Indian Navy ने पहली बार देश में बने सीकर (Seeker) और बूस्टर (Booster) से लैस ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण किया है. दोनों यंत्रों की डिजाइनिंग डीआरडीओ ने की है. इन दोनों यंत्रों को देश में विकसित करने से काफी पैसे बचेंगे. क्योंकि अभी तक ये रूस (Russia) से आयात होते थे. लेकिन ये आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत बनाए गए यंत्र हैं.
डीआरडीओ या नौसेना ने यह नहीं बताया है कि सीकर किस तरह का है. उससे मिसाइल की सटीकता में कितना फायदा हुआ. लेकिन ब्रह्मोस मिसाइल के नौसैनिक वर्जन में लगे स्वदेशी बूस्टर को बनाने वाली नागपुर की कंपनी इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव लिमिटेड (EEL) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि स्वदेशी बूस्टर लगाने से लागत आधे से कम हो जाएगी. पूरे मिसाइल की नहीं, बल्कि बूस्टर की.
EEL के अधिकारी ने बताया कि स्वदेशी बूस्टर को मीडियम-रेंज स्टेल्थ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल में लगाया गया है. इसका परीक्षण पिछले तीन-चार सालों से चल रहा था. पहले लैंड वर्जन ब्रह्मोस में किया गया. अब नौसैनिक वर्जन में किया गया है. भविष्य में इन मिसाइलों को पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बदल दिया जाएगा. हमें बाहर से कुछ भी मंगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
मिसाइल में क्या होता है सीकर (What is Seeker in Missile)
सीकर किसी भी मिसाइल की सबसे जरूरी यंत्र होता है. यह मिसाइल की सटीकता को तय करता है. यानी मिसाइल टारगेट पर 100 फीसदी सटीकता से हमला कर पाएगा या नहीं. इस टेक्नोलॉजी के बारे में कोई भी देश किसी अन्य देश को जानकारी नहीं देता.
तकनीक के रहस्य को छिपा कर रखा जाता है. अगर भारत ने यह तकनीक बना ली है, तो इसका मतलब ये है कि अब विदेश से सीकर तकनीक को आयात करने की जरुरत नहीं है. सीकर को लेकर भारत में काम 2018 में शुरू हो गया था. डीआरडीओ और हैदराबाद की रिसर्च सेंटर इमारत (RCI) मिलकर इसे बना रहे थे.
कैसे काम करता है सीकर (How do Seeker in Missile Work)
मिसाइल की चोंच पर लगी यह टेक्नोलॉजी असल में उसे टारगेट तक पहुंचने के लिए गाइड करता है. गाइडेंस के लिए जो कमांड मिसाइल को कंट्रोल सेंटर से दिए जाते हैं. उसी आधार पर सीकर काम करता है. कुछ मिसाइलों में यह गाइडेंस ऑटोपॉयलट मोड पर इंटर्नल कंप्यूटर करता है. कुछ मिसाइलों को बाहर से कमांड देना होता है.
सीकर मिसाइल के इंटर्नल कंप्यूटर में फीड डेटा के आधार पर गाइड करता है. चोंच पर लगे सेंसर ही मिसाइल की सटीकता और रास्ता तय करते हैं. ये सेंसर तीन प्रकार के हो सकते हैं. इंफ्रारेड, राडार या फिर जीपीएस आधारित. इनमें से कौन सा यंत्र लगाना है वो टारगेट और मिसाइल की रेंज के आधार पर लगाया जाता है.
क्यों जरूरी है सीकर किसी मिसाइल में (Why Seeker is important)
इस समय प्रेसिसन गाइडेड हथियारों का जमाना है. दूर से बैठकर टारगेट सेट करो और मिसाइल दाग दो. मिसाइल सीधे टारगेट पर जाकर धमाका कर देती है. इन हथियारों की सटीकता को सीकर्स ही पूरा करते हैं. इन मिसाइलों में कई बार होमिंग गाइडेंस यानी ऑटोपॉयलट सीकर लगे होते हैं. इस समय इंफ्रारेड सीकर की मांग बढ़ी हुई है.
सबसे ज्यादा मिसाइलों में इंफ्रारेड सीकर लगे होते हैं. इसके अलावा विजिबल, माइक्रोवेव, मिलिमीटर वेव जैसे स्पेक्ट्रम वाले सीकर भी आते हैं. जिनका इस्तेमाल अलग-अलग तरह की मिसाइलों के लिए किया जाता है. कई बार किसी सीकर में कई तरह के सेंसर लगाए जाते हैं, ताकि वह हर मौसम, हर परिस्थिति में दुश्मन को बर्बाद करने में मदद करे.
क्या होता है बूस्टर (What is Booster?)
मिसाइल और रॉकेट दोनों में लगभग एक जैसे बूस्टर लगते हैं. बूस्टर यानी वो यंत्र जो गति को बूस्ट करें. बढ़ाए. बूस्टर मिसाइल की शुरुआती दो से तीन मिनट की उड़ान में आगे बढ़ने की ताकत देता है. ब्रह्मोस मिसाइल के बूस्टर पहले रूस से आते थे. जिनकी लागत काफी ज्यादा होती थी.
अब बूस्टर देश में ही बन रहे हैं. इनसे बूस्टर को आयात करने की लागत में आधे से भी कम कीमत लगेगी. रूस ने EEL को साल 2018 में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी. लेकिन रूसी टीम ने अप्रैल 2022 में कंपनी का दौरा किया था, जिसके बाद बूस्टर बनाने की अनुमति दी.
नौसैनिक ब्रह्मोस मिसाइल की ताकत
युद्धपोत से लॉन्च की जाने वाली ब्रह्मोस मिसाइल 200KG वॉरहेड ले जा सकती है. यह मिसाइल 4321 KM प्रतिघंटा की रफ्तार. इसमें दो स्टेज का प्रोप्लशन सिस्टम लगा है. पहला सॉलिड और दूसरा लिक्विड. दूसरा स्टेज रैमजेट इंजन है. जो इसे सुपरसोनिक गति प्रदान करता है. साथ ही ईंधन की खपत कम करता है.
दुश्मन की नजर में नहीं आती ब्रह्मोस मिसाइल
ब्रह्मोस मिसाइल हवा में ही रास्ता बदलने में सक्षम है. चलते-फिरते टारगेट को भी बर्बाद कर देता है. यह 10 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम हैं, यानी दुश्मन के राडार इसे देख ही नहीं पाएंगे. यह किसी भी मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा दे सकती है. इसे किसी एंटी-एयर मिसाइल सिस्टम से गिराना मुश्किल है. ब्रह्मोस मिसाइल अमेरिका के टोमाहॉक मिसाइल से दोगुना तेज उड़ती है.
ब्रह्मोस मिसाइल के चार नौसैनिक वर्जन
ब्रह्मोस मिसाइल के चार नौसैनिक वैरिएंट्स हैं. पहला- युद्धपोत से दागा जाने वाला एंटी-शिप वैरिएंट (Anti-Ship Variant), दूसरा युद्धपोत से दागा जाने वाला लैंड-अटैक वैरिएंट (Land Attack Variant). ये दोनों ही वैरिएंट भारतीय नौसेना में पहले से ऑपरेशनल हैं. तीसरा- पनडुब्बी से दागा जाने वाला एंटी-शिप वैरिएंट. सफल परीक्षण हो चुका है. चौथा- पनडुब्बी से दागा जाने वाला लैंड-अटैक वैरिएंट.
इन युद्धपोतों पर तैनात है ब्रह्मोस
भारतीय नौसेना ने राजपूत क्लास डेस्ट्रॉयर INS Ranvir - INS Ranvijay में 8 ब्रह्मोस मिसाइलों वाला लॉन्चर लगा रखा है. इसके अलावा तलवार क्लास फ्रिगेट INS Teg, INS Tarkash और INS Trikand में 8 ब्रह्मोस मिसाइलों वाला लॉन्चर तैनात है. शिवालिक क्लास फ्रिगेट में भी ब्रह्मोस मिसाइल फिट है. कोलकाता क्लास डेस्ट्रॉयर में भी यह तैनात है. INS Visakhapatnam में सफल परीक्षण हो चुका है. इसके बाद भारतीय नौसेना नीलगिरी क्लास फ्रिगेट में भी इस मिसाइल को तैनात करेगी.
सुखोई के साथ ब्रह्मोस का है लीथल कॉम्बिनेशन
सुखोई-30 एमकेआई (Sukhoi-30 MKI) भारतीय वायुसेना के सबसे खतरनाक फाइटर जेट्स में से एक है. ये विमान आवाज से दोगुना गति में उड़ती है. यानी 2120 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार. 3000 किलोमीटर इसकी रेंज है. अब अगर इस विमान से ब्रह्मोस मिसाइल के नए एयर लॉन्च वर्जन को दागा जाएगा, तो दुश्मन की धज्जियां उड़ जाएंगी. फाइटर जेट नजदीक जाकर या दूर से भी दुश्मन के बंकरों, अड्डों, कैंपों, टैंकों आदि पर सीधा और सटीक हमला कर सकता है.