सिर्फ तुर्की और जापान की जमीनें ही भूकंप की वजह से नहीं हिली हैं. सिर्फ इनकी जमीन ही नहीं खिसकी है. ये घटनाएं भारत यानी इंडियन टेक्टोनिक प्लेट के साथ भी कई बार हो चुका है. यानी प्लेट खिसकी तो भूकंप आया. ऊपर की जमीन पर भयानक बर्बादी. भारत में जमीन खिसकने और नदियों के रास्ता बदलने की घटनाएं हो चुकी हैं.
असल में हो ये रहा है कि करोड़ों सालों से हमारी इंडियन टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) लगातार चीन की तरफ खिसक रही है. यानी तिब्बतन प्लेट (Tibetan Tectonic Plate) की तरफ. हर साल 15 से 20 मिलिमीटर की गति से आगे बढ़ रहा है. सोचने वाली बात ये है कि जमीन का इतना बड़ा टुकड़ा किसी दूसरे बड़े टुकड़े यानी तिब्बतन प्लेट को धकेलेगा. तो ऊर्जा स्टोर होगी. यही ऊर्जा हिमालय के नीचे स्टोर हो रही है.
IT Roorkee के अर्थ साइंसेज विभाग के साइंटिस्ट प्रो. कमल ने aajtak.in से बात करते हुए बताया कि अगर मैं आपको लगातार धक्का दूं. पर आपके पीछे दीवार हो, जहां से आप पीछे नहीं जा सकते. ऐसे में मेरी ताकत आपके शरीर में जमा हो रही है. यानी एनर्जी. जब आपको दर्द होगा. फिर आप रिएक्ट करेंगे. इसी रिएक्शन में जब ऊर्जा बाहर निकलेगी. तब भूकंप आएगा. यही हालात बना हुआ है एशियाई देशों के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स के अंदर.
इंडियन प्लेट अफ्रीकन प्लेट से अलग होकर एशिया की तरफ आई थी. इंडियन प्लेट अब भी शहद की तरह धीरे-धीरे आगे खिसक रही है. एक दिन ऐसे आएगा जब सारे महाद्वीप मिल जाएंगे. ये मिलकर एक सुपरकॉन्टीनेंट Amasia बना देंगे. खैर ये बात तो रही इंडियन टेक्टोनिक प्लेट की जो लगातार चीन की तरफ जा रही है. लेकिन हम उन घटनाओं का जिक्र करते हैं, जब भूकंपों की वजह से नक्शे बदल गए.
1819 कच्छ के रण का भूकंप... अल्लाह बंद बना, सिंधु नदी भारत में आई
16 जून 1819 में कच्छ के रण (Rann of Kutch) में 7.7 से 8.2 तीव्रता का भूकंप आया था. यह अनुमानित तीव्रता है. क्योंकि उस समय टेक्नोलॉजी इतनी विकसित नहीं थी. इस भूकंप से भयानक सुनामी आई थी. जिसकी वजह से उस समय 1543 लोगों की मौत हुई थी. कच्छ जिला असल में इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट की सीमा पर स्थित है. महाद्वीपों के प्लेटों में इस तरफ अक्सर टक्कर, रगड़ाव होती रहती है. ऐसे में भूकंप आने का खतरा बना रहता है. 2001 के भूकंप ने यहां भारी तबाही मचाई थी.
1819 के भूकंप का असर चेन्नई, कोलकाता, काठमांडू और बलूचिस्तान तक महसूस किया गया था. भूकंप दो-तीन मिनट तक आता रहा था. इस भूकंप की वजह से अल्लाह बंद (Allah Bund) नाम की ऊंची जगह बन गई थी. यानी रिज जैसा भौगोलिक ढांचा. यह ढांचा 6 मीटर ऊंचा था. करीब 150 किलोमीटर लंबा. यह ढांचा पूरन नदी के ऊपर बना था. सिर्फ इतना ही नहीं इस भूकंप के चलते सिंधु नदी 200 साल के बाद वापस भारत में आ गई थी.
यह अहमदाबाद के पास मौजूद नाल सरोवर को पानी देती है. यह खोज रोहन ठक्कर नाम के रिसर्च स्कॉलर ने की थी. जिन्होंने बाद में यह जानकारी Mail Today के साथ शेयर की थी. उन्होंने स्टडी के दौरान देखा कि पाकिस्तान से आने वाली एक नदी से इस सरोवर में पानी आ रहा है. उन्होंने उसके बाद सैटेलाइट तस्वीरों से जांच करनी शुरू की. सिंधु नदी बेसिन की कई झीलें जैसे मांछेर, हेमल और कलरी में पानी का फ्लो बढ़ गया था.
1897 शिलॉन्ग भूकंप... ब्रह्मपुत्र नदी का रौद्र रूप दिखा
यह भूकंप 8.2 से 8.3 तीव्रता का था. इसकी लहर पेशावर और बर्मा तक महसूस की गई थी. इस भूकंप की वजह से ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर 7.6 फीट बढ़ गया था. गोलपारा इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी की लहरें इतनी ऊंची हो गई थीं कि उन्होंने इलाके के पूरे बाजार को डूबा दिया था.
26 दिसंबर 2004 का भूकंप... अंडमान का द्वीप लापता हो गया था
26 दिसंबर 2004 का भूकंप और फिर सुनामी. भयानक हादसा. द वॉशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए उस समय के भारत के चीफ सर्वेयर प्रिथ्विश नाग ने कहा था कि हमारी टीम ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का अध्ययन किया. यहां पर बर्मा से लेकर इंडोनेशिया तक करीब 550 द्वीप हैं. नाग ने अंदाजा लगाया था कि पूरी संभावना है कि इस भूकंप की वजह से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीप खिसके हो. इसकी स्टडी करने में काफी समय जाता.
कई वैज्ञानिक इस बात पर जोर डाल रहे थे कि स्टडी होनी चाहिए. क्योंकि यहां से जहाजों का आना-जाना होता है. ऐसे में रूट बदलना पड़ सकता है. तब मिलिट्री अधिकारी कमांडेंट सलिल मेहता ने बताया था कि निकोबार के सुदूर इंदिरा प्वाइंट पानी के अंदर चला गया था. यह द्वीप सुमात्रा से करीब 138 किलोमीटर है. सलिल ने कहा कि हमें नहीं पता कि अब यह द्वीप वापस बाहर आएगा या नहीं. इसलिए वैज्ञानिकों को इसकी स्टडी करनी चाहिए. क्योंकि यह जहाजों का रूट है.
8 अक्टूबर 2005 का कश्मीर भूकंप... हिमालय में नई दरार बन गई
7.6 तीव्रता का यह भूकंप भारत और पाकिस्तान में तबाही लेकर आया था. कश्मीर इंडियन और यूरेशियन प्लेट की सीमा पर आता है. यहां पर आए भूकंप का असर यूरोप, चीन, रूस और मिडिल ईस्ट तक महसूस किया गया था. ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट रॉबर्ट यीट्स भूकंप के कुछ दिन बाद कश्मीर के केंद्र की स्टडी करने आए. उन्होंने पाया कि पाकिस्तान से कश्मीर होते हुए नेपाल तक हिमालय में एक अंदरूनी दरार पड़ गई है.
इस भूकंप की वजह से 75 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. एक लाख के आसपास लोग जख्मी हुए थे. 30 लाख से ज्यादा मकान गिरे थे. नई दरार यानी फॉल्ट लाइन बनने से बालाकोट और मुजफ्फराबाद का कस्बा बुरी तरह से ध्वस्त हो गया था. ये दोनों कस्बे या तो भूस्खलन में दब गए थे. या इनकी इमारतें जमींदोज हो गई थीं. नीलम नदी की अपस्ट्रीम बदल कर डाउनस्ट्रीम हो गई थी. उसका रास्ता बदल गया था.
अप्रैल 2015 नेपाल भूकंप... काठमांडू 30 सेकेंड में 10 मीटर खिसका था
नेपाल में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप से काठमांडू 30 सेकेंड में 10 मीटर खिसक गया था. क्योंकि नेपाल इंडियन और तिब्बत प्लेट की सीमा पर बसा हुआ है. काठमांडू का 120 किलोमीटर लंबा, 60 किलोमीटर चौड़ा हिस्सा दक्षिण दिशा की ओर खिसका था. कोलोराडो यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट रोजर बिलहैम ने यह स्टडी की थी. इंडियन प्लेट के लगातार खिसकने की वजह से तिब्बत के पठार समुद्र की सतह से करीब 30 हजार फीट ऊपर उठते चले गए. इससे पहले नेपाल में 1934 में 8.2 तीव्रता का भूकंप आया था.