U.S. Geological Survey यानी भूकंपों की स्टडी करने वाली अमेरिकी वैज्ञानिक संस्था. यह लगातार तुर्की (Turkey) और सीरिया (Syria) में आए 7.8 और 7.5 तीव्रता के भूकंपों की स्टडी कर रहा है. अब इस संस्था ने सैटेलाइट इमेज के जरिए इस बात को पुख्ता कर दिया है कि तुर्की में जमीन खिसक गई है.
USGS की तस्वीर में दोनों भूकंपों से सतह पर कहां-कहां दरारें बनी हैं, वो दिख रहा है. साथ ही उसने एक जगह की सैटेलाइट इमेज दी है. जिसे मैक्सार के सैटेलाइट ने लिया है. इसमें एक मैदान में दो सड़कें दिख रही हैं, जो दो हिस्सों में बंट गई हैं. क्योंकि सड़कों के बीच से ही फॉल्ट लाइन जा रही थी. भूकंप की वजह से फॉल्ट लाइन हिल गई. सतह पर दरार पड़ गई. ये यूएसजीएस की प्राइमरी रिपोर्ट है. लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों को झुठलाया नहीं जा सकता.
यूएसजीएस के मुताबिक यह फॉल्ट लाइन में आई दरार करीब 300 किलोमीटर लंबी है. इससे पहले इजमिर डोकुज ईलुल यूनिवर्सिटी में मौजूद अर्थक्वेक रिसर्च एंड एप्लीकेशन सेंटर के डायरेक्टर और प्रो. डॉ. हसन सोजबिलिर ने कहा हमारी रिसर्च के मुताबिक तीन फॉल्ट लाइन अंदर से टूटी हैं. ये घटना करीब कुल मिलाकर 500 किलोमीटर की दूरी तक में हुई है. तुर्की के एक एक्सपर्ट और अमेरिकी संस्था एक ही बात कह रहे हैं. यानी जमीन खिसकी तो है.
डॉ. हसन ने कहा कि इस बार के भूकंपों से बनी दरार 17 अगस्त 1999 गोलकक और 12 नवंबर 1999 में डुजसे भूकंप से बनी दरारों से भी बड़ी है. 7.8 और 7.5 तीव्रता के भूकंपों ने तुर्की के पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी, मेडिटेरेनियन, मध्य एनाटोलियन और काले सागर वाले इलाके को हिलाकर रखा दिया है. तुर्की के इतिहास में ऐसा भूकंप पिछले 100 सालों में नहीं आया.
इससे ठीक पहले, इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड वॉल्कैनोलॉजी के प्रमुख प्रो. कार्लो डॉगलियोनी का दावा है कि तुर्की-सीरिया में जो भूकंप आए हैं. उनकी वजह से तुर्की की जमीन 10 फीट खिसक गई है. प्रो. कार्लो ने यह दावा तुर्की के कहरामनमारस और मलताया के बीच मौजूद फॉल्ट लाइन में आए भूकंपों की स्टडी करने के बाद बताया. डॉ. कार्लो उसी संस्था में काम करते हैं जिसने 2011 की जापान सुनामी के बाद ये बाताया था कि जापान आठ इंच खिसक गया है.
कौन से हिस्से में पड़ा है दरार का ज्यादा असर
तुर्की का ज्यादातर हिस्सा एनाटोलियन माइक्रोप्लेट पर मौजूद है. लेकिन दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी हिस्सा अरेबियन प्लेट पर आता है. अरेबियन प्लेट पर आने वाले इलाकों का नाम है- गजियांटेप, अद्यामन, दियारबकिर, सनिलउर्फा, मारदिन, बैटमैन, सिर्त, बिंगोई, मुस, बिटलिस, सिमक, वान, एरजुरम, अग्न, इग्दिन, हक्कारी. USGS की जो तस्वीर सामने आई है, उसमें सड़क गजियांटेप के पश्चिम में स्थित है. डॉ. कार्लो ने कहा था कि खिसकाव 150 किलोमीटर लंबी दूरी तक दिख रहा है.
अन्य वैज्ञानिक भी मानते है ऐसा
प्रो. कार्लो कहते हैं कि ये सारा कुछ तुर्की की तीन बड़ी फॉल्ट लाइन्स की वजह से हो रहा है. इन फॉल्ट लाइन्स एक दूसरे के ऊपर काफी झुकी हुई हैं. इनके निचले हिस्से में खिसकाव हुआ है. यानी फॉल्ट लाइन के दो हिस्सों की दूरी बढ़ी है. यानी तुर्की की प्लेट अरेबियन प्लेट से अलग दिशा में आगे बढ़ी है. इस बीच, डरहम यूनिवर्सिटी के प्रो. बॉब होल्ड्सवर्थ ने कहा कि भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों द्वारा एकदूसरे के ऊपर चढ़ने या धकेलने या फिर अलग होने से आते हैं.
प्रो. बॉब कहते हैं कि प्राकृतिक नियम है जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर 6.5 से 6.9 या उससे ऊपर का कोई भूकंप आता है तो यह किसी भी टेक्टोनिक प्लेट को एक मीटर यानी करीब तीन फीट खिसका सकता है. बड़े भूकंप तो प्लेट और उसके ऊपर बसे देश को 10 से 15 मीटर तक खिसका सकते हैं. यानी 30 से 45 फीट तक. प्रो. बॉब कहते हैं कि अगर तुर्की के आसपास की टेक्टोनिक प्लेटों में हॉरिजोंटल खिसकाव यानी स्ट्राइक और स्लिप होता है तो वह भी इतनी ज्यादा तीव्रता के भूकंप का, तो प्लेटें 3 से 6 मीटर तक खिसक सकती हैं. यानी 10 से 18 फीट तक.
2011 में खिसक गई थी जापान की जमीन
मार्च 2011 में जापान में आए भूकंप की वजह से भयानक सुनामी आई थी. लेकिन जापान भी उस समय करीब 2.4 मीटर यानी करीब 8 फीट खिसक गया था. इतना ही नहीं जापानी भूकंप का असर धरती की धुरी पर भी देखा गया था. USGS के जियोफिजिसिस्ट केनेथ हडनट ने तब सीएनएन से कहा था कि हमारा जीपीएस स्टेशन आठ फीट खिसक चुका है. जब हमने जियोस्पेशियल इन्फॉर्मेशन अथॉरिटी से डेटा मांगा तो पता चला कि ये बात सही है.
इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड वॉल्कैनोलॉजी ने उस समय भी यही दावा किया था. उसने बताया था कि जापान में आए 8.9 तीव्रता के भूकंप ने उसके तटों को खिसका दिया है. यहां तक कि धरती अपनी धुरी पर 10 सेंटीमीटर यानी करीब 4 इंच खिसक गई थी.
Prelim. observations of fault rupture in Turkey EQ sequence using satellite images & radar data. This provides a first estimate of surface rupture length– over 300 km (~185 mi) from both EQs. We expect to see more of the rupture as data become available @USGS_HDDS @DisastersChart pic.twitter.com/A9xQ5nG27d
— USGS Earthquakes (@USGS_Quakes) February 9, 2023
USGS जियोफिजिसिस्ट शेंगजाओ चेन ने कहा था कि जापान में इतना भयानक भूकंप इसलिए आया क्योंकि धरती के क्रस्ट यानी ऊपरी लेयर में 400 किलोमीटर लंबी और 160 किलोमीटर चौड़ी दार बन गई थी. ऐसा दो टेक्टोनिक प्लेटों के एकदूसरे के नीचे स्लिप होने से हुआ था. दो प्लेटें करीब 18 मीटर खिसकी थीं.
तुर्की के नीचे क्या हुआ था 6 फरवरी को
इस नक्शे में आपको स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि एनाटोलियन माइक्रोप्लेट्स (Anatolian Microplates) एजियन माइक्रोप्लेट्स (Aegean Microplates) की तरफ बढ़ रही हैं. उधर अरेबियन टेक्टोनिक प्लेट (Arabian Plate) तुर्की की प्लेट को दबा रहा है. उपर से यूरेशियन प्लेट अलग दिशा में जा रही है. इन प्लेटों की धक्का-मुक्की से ताकत निकल रही है, उसी से पूरी धरती कांप रही है.
असल में तुर्की की टेक्टोनिक प्लेट दो हिस्से में बंटी है. पहली जिसपर इमारतें बनी हैं. दूसरी उससे काफी नीचे. आप देखेंगे कि नीचे वाली प्लेट पहले पीछे थी. जो अब दबाव की वजह से लगातार आगे बढ़ रही है. यही नहीं ये भी हो सकता है कि निचली प्लेट के खिसकने के चलते ऊपर की जमीन फट जाए. बीच में एक बड़ी दरार बन जाए. या पूरा देश दो हिस्सों में बंट जाए. क्योंकि माइक्रोप्लेट्स छोटी और कमजोर होती है. एनाटोलियन माइक्रोप्लेट्स बहुत ताकतवर नहीं हैं.