उरूल पोट्टल... मलयालम भाषा में भूस्खलन को यही बुलाया जाता है. दर्जनों लाशें मिट्टी के नीचे से निकल चुकी हैं. कइयों के दबने की आशंका है. मुंडक्की, चूरालमाला, अट्टामाला और नूलपुझा गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. वायनाड अकेला जिला नहीं उरूल पोट्टल झेलने वाला. कोट्टायम, इडुकी जैसे जिले भी इस समस्या से परेशान हैं. लेकिन वायनाड केरल का इकलौता पठारी इलाका है. यानी मिट्टी, पत्थर और उसके ऊपर उगे पेड़-पौधों के ऊंचे-नीचे टीलों वाला इलाका.
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की साल 2021 की स्टडी के मुताबिक केरल के पूरे क्षेत्रफल का 43 फीसदी हिस्सा भूस्खलन संभावित क्षेत्र है. इडुकी की 74 फीसदी और वायनाड की 51 फीसदी जमीन पहाड़ी ढलानें हैं. यानी भूस्खलन की आशंका बहुत ज्यादा. ऊपर से मॉनसून में भयानक बारिश. 2019 और 2020 की बाढ़ किसे नहीं याद होगी.
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1848 वर्ग किलोमीटर के केरल में सबसे ज्यादा ढलानी इलाका पश्चिमी घाट में हैं. यानी वायनाड, कोझिकोड, मल्लपुरम, इडुकी, कोट्टायम और पत्थन्मथिट्टा जिला. इन जिलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन के मामले सामने आते हैं. साल 2019 में कुल मिलाकर केरल के आठ जिलों ने 80 भूस्खलन की घटनाएं देखी थीं. सिर्फ तीन दिन में. इसमें 120 लोग मारे गए थे. 2018 में दस जिलों 341 बड़े भूस्खलन हुए. अकेले इडुकी में 143 भूस्खलन. 104 लोगों की मौत हो गई थी.
पिछले 24 घंटे में वायनाड के अलग-अलग इलाकों में हुई बारिश
व्यतीरीः 28 सेंटीमीटर (280 मिलिमीटर/11 इंच)
मननटोड्डीः 20 सेंटीमीटर (200 मिलिमीटर/7.87 इंच)
करापुझाः 14 सेंटीमीटर (140 मिलिमीटर/5.51 इंच)
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पहले केरल में ऐसी घटनाएं कम होती थी. लेकिन कुछ वर्षों से यह तेजी से बढ़ी हैं. साल 2019 में वायनाड के कुरिचियामला इलाके में 4000 मिलिमीटर बारिश हुई थी. जबकि एक दशक में होने वाली बारिश का औसत ही 2200 मिलिमीटर है. यानी भयानक बारिश की आशंका लगातार बनी रहती है.
क्या वजह है इतने ज्यादा भूस्खलन की?
जंगल की कटाई... केरल 100 वर्षों से ज्यादा समय से चाय के बागानों के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन पेड़-पौधों के प्रजातियों में आने वाली कमी से जंगलों में कमी आई है. जंगल भी तेजी से कटे हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पैटर्न भी बदल गया है. जिसकी वजह से ढलानों वाले इलाकों में भूस्खलन बढ़ता जा रहा है.
भौगोलिक स्थिति... पश्चिमी घाट के पठारों की ढलानों पर बसा है ये जिला. बेहद खड़ी ढलाने हैं ये. घाटियां हैं. पहाड़ियां हैं. इसलिए ऐसे इलाके में भूस्खलन की आशंका ज्यादा रहती है.
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भारी बारिश... मॉनसून के मौसम में वायनाड कई बार 2000 मिलिमीटर से ज्यादा बारिश बर्दाश्त करता है. इसकी वजह से मिट्टी सैचुरेट हो जाती है. जिससे वह कटती है. और भूस्खलन होते हैं.
मिट्टी की गुणवत्ता... वायनाड में ज्यादातर लैटराइट मिट्टी है. यानी बेहद कमजोर और कटने वाली. ये अगर बारिश से सैचुरेट होती है, तब इसका वजन बढ़ता है. लेकिन ताकत खत्म होती है. फिसलती है.
जमीन के उपयोग में बदलाव बड़ी मुसीबत
नेशनल सेंटर फॉर अर्थ स्टडीज ने एक हजार्ड जोन का का नक्शा बनाया था. करीब एक दशक पहले. तब जो इलाका सुरक्षित था. अब वो खतरनाक हो चुका है. वायनाड के व्यतीरी में 2018-19 में जो लैंडस्लाइड हुए, उनमें से 41 फीसदी ढलानों पर बने घरों के आसपास हुए. 29 फीसदी सड़कों के किनारे हुए.
17 फीसदी व्यावसायिक जमीनों के आसपास हुए. 10 फीसदी पेड़-पौधों वाले इलाके में हुए. सिर्फ 3 फीसदी जंगल में. यानी जमीन के उपयोग में बदलाव के बाद ही इस तरह की प्राकृतिक मुसीबत आती है. ढांचागत विकास के नाम पर बेतरतीब निर्माण ही ऐसी आपदाओं में बदल जाती है.
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कैसा है वायनाड का पूरा भौगोलिक इलाका?
2695 मीटर यानी 8841 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाला पठारी इलाका. केरल के 40 फीसदी इलाके में पश्चिमी घाट है. भयानक नमी वाला जंगली इलाका. जहां थोड़ी देर भी बारिश होने पर भूस्खलन होने लाजमी है. ऐसे इलाके के बीच में मौजूद है वायनाड. 2130 वर्ग किलोमीटर का वायनाड भौगोलिक तौर पर चार हिस्सों में बंटा है.
प्रायद्वीपीय जेनेसिक कॉम्पलेक्स, मिगमेटाइट कॉम्प्लेक्स, चार्नोकाइट ग्रुप और वायनाड ग्रुप. वायनाड ग्रुप के पत्थर उत्तरी इलाके में है. चार्नोकाइट दक्षिण और दक्षिणी-पूर्व इलाके में. ये असल में मिट्टी और पत्थरों को समझाने का एक रासायनिक-भौगोलिक तरीका है. जिला 2084 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है.
जिले के ज्यादातर हिस्से को कबानी नदी और उसकी शाखाओं से पानी मिलता है. मैदानी इलाकों में बाढ़ आना स्वाभाविक है. क्योंकि चारों तरफ पहाड़ियां हैं. जिले का पूर्वी हिस्सा 1000 से 1400 मीटर ऊंचा है. ज्यादातर इलाके में क्ले जैसी मिट्टी है. यानी कमजोर और सरकने वाली. इसलिए भूस्खलन का खतरा बढ़ा रहता है.
वायनाड में अब तक हुआ सबसे बड़ा भूस्खलन
वायनाड के कुरिचियामला इलाके में भूस्खलन से 150 एकड़ जमीन धंस गई थी. 130 एकड़ चाय का बागान और 20 एकड़ कृषिभूमि. 17 परिवारों ने अपना घर खो दिया था. साल 2020 में मुंडाक्की इलाके में तीन दिन में लगातार 900 मिलिमीटर बारिश हुई. लेकिन प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित इलाकों में भेज दिया था. बारिश रुकते ही अगले दिन बड़ा भूस्खलन हुआ.