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Aditya L1 Pre Orbit Plan: पूरे रफ्तार में सूर्य की ओर जा रहा आदित्य, जानिए अपने ऑर्बिट में फिक्स होने से पहले 125 दिन में क्या-क्या करेगा?

Aditya-L1 कल यानी 5 सितंबर 2023 की रात 3 बजे धरती के चारों तरफ अपना दूसरा ऑर्बिट बदलेगा. 2 सितंबर को लॉन्च हुई भारत की पहली सोलर ऑब्जरवेटरी अभी पृथ्वी के चारों तरफ 14 दिन और चक्कर लगाएगी. इस दौरान उसे चार बार और ऑर्बिट बदलनी है. फिर वह 109 दिन की यात्रा पर निकलेगा.

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अभी 14 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा Aditya-L1. इसके बाद वह जाएगा 15 लाख किलोमीटर की यात्रा पर. (सभी फोटोः ISRO)
अभी 14 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा Aditya-L1. इसके बाद वह जाएगा 15 लाख किलोमीटर की यात्रा पर. (सभी फोटोः ISRO)

आदित्य-L1 बेहद चुस्त-दुरुस्त स्थिति में अपनी यात्रा कर रहा है. अभी वह 18 सितंबर तक धरती के चारों तरफ चार बार ऑर्बिट बदलेगा. अगली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग पांच सितंबर की रात 3 बजे होगी. एक बार आदित्य अपने तय स्थान पर पहुंच जाए यानी L1 तक पहुंच जाएगा. तब वह हर दिन 1440 तस्वीरें भेजेगा. 

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यह तस्वीरें आदित्य में लगा विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) लेगा. माना जा रहा है कि पहली तस्वीर फरवरी या मार्च में मिलेगी. VELC को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है. सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा. इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा.  

ISRO's Aditya-L1 Mission

धरती के चारों तरफ ऑर्बिट इसलिए बदला जा रहा है ताकि वह इतनी गति हासिल कर ले कि वह 15 लाख km की लंबी यात्रा को पूरा कर सके. ये यात्रा पूरी करने के बाद जब आदित्य L1 पर पहुंच जाएगा, तब उसके सारे पेलोड्स ऑन किए जाएंगे. यानी उसमें जितने भी यंत्र लगे हैं, वो एक्टिव हो जाएंगे. वो सूरज की स्टडी शुरू कर देंगे. 

पांच साल का मिशन, उम्मीद 10-15 साल की

ISRO वैज्ञानिकों ने आदित्य-L1 मिशन को पांच साल के लिए बनाया है. लेकिन अगर यह सही सलामत रहा तो यह 10-15 साल तक काम कर सकता है. सूरज से रिलेटेड डेटा भेज सकता है. लेकिन इसके लिए उसे पहले L1 पर पहुंचना जरूरी है. साथ ही सुरक्षित रहना भी. अब सवाल ये उठता है कि लैरेंज प्वाइंट क्या है? 

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ISRO's Aditya-L1 Mission

यह अंतरिक्ष में मौजूद ऐसी जगह है जो धरती और सूरज के बीच सीधी रेखा में पड़ती है. धरती से इसकी दूरी 15 लाख किलोमीटर है. सूरज और धरती की अपनी-अपनी ग्रैविटी है. L1 प्वाइंट पर ही इन दोनों की ग्रैविटी आपस में टकराती है. या यूं कहें जहां पर धरती की ग्रैविटी का असर खत्म होता है. वहां से सूरज की ग्रैविटी का असर शुरू होता है. 

इसी बीच के प्वाइंट को लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). धरती और सूरज के बीच ऐसे पांच लैंरेंज प्वाइंट चिन्हित किए गए हैं. भारत का सूर्ययान लैरेंज प्वाइंट वन यानी L1 पर तैनात होगा. इससे स्पेसक्राफ्ट का ईंधन कम इस्तेमाल होता है. वह ज्यादा दिन काम करता है.  L1 सूरज और धरती की सीधी रेखा के बीच स्थित है. यह सूरज और धरती की कुल दूरी का एक फीसदी हिस्सा है. यानी 15 लाख किलोमीटर. सूरज से धरती की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है 

ISRO's Aditya-L1 Mission

क्या स्टडी करेगा आदित्य-L1? 

- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है.
- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा. 
- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा. 
- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा. 

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कौन-कौन से पेलोड्स जा रहे हैं आदित्य के साथ? 

PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य ... यह सूरज की गर्म हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा. कितनी गर्मी है इन हवाओं में इसका पता करेगा. साथ ही चार्ज्ड कणों यानी आयंस के वजन का भी पता करेगा. 

SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप... यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है. यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा. साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी. 

SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर... सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा. 

ISRO's Aditya-L1 Mission

HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)... यह एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा. यानी सौर लहरों से निकलने वाले हाई-एनर्जी एक्स-रे का अध्ययन करेगा. 

ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट... इसमें दो सब-पेलोड्स हैं. पहला SWIS यानी सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर जो कम ऊर्जा वाला स्पेक्ट्रोमीटर है. यह सूरज की हवाओं में आने वाले प्रोटोन्स और अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा. दूसरा STEPS यानी सुपरथर्म एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर. यह सौर हवाओं में आने वाले ज्यादा ऊर्जा वाले आयंस की स्टडी करेगा.  

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MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स... यह सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा. साथ ही धरती और सूरज के बीच मौजूद कम तीव्रता वाली मैग्नेटिक फील्ड की भी स्टडी करेगा. इसमें दो मैग्नेटिक सेंसर्स को दो सेट हैं. ये सूर्ययान के मुख्य शरीर से तीन मीटर आगे निकले रहेंगे. 

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