यूरेशियन वुडकॉक (Eurasian Woodcock) दुनिया के सबसे सफेद पंख वाला पक्षी माना गया है. इसके पंखों पर मौजूद सफेद हिस्से सबसे ज्यादा रोशनी रिफलेक्ट करते हैं. इसलिए इसके पंख को सबसे सफेद माना गया है. हैरानी की बात ये है कि इस पक्षी के शरीर का ज्यादातर हिस्सा भूरे रंग का है. लेकिन जितना हिस्सा सफेद है, वो बहुत ज्यादा है.
यूरेशियन वुडकॉक किसी भी अन्य सफेद पंखों वाले पक्षियों से 30 फीसदी ज्यादा रोशनी रिफलेक्ट करता है. इसके शरीर पर जहां भी सफेद रंग है, वो सबसे ज्यादा सफेद माना गया है. यूरोप और एशिया में बसंत ऋतु के मौसम में ये पक्षी ज्यादा देखे जाते हैं. नर पक्षी अपने सफेद रंगों का इस्तेमाल मादाओं को आकर्षित करने के लिए करता है. ताकि दोनों प्रजनन कर सकें. यही काम मादाएं भी करती हैं, जब उन्हें नरों को अपने पास बुलाना होता है.
दोनों के सफेद रंग के हिस्से सिर्फ इसी दौरान दिखते हैं. नर और मादा यूरेशियन वुडकॉक पक्षी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही प्रजनन करते हैं. इसी समय ये सबसे ज्यादा एक्टिव रहते हैं. बाकी पूरे दिन इनके शरीर का सफेद रंग भूरे रंग के पंखों से ढंका रहता है. भूरे रंग के शरीर से इन्हें झाड़ियों और अन्य स्थानों पर छिपने में मदद मिलती है ताकि शिकारी जानवर या पक्षी इनपर हमला न कर सके. साथ ही ये चुपके से कीड़े-मकौड़ों का शिकार कर सकें.
इंपीरियल कॉलेज लंदन के पक्षी विज्ञानी जेमी डनिंग कहते हैं कि यूरेशियन वुडकॉक की जानकारी वैज्ञानिकों के पास बहुत पहले से है. वो उसे जानते हैं. लेकिन इसके सफेद रंग की जानकारी अब तक नहीं थी. किसी को नहीं पता था कि इस पक्षी के पास सबसे सफेद रंग के पंख भी होंगे. इन पंखों की मदद से रात में या कम रोशनी के दौरान उड़ पाते हैं.
शोधकर्ताओं ने इस पक्षी के पंखों की जांच करने के लिए स्विट्जरलैंड से इसके पंख मंगवाए. इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से पंखों के आकार को जांचा गया. स्पेक्ट्रोफोटोमिट्री के जरिए रोशनी का रिफ्लेक्शन देखा गया. इसके बाद ऑप्टिकल मॉडलिंग की गई. ताकि पंखों से टकराने वाले रोशनी की जांच की जा सके.
अन्य सफेद पंख वाले पक्षियों की प्रजातियों की भी जांच की गई लेकिन यूरेशियन वुडकॉक के सफेद पंखों ने बाजी मार ली. इसके बाद अगर किसी पक्षी का पंख सबसे ज्यादा लाइट रिफलेक्ट करता है, तो वह है कैस्पियन टर्न. यह 38 फीसदी लाइट रिफलेक्ट करता है. लेकिन यूरेशियन वुडकॉक की सफेदी कैस्पियन टर्न से 31 फीसदी ज्यादा है. यह स्टडी हाल ही में रॉयल सोसाइटी इंटरफेस में प्रकाशित हुई है.