दिल्ली-NCR की जमीन पिछले एक हफ्ते में करीब तीन बार कांप चुकी हैं. आधा देश हिल चुका है. दो बार नेपाल में आए भूकंप से. एक बार पाकिस्तान में आए भूकंप से. लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं? जैसे-
इन सवालों के जवाब हैं. लेकिन डरावने नहीं. डरने की जरुरत तो है. क्योंकि आज से करोड़ों साल बाद सभी महाद्वीप मिलने वाले हैं. इस बात की संभावना पूरी है. अब दो चीजें जब आपस में मिलती हैं या टकराती हैं तो नुकसान होता ही है. कम से कम जियोग्राफिकल यानी भौगोलिक तौर पर. IIT Roorkee के अर्थ साइंसेज विभाग के साइंटिस्ट प्रो. कमल ने aajtak.in से खास बातचीत में बताया कि पाकिस्तान से लेकर भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों तक हिमालय की पूरी बेल्ट में भूकंप का आना बेहद सामान्य घटना है.
हिमालय के नीचे स्टोर हो रही है भारी मात्रा में ऊर्जा
प्रो. कमल ने कहा कि इसे ऐसे समझिए- मैं आपको लगातार आगे की ओर धकेल रहा हूं. लेकिन आपके आगे दीवार है. आप कहीं जा नहीं सकते. ऐसे में मेरे धकेलने से आपके शरीर में ऊर्जा स्टोर हो रही है. इससे आपको दर्द होगा. उलझन होगी. ये सभी प्रतिक्रियाएं ऊर्जा स्टोर होने से होती है. आप इसे रिलीज करने के लिए रिएक्ट करेंगे. झिड़केंगे. गुर्राएंगे. पलटकर धक्का देंगे. इस हालात बने हुए हैं एशियाई देशों के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स के अंदर.
इंडियन प्लेट हर साल 15-20 मिमी चीन की ओर खिसक रही
असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) हर साल 15 से 20 मिलिमीटर की गति से तिब्बतन प्लेट (Tibetan Tectonic Plate) की तरफ बढ़ रहा है. अब आप सोचिए जब इतना बड़ा जमीन का टुकड़ा किसी अन्य बड़े टुकड़े को धकेलेगा, तो कहीं न कहीं तो ऊर्जा स्टोर होगी. तिब्बत की प्लेट खिसक नहीं पा रही हैं. इसलिए दोनों प्लेटों के नीचे मौजूद ऊर्जा निकलती है. ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में निकलती है, तो उससे घबराने की जरुरत नहीं है. जैसे आपको दीवार की ओर कोई धकेल रहा हो. लेकिन आप रिएक्ट नहीं कर पा रहे हैं. सिर्फ गुर्रा रहे हैं. या फिर हल्का-हल्का शरीर को हिला रहे हैं.
करोड़ों साल बाद फिर से बन जाएगा सुपरकॉन्टीनेंट
प्रो. कमल ने बताया कि अगर ऐसे में आप खुद को जोर से धकेलते हैं. या फिर आपको धकेलने वाले की तरफ चले जाते हैं या उसे झटकते हैं तो ऊर्जा तेजी से निकलती है. यानी तिब्बत की प्लेट के आसपास स्टोर ऊर्जा तेजी से निकलती है तो भयानक भूकंप आ सकता है. इंडियन प्लेट शहद की तरह धीरे-धीरे आगे खिसक रही है. एक दिन ऐसे आएगा जब सारे महाद्वीप मिल जाएंगे. ये मिलकर एक सुपरकॉन्टीनेंट बना देंगे. हालांकि, तब तक इंसानियत रहेगी या नहीं ये नहीं कह सकते.
ये भी पढ़ेंः खत्म हो जाएगा प्रशांत महासागर, सारे महाद्वीप एक हो जाएंगे
भूकंप कब आएंगे, कोई नहीं बता सकता... वॉर्निंग सिस्टम लगा सकते हैं
प्रो. कमल ने बताया कि हिमालयन रीजन में बहुत ज्यादा एनर्जी स्टोर है. ये धीरे-धीरे रिलीज होती रहे तो बेहतर है. एकसाथ निकलेगी तो भयानक तबाही होगी. क्योंकि इतनी ऊर्जा को भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल समेत कई एशियाई देशों की ऊपरी जमीन सह नहीं पाएगी. भूकंप कब आएंगे इसका पता कोई नहीं कर सकता. लेकिन हम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगा सकते हैं. ताकि अगर कहीं भूकंप आया है तो हम लोगों को सही समय पर सुरक्षित स्थानों पर जाने की मोहलत दे सकें. हाल ही में आए नेपाल के भूकंपों की पहली लहर की सूचना हमें भूकंप आने की 30 सेकेंड बाद ही मिल गई थी. इन भूकंपों की वजह तिब्बती प्लेट के रेजिस्ट करना है.
दिल्ली में 5 तीव्रता का भूकंप, 10 मिनट में लखनऊ हिला देगा
अगर भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5 से ज्यादा है तो उसकी पहली लहर 10 मिनट में 500 किलोमीटर तक फैल जाती है. यानी दिल्ली में भूकंप का केंद्र बनता है तो लखनऊ तक भूकंप की पहली लहर 10 मिनट में पहुंच जाएगी. ये जरूरी नहीं रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता पांच ही रहे. वह कम होती चली जाती है. हल्के झटके मध्य भारत के भोपाल तक महसूस किये जा सकते हैं. टेक्टोनिक प्लेटों के हिलने, टकराने, चढ़ाव, ढलाव से लगातार प्लेटों के बीच तनाव बनता है. ऊर्जा बनती है. अगर हल्के-फुल्के भूकंप आते रहते हैं, तो ये ऊर्जा रिलीज होती रहती है. ऐसे में बीच-बीच में बड़े भूकंपों के आने की आशंका रहती है. अगर ऊर्जा का दबाव ज्यादा हो जाता है और यह एकसाथ तेजी से निकलने का प्रयास करता है, तो भयानक भूकंप सकते हैं.
दिल्ली-NCR के लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है
दिल्ली-NCR भूकंप के पांचवें और चौथे जोन में है. यहां के लोगों को सतर्क रहने की जरुरत है. क्योंकि हम भूकंप को न रोक सकते हैं, न टाल सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में भूकंप से संबंधित अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाए जाएं. पाकिस्तान के हिंदूकुश में भूकंप आता है तो हमें 5 मिनट बाद पता चलता है कि भूकंप आया है. यानी एक लहर आती है. अगर हमारे पास एक सिग्नल आता है कि भूकंप आ गया है, इस इलाके को यह इतनी देर में हिला देगा. तो इसे कहते हैं अर्ली वॉर्निंग. हम इसके जरिए लोगों को बचा सकते हैं. उत्तराखंड में हमने पहला ऐसा सिस्टम लॉन्च किया है. सरकार ऐसे सिस्टम लगाने का प्रयास पूरी तरह से कर रही है.
ये भी पढ़ेंः 40 सेकेंड में देखिए 100 करोड़ सालों में कैसे हिलती रही धरती?
IIT रूड़की ने विकसित किया भूकंप अर्ली वॉर्निंग एप
IIT Roorkee ने अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को लेकर एक एप विकसित किया है. इसका नाम है उत्तराखंड भूकंप अलर्ट (Uttarakhand Bhookamp Alert). इस एप में एक अलार्म है, जो भूकंप आने पर बजेगा. यानी जैसे ही अलार्म बजे आप तुरंत सुरक्षित स्थानों पर चले जाइए. इसके अलावा अर्ली वॉर्निंग नोटिफिकेशन मैसेज भी आएंगे. क्योंकि उत्तराखंड में अगर भूकंप आता है तो Delhi-NCR के लोगों को असर हो सकता है. लोग इस एप को प्लेस्टोर या एपल आईस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं.
भारत में इस साल अब तक आए 948 भूकंप
भारत में इस साल जनवरी से अब तक 948 बार भूकंप आए हैं. 240 बार रिक्टर पैमाने पर चार की तीव्रता से ऊपर के भूकंप थे. यानी इतनी बार लोगों को धरती के कांपने का पता चला. नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के मुताबिक इस साल उनके पास मौजूद 152 स्टेशनों से 1090 बार भूकंप आने की जानकारी मिली. लेकिन सिर्फ 948 बार ऐसे भूकंप रिकॉर्ड हुए जो भारत और उसके आसपास के एशियाई देशों में पैदा हुए. जनवरी से सितंबर तक यानी 9 महीने में 948 भूकंप. यानी हर महीने करीब 105 से ज्यादा भूकंप के झटके आए. चार तीव्रता के नीचे के भूकंपों का पता नहीं चलता. जिन भूकंपों की कंपकंपी महसूस होती है वो चार से ऊपर के होते हैं. यानी 4.0 से लेकर 6 या 7 या 8 या उससे ऊपर.
ये भी पढ़ेंः भारत की जमीन से निकला था पहला महाद्वीप
भारत में हैं भूकंप के पांच जोन, इस हिस्से में ज्यादा खतरा
पांचवें जोन में देश के कुल भूखंड का 11 फीसदी हिस्सा आता है. चौथे जोन में 18 फीसदी और तीसरे और दूसरे जोन में 30 फीसदी. सबसे ज्यादा खतरा जोन 4 और 5 वाले इलाकों को है. एक ही राज्य के अलग-अलग इलाके कई जोन में आ सकते हैं. सबसे खतरनाक जोन है पांचवां. इस जोन में जम्मू और कश्मीर का हिस्सा (कश्मीर घाटी), हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं.
चौथे जोन में जम्मू और कश्मीर के शेष हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाकी हिस्से, हरियाणा के कुछ हिस्से, पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश के उत्तरी हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल का छोटा हिस्सा, गुजरात, पश्चिमी तट के पास महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और पश्चिमी राजस्थान का छोटा हिस्सा इस जोन में आता है.
तीसरे जोन में आता है केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह, उत्तर प्रदेश और हरियाणा का कुछ हिस्सा, गुजरात और पंजाब के बचे हुए हिस्से, पश्चिम बंगाल का कुछ इलाका, पश्चिमी राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार का कुछ इलाका, झारखंड का उत्तरी हिस्सा और छत्तीसगढ़. महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक का कुछ इलाका. जोन-2 में आते है राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु का बचा हुआ हिस्सा. पहले जोन में कोई खतरा नहीं होता. इसलिए हम उसका जिक्र नहीं कर रहे हैं.