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Age of Virus: वायरस की उम्र क्या होती है? क्यों तीन साल बाद भी चीन, भारत समेत हर जगह जिंदा है कोरोना

चीन में कोरोना की भयानक लहर चल रही है. ये वायरस बार-बार अपना रूप बदल कर सामने आ जा रहा है. आखिरकार वायरसों की कोई उम्र होती है क्या? क्या ये कभी मरते हैं? ये कैसे पैदा होते हैं? कहां होती है इनकी उत्पत्ति? बैक्टीरिया पहले आया या वायरस... या कोशिकाएं. चलिए जानते हैं वायरस की उम्र.

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वायरस पृथ्वी पर सबसे पहले आने वाले मॉलीक्यूल माने जाते हैं. (फोटोः गेटी)
वायरस पृथ्वी पर सबसे पहले आने वाले मॉलीक्यूल माने जाते हैं. (फोटोः गेटी)

वायरस (Virus) इंसानों से पहले धरती पर आए थे. ये बात करीब 350 करोड़ साल पुरानी है. असल में वायरस न जिंदा है, न ही मरे हुए. आप कह सकते हैं कि ये अमर हैं. उनका जेनेटिक मटेरियल हमारे अपने DNA में शामिल है. इंसान के जीनोम का 10 फीसदी हिस्सा वायरस के जेनेटिक मटेरियल से बनता है. ये हमारी धरती पर मौजूद अधिकतर जीवों पर हमला कर सकते हैं. चाहे वह छोटा बैक्टीरिया, पेड़-पौधें हों या फिर इंसान या जानवर.  

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जहां तक बात रही कोरोनावायरस (Coronavirus) की तो ये मानकर चलिए कि अब यह दुनिया के हर घर की एक घरेलू समस्या हो चुकी है. इस वायरस को हर कोई जानता है. पिछले तीन साल से किसी सेलिब्रिटी की तरह गूगल के सबसे ज्यादा सर्च किए गए शब्दों में से एक है. कोरोना तो नया है लेकिन वायरस आए कहां से. कब हुई थी उनकी उत्पत्ति. 

What is Age of Virus?

असल में वायरल इवोल्यूशन के बारे में ये जरूरी नहीं कि इंसान उसके बारे में कितना जानते हैं. जरूरी ये है कि कितना नहीं जानते. क्योंकि कोई भी वायरस किसी भी समय अपना रूप बदल सकता है. ये ऐसा राक्षस है, जो अपने शरीर के किसी भी अंग से नया वायरस पैदा कर सकता है. जैसे कोरोना कर रहा है. नए-नए वैरिएंट्स और सब-वैरिएंट्स आ रहे हैं. 

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कैसे किसी सेल में फैलता है वायरस? 

किसी भी वायरस के चारों तरफ एक प्रोटीन की लेयर होती है. जिसे कोशिका से लिपिड चुराना होता है. इस होस्ट कोशिका के शरीर से लिपिड लेकर वायरस उसी के ऊपर खुद का नया क्लोन बना लेता है. या तो एक जैसा. या फिर नई ताकत वाला नया वैरिएंट. ये बात वैज्ञानिकों को पता है. लेकिन इसकी सच्चाई जानने के लिए टाइम मशीन लेकर करीब 400 करोड़ साल पहले जाना पड़ेगा. नहीं कुछ तो कम से कम कुछ सौ लाख साल पहले. 

वायरस के जन्म की 3 कहानियां मौजूद

पहली है वायरस फर्स्ट हाइपोथीसिस (Virus First Hypothesis) यानी धरती बनने के बाद माहौल अनुकूल होने पर सबसे पहले वायरस बने. ये तब की बात है जब धरती पर प्रीमॉर्डियल सूप मौजूद था. वहीं पर ये रेप्लिकेट कर रहे थे. यानी अपनी आबादी बढ़ा रहे थे. इसी रेप्लिकेशन से बाकी के कोशिका वाले जीव बने. लेकिन वायरस के होस्ट बनने वाली कोशिकाएं वो या तो साथ ही साथ विकसित हो रही थीं. या फिर इवोल्यूशन के आखिरी स्टेज में बनीं. इस हाइपोथीसिस का मतलब ये है कि वायरस हमेशा से मौजूद थे. ये प्रोटीन की कवर से घिरे हुए न्यूक्लिक एसिड के कण हैं. पहले स्वतंत्र घूमने वाले न्यूक्लिक एसिड कण रहे होंगे, जिन्होंने बाद में अपनी सुरक्षा के लिए प्रोटीन कवर लगा लिया.

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What is Age of Virus?

दूसरी है द रिग्रेशन हाइपोथीसिस (The Regression Hypothesis). यानी कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि पहले जो कोशिकाएं बनीं, उनमें से कुछ खुद को अपने अस्तित्व में वापस ले जाना चाहती थी. यानी डीजेनरेट होना चाहती थी. ताकि खुद को रेप्लिकेट करने की काबिलियत को हासिल कर सकें. इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें पैरासाइट जैसा जीवन जीना पड़ा, जो अंततः वायरस के रूप में खत्म हुआ. मिमिविरिडे फैमिली के दो जायंट वायरसों की खोज इस हाइपोथीसिस को सपोर्ट करती हैं. ये वायरस डबल स्ट्रैंडेड डीएनए जीनोम हैं, जो एक अमीबा के 1400 प्रोटीन से अलग होकर बना है. सोचिए कोशिका से अलग होकर नया वायरस बन रहा है. 

तीसरी है द एस्केप्ड जीन्स हाइपोथीसिस (The Escaped Genes Hypothesis). यहां कहा जाता है कि वायरस जीन्स से विकसित हुए हैं. वो जीन्स जो कोशिकाओं वाले जीवों से अलग हुए थे. वह भी उस समय जब शुरुआती जीवन चल रहा था. उसके अलग-अलग स्टेज पर अलग होने वाले जीन्स ने मिलकर अलग-अलग वायरस बनाए. इन्हीं जीन्स ने वायरसों को स्वार्थी होने का मकसद दिया. यानी खुद को रेप्लिकेट करने का. अपना नया वैरिएंट बनाने का. साथ ही अलग-अलग जीवों को संक्रमित करने का. अब ये तीन कहानियां है, सच क्या है ये तो वैज्ञानिक ही पता करेंगे. 

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What is Age of Virus?

बैक्टीरिया पहले आए या वायरस

Nature Magzine में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बैक्टीरिया, आर्किया या यूरोकाइट्स से भी पुराने हैं वायरस. क्योंकि पहले रेप्लीकेट करने वाले मॉलीक्यूल RNA और DNA हैं. ज्यादातर वायरस RNA के बने होते हैं. इसका मतलब ये है कि किसी भी बैक्टीरिया या कोशिका वाले जीवों से पहले आए वायरस. अब जब न ये जीवित हैं, न मरते हैं... तो इनकी उम्र का तो सवाल ही नहीं उठता. बस ये खुद का क्लोन या वैरिएंट बनाते रहते हैं. 

वायरस का आम व्यवहार क्या है? 

वायरस का आम व्यवहार है खुद का क्लोन या वैरिएंट बनाने के लिए संक्रमण को फैलाना. वायरसों की दुनिया एकदम अलग है. भरपूर विभिन्नता के साथ. इनकी दुनिया अन्य बायोलॉजिकल जीवों से भिन्न है. जैसे- पोलियोवायरस इनमें RNA जीनोम होता है. वहीं हर्पीसवायरस में DNA जीनोम होता है. आगे बढ़ते हैं... पढ़िए, मजा आएगा... कुछ इंफ्लूएंजा वायरस सिंगल स्ट्रैंडेड जीनोम्स से बने होते हैं. कुछ वायर डबल स्ट्रैंडेड जीनोम्स से बनते हैं. जैसे- स्मॉलपॉक्स. 

जब इतने प्रकार के वायरस हैं तो इनमें कॉमन क्या है. सिर्फ तीन चीजें- पहली ये कि बेहद छोटे होते हैं. 200 नैनोमीटर व्यास या उससे कम. दूसरा ये कि सिर्फ होस्ट की कोशिका में ही खुद को रेप्लिकेट कर पाते हैं. तीसरा ये कि अभी तक एक भी वायरस ऐसा नहीं मिला है, जो राइबोसोम्स रखता हो. 

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What is Age of Virus?

क्या वायरस जिंदा होते हैं? 

जीवित की परिभाषा क्या है. बायोलॉजी के हिसाब से जिसका विकास हो. जो प्रजनन कर सके. शरीर का संतुलन बना सके. किसी प्रकार के एक्शन का रिएक्शन दे सके. कई तरह के मेटाबॉलिक काम कर सके. लेकिन भाई साहब... वायरस की कहानी में सिर्फ एक ही चीज होती है. रिप्रोडक्शन यानी प्रजनन लेकिन बिना किसी अपने जैसे जीव से संबंध बनाए. कैसे कोरोनावायरस ने खुद इतने वैरिएंट बना लिए. 

असल में किसी की खांसी या छींक से हवा के साथ निकले वायरस ने किसी और इंसान के शरीर में प्रवेश किया. कुछ दिन वह इंसान बीमार रहा. उसके बाद उसके शरीर में वायरस ने नया वैरिएंट बना लिया. या फिर पुराने स्वरूप को ही फैलाया. इसलिए हर साल इंफ्लूएंजा की वैक्सीन को अपडेट किया जाता है. क्योंकि उसका वायरस भी हर साल बदल जाता है. या खुद को वैक्सीन से बचने लायक बना लेता है. ये इवोल्यूशन ही तो है. 

वायरस किसी तरह का मेटाबॉलिक प्रोसेस नहीं करते. जैसे हम इंसान करते हैं. न इनके पास राइबोसोम्स होते हैं. न ही मैसेंजर RNA. ये खुद से अपने ऊपर मैसेंजर आरएनए से लेकर प्रोटीन कवर भी नहीं बना पाते. इन सीमाओं में रहने के बावजूद वायरस किसी होस्ट सेल में खुद को रेप्लिकेट कर लेता है. यानी जीवन की जो बायोलॉजिकल परिभाषा है, उसके हिसाब से वायरस जीवित नहीं हैं. 

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What is Age of Virus?

क्या वायरस के माता-पिता होते हैं? 

चुंकि वायरस किसी होस्ट सेल में ही रेप्लिकेट करता है. इसलिए उसी वायरस को पैरेंटल वायरस यानी वायरियोन (Virion) कहा जाता है. यही वायरस अपने कई स्वरूपों को पैदा करता है. जो जेनेटिकली और आकार-आकृति में एकदम वैसे ही होते हैं. यानी जो नए वायरस पैदा होते हैं, वो अपने पैरेंटल वायरस से मिलते-जुलते ही होंगे. बाहरी और आंतरिक व्यवहारों से. 

तो क्या कोरोनावायरस खत्म नहीं होगा... 

भूल जाइए कि कोरोनावायरस कभी खत्म होगा. क्योंकि ये लगातार आपके शरीर में रेप्लिकेट करता रहेगा. इसके नए-नए वैरिएंट्स आते रहेंगे. आपको संक्रमित करते रहेंगे. इसकी वैक्सीन अपडेट होती रहेगी. आपको बूस्टर पर बूस्टर डोज लगवाने पड़ेंगे. या फिर जैसी वैक्सीन आपको लगी है, उसी तरह की कोई नई अपडेटेड वैक्सीन लगानी पड़े. 

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