अगर आप कभी कोस्टा रिका के वर्षावनों में जाएंगे तो आप पहली बार में इस मेंढक को देख ही नहीं सकते. क्योंकि यह मेंढक लगभग पारदर्शी (Nearly Transparent) है. इसलिए इसे ग्लास फ्रॉग (Glass Frog), ट्रांसपैरेंट फ्रॉग और सी-थ्रू फ्रॉग भी कहते हैं. इसकी पीठ पर लाइम ग्रीन यानी नींबू जैसा हरा रंग होता है. जिसपर चांदी के रंग के चकत्ते होते हैं. लेकिन पूरा शरीर लगभग पारदर्शी.
त्वचा, मांसपेशियां, टिशू और शरीर के अंदर के अंग भी कांच जैसे ट्रांसपैरेंट होते हैं. आपको इसके अंग देखने को मिल जाएंगे. ये पारदर्शी मांसपेशी के नीचे साफ-सुथरे से दिख जाते हैं. आप अगर इस मेंढक को पहचानते हैं, तो आप जंगल में इसे खोजकर अपने हाथ में उठा सकते हैं. लेकिन पारदर्शी होना ही इसकी जान शिकारियों से बचाता है. ये अपने दुश्मनों को धोखा देने के लिए है.
इसके शरीर में ऐसा तरल पदार्थ बहता है जिसे रोशनी पार कर जाती है. हाल ही में जर्नल साइंस में इसके बारे में एक रिपोर्ट छपी है. जिसमें बताया गया है कि ग्लास फ्रॉग अपना खून अपने लिवर में जमा कर लेता है. इसलिए पूरा शरीर ट्रांसपैरेंट हो जाता है. अगर यह मेंढक किसी बड़े से पत्ते या टहनी पर सोता है, तब इसके शरीर का सारा खून लिवर में चला जाता है. शरीर ट्रांसपैरेंट हो जाता है. फिर शिकारी इसे देख नहीं पाते.
इस पारदर्शी मेंढक पर स्टडी की है अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुर हिस्ट्री की जेसी डेलिया और ड्यूक यूनिवर्सिटी के डॉ. कार्लोस ताबोआडा ने. हैरानी की बात ये है कि सारा खून एक अंग में जमा करने पर भी वो क्लॉट (Blood Clot) नहीं होता. जबकि इंसानों में ऐसा नहीं होता. शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई का काम लाल रक्त कणिकाएं (RBC) करती हैं. जेसी और कार्लोस ने देखा कि जब तक यह मेंढक जगता है, तब तक शरीर में लाल रंग का खून बहता दिखता है. जैसे ही सोता है यह पारदर्शी हो जाता है.
इस रहस्यमयी प्रक्रिया का खुलासा करने के लिए दोनों साइंटिस्ट ने मेंढक को एनीस्थिसिया दिया. ताकि उसके शरीर की तस्वीर निकाल सकें. डॉ. ताबोआडा ने अंदाजा लगाया कि सोते समय यह मेंढक अपने शरीर के सारे खून को एक जगह जमा कर लेते होंगे. फिर दोनों ने कुछ मेंढकों को एनीस्थिसिया देकर बेहोश किया. कुछ को होश में रखा. जब दोनों की तस्वीरों की तुलना की तो हैरान रह गए. इस दौरान इन लोगों ने अल्ट्रासोनिक तरंगों से भी तस्वीरें लीं.
अल्ट्रासोनिक तरंगों ने बताया कि मेंढक अपना सारा खून सोते समय लिवर में जमा कर लेता है. पूरे शरीर का करीब 89 फीसदी खून सोते समय लिवर में रहता है. यानी पूरा का पूरा RBC लिवर में रहता है. लिवर खून को साफ करता है. इसलिए यह सबसे सही जगह है, जहां पर खून को जमा किया जा सकता है. लेकिन सवाल ये उठ रहा था कि मेंढक ये काम करता कैसे हैं, क्योंकि एक जगह पर खून ज्यादा देर जमा होगा तो क्लाॉटिंग हो जाएगी.
आमतौर पर जब चोट लगती है, तब उस जगह पर ब्लड सेल्स एकदूसरे को जोर से टक्कर मारती है. जिससे वो जमने लगती है. इससे घाव भरता है. लेकिन अगर एक जगह पर खून जमा होगा, तब भी यही प्रोसेस होगी. इससे खून की नसों में खून जम जाएगा और प्राणी की मौत हो जाएगी. सीडीसी के मुताबिक हर साल दुनिया में एक लाख लोगों की मौत खून जमने से होती है. लेकिन इस मेंढक का खून जमता नहीं. यानी इनके पास कोई केमिकल या तकनीक है.
जांच करने पर पता चला कि कांच जैसे पारदर्शी ये मेंढक ब्लड क्लॉटिंग को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं. इसकी वजह से ये खून को एक जगह जमा कर देते हैं. इसलिए यह शिकारियों से बच जाते हैं. लेकिन इस मेंढक की यह तकनीक के पीछे का केमिकल फॉर्मूला लाखों इंसानों को ब्लड क्लॉटिंग की वजह से मरने से बचा सकता है. क्योंकि जब मेंढक 89 फीसदी खून को एक जगह जमा कर देता है. तब उसका मेटाबॉलिक सिस्टम कैसे काम करता है.
यानी वह अपने शरीर की ऑक्सीजन डिमांड को भी नियंत्रित करता है. जैसे आमतौर पर सर्दियों में मेंढक हाइबरनेट करते हैं. अब यह खोजा जा रहा है कि इस मेंढक के पास यह तकनीक कहां से आई. इसके पास कौन से रसायन हैं, जो इसे मदद करते हैं. जैसे ही इस चीज का पता चलेगा, इंसानों की बचाने में मदद मिलेगी.