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क्या अब भारत से अंतरिक्ष में जाएंगे लोग... 11 प्वाइंट्स में समझिए Vikram-S की लॉन्चिंग का मतलब

क्या अब भारत से अंतरिक्ष की उड़ान होगी? क्या स्पेस टूरिज़्म के रास्ते खुलेंगे? निजी कंपनी के सफल रॉकेट लॉन्च से क्या भारत में Elon Musk की कंपनी स्पेसएक्स जैसे मिशन होंगे. क्या इसरो रॉकेट लॉन्च करना बंद कर देगा? 11 प्वाइंट्स में समझिए Vikram-S की उड़ान के मायने

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श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से टेकऑफ करता Vikram-S रॉकेट.
श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से टेकऑफ करता Vikram-S रॉकेट.

देश में निजी कंपनियों द्वारा रॉकेट लॉन्च करने की शुरुआत हो चुकी है. 18 नवंबर 2022 की सुबह साढ़े 11 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से Vikram-S रॉकेट की सफल लॉन्चिंग की गई. रॉकेट 89 किलोमीटर की ऊंचाई यानी अंतरिक्ष के दरवाजे तक पहुंच गया. देश के पहले निजी रॉकेट की उड़ान के बाद आपके दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे होंगे. जानिए आपके हर सवाल के जवाब...

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Vikram-S Skyroot ISRO

क्या अब ISRO रॉकेट नहीं छोड़ेगा?

Vikram-S रॉकेट को भले ही स्काईरूट एयरोस्पेस ने बनाया हो लेकिन उसे लॉन्च किया गया है इसरो की फैसिलिटी से. फिलहाल देश में किसी निजी कंपनी के पास लॉन्च पैड नहीं है. ISRO अपने मिशन करता रहेगा. अपने रॉकेट छोड़ता रहेगा. 

क्या स्पेस टूरिज़्म के दरवाजे खुल जाएंगे? 

फिलहाल नहीं. यह एक परीक्षण उड़ान थी. इसकी सफलता के बाद दो और रॉकेट बनाए जाएंगे. जिनका नाम है- Vikram-2 और Vikram-3. लेकिन आपको बता दें कि ये दोनों ही रॉकेट फिलहाल कॉमर्शियल लॉन्च के लिए हैं. यानी इससे किसी इंसान को अंतरिक्ष की यात्रा नहीं कराई जाएगी. 

Vikram-S Rocket Takeoff
लॉन्च होने के बाद ऐसे अंतरिक्ष की ओर गया है विक्रम रॉकेट. 

अंतरिक्ष की यात्रा भारत में संभव हो पाएगी?

भारत से अंतरिक्ष यात्र संभव होगी लेकिन उसमें अभी कम से कम 10 साल लगेंगे. इंसानों को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए बेहद जटिल तकनीकी की जरुरत होती है. उसपर ISRO काम कर रहा है. भविष्य में ये हो सकता है कि निजी कंपनियों के साथ मिलकर इसरो अंतरिक्ष यात्राएं कराएं. 

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Gaganyaan Human Spaceflight

फिर... निजी रॉकेट लॉन्च होने से क्या फायदा? 

Vikram-S की सफलता से एक बात तय है कि अलग-अलग ताकत और वजन ढोने वाले रॉकेटों के बनने से ISRO पर जोर कम पड़ेगा. इसरो निजी रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में कॉमर्शियल सैटेलाइट्स तैनात करेगा. इसलिए देश को निजी कंपनियों के रॉकेट्स की जरुरत है. इस रॉकेट से छोटे सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष की निर्धारित कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इस रॉकेट का वजन 545 किलोग्राम है. व्यास 0.375 मीटर है. यह उड़ान भरकर 89 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया. 

Vikram-S रॉकेट के आने से क्या सस्ती होगी लॉन्चिंग

ये बात सही है कि निजी कंपनियों के आने से कॉमर्शियल लॉन्चिंग सस्ती हो जाएगी. इसके पीछे वजह ये है कि स्काईरूट एयरोस्पेस का रॉकेट Vikram-S पूरी तरह से कंपोजिट कार्बन से बना है. यानी इसमें धातु का उपयोग कम किया गया है. जो कि सस्ता पड़ता है. इसके अलावा इसका क्रायोजेनिक इंजन भी थ्रीडी प्रिंटेड है. यानी इसके निर्माण की लागत भी कम हो गई. इसके ईंधन को भी बदला गया है. इसमें आम रॉकेट ईंधन के बजाय LNG यानी लिक्विड नेचुरल गैस और लिक्विड ऑक्सीजन (LoX) की मदद ली गई है. यह किफायती और प्रदूषण मुक्त होता है. इस हिसाब से निजी कंपनियों के लॉन्च 30 से 40 फीसदी सस्ते हो जाएंगे. 

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Vikram Rockets Skyroot

कितने और रॉकेट बनेंगे Vikram सीरीज के

  • Vikram-1: 225 किलोग्राम वजनी पेलोड यानी सैटेलाइट को 500 KM ऊंची सन-सिनक्रोनस पोलर ऑर्बिट या 315 किलो वजनी पेलोड को 500 KM ऊपर लोअर अर्थ ऑर्बिट में भेज सकता है. 
  • Vikram-2: 410 किलो वजनी पेलोड को 500 KM के सन-सिनक्रोनस पोलर ऑर्बिट या 520 किलो वजनी पेलोड को 500 किमी की LEO में भेज सकता है. 
  • Vikram-3: 580 किलो वजनी पेलोड को 500 किमी के सन-सिनक्रोनस पोलर ऑर्बिट और 730 किलो वजनी पेलोड को 500 किमी की LEO में भेज सकता है. 

कितनी जल्दी तैयार हो जाते हैं ये रॉकेट

Vikram-1 रॉकेट को 24 घंटे में बनाकर लॉन्च किया जा सकता है. जबकि, विक्रम-2 और 3 को 73 घंटे में बनाकर लॉन्च किया जा सकता है. जबकि, वर्तमान रॉकेट्स को बनने में कम से कम 1-2 महीना लगता है. जल्दी भी काम किया जाए तो 15 दिन आराम से लग जाते हैं. 

Vikram Rockets Skyroot

पहले निजी रॉकेट की तकनीक आगे भी चलेगी

विक्रम-एस रॉकेट में लगाई गई 80 फीसदी तकनीक स्काईरूट एयरोस्पेस कंपनी के अगले सभी रॉकेटों में इस्तेमाल की जाएगी. क्योंकि पहले रॉकेट ने सफलता का आसमान चूम लिया है. टेलिमेट्री, एवियोनिक्स, ट्रैकिंग, इनर्शियल मेजरमेंट, जीपीएस, कैमरा जैसी तकनीकें आगे भी काम में लाई जाएंगी. 

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भारत में और कौन सी कंपनिया बना रही हैं रॉकेट 

देश में सिर्फ स्काईरूट एयरोस्पेस इकलौती कंपनी नहीं है, जो रॉकेट बना रही है. इसके अलावा दो कंपनियां और भी हैं. इनके नाम हैं- अग्निकुल कॉस्मॉस (AgniKul Cosmos) और बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस (Bellatrix Aerospace). खास बात ये है कि स्काईरूट ने पहले अपने रॉकेट का परीक्षण किया. उसे सफलता भी मिली. बाकी दोनों कंपनियां भी अपने रॉकेटों का अलग-अलग स्तर पर परीक्षण कर रही है. उड़ान भी जल्द संभव होगी. 

Vikram Rocket Skyroot

दुनिया की किन कंपनियों और सुविधाओं को टक्कर

दुनिया में इन दिनों रॉकेट बनाने वाली कई चार दर्जन कंपनियां हैं. ब्लू ओरिजन, स्पेसएक्स, अस्त्र स्पेस, फायरफ्लाई एयरोस्पेस, लॉकहीड मार्टिन, वनस्पेस, रॉकेट लैब जैसे कई अन्य. इनमें भारत की अग्निकुल, बेलाट्रिक्स और स्काईरूट का नाम भी है. फिलहाल वर्जिन ऑर्बिट, स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन जैसी बड़ी कंपनियां ही स्पेस टूरिज्म और कार्गो फैसिलिटी अंतरिक्ष तक पहुंचा रही हैं. 

भारत में कब होगा स्पेसएक्स जैसा काम? 

भारत में निजी कंपनियों ने अब शुरुआत की है. ये तेजी से विकसित होंगे. भारत के अंतरिक्ष उद्योग की शुरुआती प्राथमिकता कभी भी स्पेस टूरिज्म नहीं था. या फिर इंसानों को अंतरिक्ष में पहुंचाना मकसद नहीं था. मकसद था मौसम, खेती, आपदाएं, विकास के बारे में जानकारी देना. अब निजी कंपनियां आ रही हैं, तो इनके साथ मिलकर अगले 5 से 10 साल में यह काम भी संभव है. 

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