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SpaceX ने लॉन्च किया पानी से उड़ने वाला सैटेलाइट, दुनिया में पहली बार ऐसा कमाल

अंतरिक्ष में पानी से चलने वाला पहले सैटेलाइट पहुंच गया है. SpaceX ने ट्रांसोपोर्टर-6 मिशन के तहत फॉल्कन-9 रॉकेट से Vigoride-5 सैटेलाइट को लॉन्च किया. सैटेलाइट निर्धारित कक्षा में पहुंच गई है. बखूबी काम कर रही है. इसमें वाटर प्लाज्मा थ्रस्टर्स तकनीक लगाई गई है. जो इसे ऊर्जा दे रही है. भविष्य में सैटेलाइट्स इसी तकनीक से उड़ाए जाएंगे.

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ये है मोमेंटस कंपनी का विगोराइड-5 सैटेलाइट जो पानी से उड़ता है. (फोटोः मोमेंटस इंक)
ये है मोमेंटस कंपनी का विगोराइड-5 सैटेलाइट जो पानी से उड़ता है. (फोटोः मोमेंटस इंक)

स्पेसएक्स (SpaceX) ने अपने ट्रांसपोर्टर-6 मिशन (Transporter-6 Mission) के जरिए अमेरिकी निजी स्पेस कंपनी मोमेंटस इंक के पानी से उड़ने वाले सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया है. इस सैटेलाइट का नाम है विगोराइड-5 (Vigoride-5). इसमें वाटर प्लाज्मा थ्रस्टर्स (Water Plasma Thrusters) तकनीक लगाई है. किसी निजी कंपनी द्वारा पानी से उड़ने वाला यह सैटेलाइट पहला है. 

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विगोराइड को पृथ्वी की लोअर अर्थ ऑर्बिट (Lower Earth Orbit) में तैनात किया गया है. उसके सोलर पैनल्स खुल चुके हैं. सैटेलाइट उनसे ऊर्जा बना रहा है. अपनी बैटरियों को चार्ज कर रहा है. विगोराइड को असल में कंपनी विगोराइड ऑर्बिटल सर्विस व्हीकल (OSV) बुलाती है. यह सैटेलाइट भविष्य में पुरानी सैटेलाइट्स की मरम्मत का काम भी करेगी. 

फ्लोरिडा स्थित केप केनवरल स्पेस स्टेशन से स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट से छोड़ा गया पानी से उड़ने वाला सैटेलाइट. (फोटो: SpaceX)
फ्लोरिडा स्थित केप केनवरल स्पेस स्टेशन से स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट से छोड़ा गया पानी से उड़ने वाला सैटेलाइट. (फोटो: SpaceX)

विगोराइड में माइक्रोवेव इलेक्ट्रोथर्मल थ्रस्टर्स (MET) लगाया गया है. इसी थ्रस्टर में पानी को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.  इन थ्रस्टर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया, जिसके नॉजल से इतनी तेज गति में गैसें निकलती हैं, कि उसे गति मिलती है. MET में पानी से प्लाज्मा तैयार होता है, फिर माइक्रोवेव एनर्जी का इस्तेमाल करके सैटेलाइट को आगे की ओर बढ़ाया जाता है. 

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पिछले साल नासा ने ऐसा ही प्रयोग किया था. नासा ने स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट से ही V-R3x नाम का क्यूबसैट लॉन्च किया था. ये भी पानी से उड़ने वाली सैटेलाइट थी. क्यूबसैट ऑटोनॉमस रेडियो नेटवर्किंग और नेविगेशन में मदद के लिए बनाए गए थे. इनका प्रोपल्शन सिस्टम नया और किफायती था. साथ ही इससे अंतरिक्ष में प्रदूषण नहीं होता. 

जब भी सैटेलाइट्स में ईंधन डालने की बात की जाती है तो पहले उसके खतरों की जांच की जाती है. जैसे- उसकी विषाक्तता, ज्वलनशीलता आदि. लेकिन भविष्य में पानी की वजह से उड़ने वाले सैटेलाइट्स से ऐसे खतरे नहीं रहेंगे. कम से कम सैटेलाइट्स के आपस में टकराने से विस्फोट तो नहीं होगा.

क्यूबसैट (CubeSat) के प्रोपल्शन सिस्टम में ऐसी तकनीक लगाई गई थी कि जिससे उसके अंदर मौजूद पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण टूटकर उसे आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा देंगे. वहीं, क्यूबसैट के सोलर पैनल्स सूरज की किरणों से एनर्जी लेकर प्रोपल्शन सिस्टम को ऊर्जा देंगे ताकि पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण अलग हो सकें.

पानी में कोई विषाक्तता नहीं होती. यह ज्वलनशील नहीं होता और यह अन्य ईंधनों की तुलना में ज्यादा स्थिर होता है. इसलिए ऐसे ईंधन की मदद से सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग किफायती हो जाएगी. पानी हमें मुफ्त में मिलता है तो इसके उपयोग में किसी तरह के नुकसान की कोई आशंका नहीं है.

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