इंडिया टुडे ने नोएडा और फरीदाबाद के रिहायशी इलाकों और गेटेड सोसाइटी से पानी के सैंपल लिए. उन्हों जांच के लिए नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरी (NABL) और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त लैब में जांच के लिए भेजा. पता चला कि दोनों जगहों पर TDS लेवल 500 मिलिग्राम प्रति लीटर है. नोएडा में तो कुछ जगहों पर ये 2500 मिलिग्राम प्रति लीटर है.
क्या कहते हैं सैंपल?
नोएडा के पानी के सैंपल की जब जांच की गई तो पता चला कि पानी में टीडीएस की तय और अनुमति प्राप्त सीमा तो कब की पीछे छूट गई है. जैसे- पानी कैल्सियम कार्बोनेट की तय मात्रा 200 मिलिग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए. अनुमति प्राप्त सीमा 600 मिलिग्राम है. लेकिन सैंपल की जांच में यह 845 मिलिग्राम प्रति लीटर निकला.
क्लोराइड्स के लिए तय सीमा 250 मिलिग्राम प्रति लीटर है. निकला 708 मिलिग्राम. कैल्सियम के लिए 75 मिलिग्राम प्रति लीटर तय सीमा है, निकला 186 मिलिग्राम प्रति लीटर. मैग्नीशियम भी तय सीमा से तीन गुना ज्यादा मात्रा में पाया गया. यानी नोएडा के पानी में कितने टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (TDS) हैं, ये आप खुद ही देख लीजिए.
क्या होता है जब पानी हार्ड होता है?
पीने योग्य पानी और सैनिटेशन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पानी में खनिजों और रसायनों की संतुलित मात्रा से इंसान की सेहत सही रहती है. वह फायदेमंद होता है. लेकिन यही खनिज और रसायन अगर तय सीमा से ज्यादा मात्रा में हो तो सेहत पर बुरा असर होता है. जैसे कैल्सियम की अधिक मात्रा कब्ज और किडनी स्टोन पैदा करती है. क्लोराइड सोडियम के साथ मिलकर ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है.
फ्लोराइड की अधिक मात्रा से दांतों का रंग खराब होता है. टूटने लगते हैं. फ्लोरोसिस हो जाता है. हड्डियां बेडौल होने लगती हैं. नोएडा में पानी दो स्रोत हैं. जिनसे रिहायशी इलाकों में पानी सप्लाई होता है. पहला गंगा नदी का पानी. दूसरा भूजल. नोएडा अथॉरिटी ने पिछले साल कहा था कि कुछ इलाकों में भूजल काफी ज्यादा हार्ड है.
नोएडा की मिट्टी दो मिनरल्स बेहद कॉमन हैं. मैग्नीशियम और कैल्सियम. इनकी वजह से नोएडा का पानी हार्ड होता जा रहा है. जिसका रेंज 108 मिलिग्राम प्रतिलीटर से लेकर 838 मिलिग्राम प्रतिलीटर की बीच है. यह जलस्रोत पर निर्भर करता है कि उसकी हार्डनेस कितनी ज्यादा होगी.
क्या RO का पानी इससे बचा पाएगा?
नोएडा में सीधे नल से पानी पीना खतरनाक है. इसलिए लोग अपने घरों में RO यानी रिवर्स ऑस्मोसिस का पानी पीते हैं. RO मशीन टीडीएस को नियंत्रित तो करती हैं. हार्डनेस भी कम करती है. लेकिन कई बार पानी से जरूरी मिनरल्स को खत्म या कम भी कर देती हैं. यह भी एक समस्या है. क्योंकि इंसानी शरीर को खनिजों की जरूरत भी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक जिस पानी से मिनरल्स निकाले जा चुके हों, उसे फिर से सेहतमंद नहीं बनाया जा सकता. ऐसा पानी पीने से शरीर को जरूरी मात्रा में मिनरल्स नहीं मिल पाते. अगर पानी में कैल्सियम और मैग्नीशियम तय मात्रा में नहीं है, तो वह आपके सेहत पर प्रतिकूल असर डालती है.
हार्ड पानी का असर अन्य वस्तुओं पर भी पड़ता है
सेफ ड्रिकिंग वाटर फाउंडेशन के मुताबिक हार्ड पानी का असर सिर्फ इंसानी शरीर पर ही नहीं पड़ता, बल्कि अन्य धातुओं पर भी पड़ता है. जैसे पाइपलाइन, नल, बर्तन आदि. अगर हार्डनेस ज्यादा होती है तो पानी का स्वाद अच्छा नहीं लगता. यह आपकी त्वचा को सुखा सकता है. त्वचा पर धारियां दिख सकती है.
इसके अलावा पाइपलाइन और पाइप के जोड़ों पर या नलों पर आपको पानी के अलग-अलग तरह के दाग या चकत्ते भी दिख सकते हैं. प्ल्मबिंग सिस्टम पर असर पड़ सकता है. इसकी वजह से पावर सप्लाई का इस्तेमाल ज्यादा होता है. कीमत ज्यादा लगती है.