होने वाले यूरेनियम से भी ज्यादा घातक हो तो क्या. इस बात को भी ध्यान में रखा जाए कि जो व्यक्ति या कंपनी स्पेस माइनिंग और अंतरिक्ष में ईंधन का बेताज बादशाह बन चुका हो, वो पृथ्वी पर मौजूद किसी भी सुपर पॉवर को मुट्ठी में लेने की ताकत रखेगा, जो मानवता के लिए विनाश का कारण भी साबित हो सकता है.