सर्दी का महीना दिसंबर. आयरलैंड यूरोप का सर्दी वाला इलाका. वहां पर साल 2010 में एक 76 साल के बुजुर्ग माइकल फाहर्टी अपने लिविंग रूम में खुद-ब-खुद जल गए. एक साल तक जांच-पड़ताल होती रही. पुलिस मौत की वजह नहीं खोज पाई. लेकिन आयरलैंड के अखबार आयरिश इंडिपेंडेंट ने अलग ही रोंगटे खड़े देने वाली खबर दी. उसने लिखा बुजुर्ग की मौत सहज मानव दहन (Spontaneous Human Combustion) से हुई है.
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड में पैथोलॉजिस्ट रोजर बायर्ड कहते हैं कि जांचकर्ता जब घटनास्थल पहुंचे तो माइकल फाहर्टी का हाथ और पैर का पंजा सही सलामत बचे हुए थे. सिर और धड़ जलकर खाक हो चुके थे. आसपास के फर्नीचर को भी मामूली नुकसान ही पहुंचा था. रोजर कहते हैं अगर सहज मानव दहन असल प्रक्रिया है या नहीं ये सही से बता पाना मुश्किल है. लेकिन पिछले 300 वर्षों में करीब 200 रिपोर्ट्स आईं हैं, जिनमें इंसान बिनी बिना पेट्रोल या केरोसिन छिड़के. बिना खुद को किसी माचिस या लाइटर से आग लगाए जल गया.
रोजर ने कहा कि इंसान जलता है. लेकिन सहज तरीके से नहीं. ये स्पॉन्टेनियस नहीं होता. इससे पहले 1951 में अमेरिका के फ्लोरिडा में एक महिला की मौत भी इसी तरह से हुई थी. असल में 17वीं सदी में पहली बार डेनमार्क के एक एनाटोमी एक्सपर्ट ने पहली बार सहज तौर पर इंसान के खुद से जलने की प्रक्रिया को समझाया था. क्योंकि यूरोप में कहानियां चलती हैं कि 14वीं सदी में एक नाइट ने पोलोनस वॉस्टीयस को बुलाया. वाइन पी. इसके एक रात बाद वह खुद जलकर खत्म हो गया.
इंसानों का अचानक से खुद-ब-खुद जल जाने की वजह अक्सर ज्यादा शराब पीना माना जाता है. यहां तक तो ठीक था लेकिन 1853 में मशहूर लेखक चार्ल्स डिकेन्स ने इस बात को अपनी एक नॉवेल में लिख कर इसे और फैला दिया. नॉवेल 'ब्लीक हाउस' में क्रूक नाम का किरदार शराबी थी. जो एक दिन अचानक खुद से ही जल गया. इस बात का जिक्र उस नॉवेल के पेज नंबर 402 में है. बाद में लोग इसे ईश्वर, मोटापा और आंतों की गैस से जोड़ने लगे.
रोजर बायर्ड ने कहा कि ये सब बहाने और मान्यताएं जरूर बने लेकिन इनकी साइंटिफिक वजह नहीं बन सके. इंसानों का खुद से जलना संभव है. कुछ परिस्थितियों में ये हो सकता है. लेकिन अचानक होना संभव नहीं है. इंसानों का शरीर जलता है, खुद से जलता है. लेकिन अचानक जलने का कोई प्रमाण नहीं है. अगर कोई इंसान जलता है तो उसके पीछे कोई न कोई बाहरी सोर्स होता है. यानी वह किसी चीज से जला है. आमतौर पर सिगरेट, लैंप, मोमबत्ती ही वजह होते हैं.
विज्ञान कहता है कि इंसानी शरीर किसी मोमबत्ती की तरह काम कर सकता है. साइंस में इसे विक इफेक्ट (Wick Effect) कहते हैं. जहां पर इंसान का शरीर किसी कैंडल जैसा बिहेव करता है. 1998 में बीबीसी के एक प्रोग्राम में इंग्लैड के वैज्ञानिकों ने एक मरे हुए सुअर के साथ ऐसी स्थितियां पैदा की, उसका शरीर अपने आप जल जाए. सुअर को पहले कंबल में लपेटा गया. उसके बाद उसे आग लगा दिया गया. लेकिन सुअर के पैर का खुर नहीं जला. यहीं कहानी खुद से जलने वाले इंसानों के साथ होता आया है. लोगों का सिर-धड़ जलता है लेकिन हाथ और पैर के पंजे बच जाते हैं.
विक इफेक्ट के मुताबिक शरीर में जमा फैट आग के लिए ईंधन का काम करता है. इंसान अपने ही फैट की वजह से मोमबत्ती की तरह जल जाता था. कपड़े और कंबल इसमें कैंडल के बीच के धागे की तरह काम करते हैं. लेकिन बिना बाहर से आग लगाए बगैर संभव नहीं. अब आप सोचिए कि कोई व्यक्ति कंबल लपेटकर शराब पी रहा है. एल्कोहल पेट्रोल और गैसोलिन की तरह ही तेजी से आग पकड़ता है. अब अगर इंसान के मुंह शराब पीते समय वह धीमे-धीमे बाहर आ रही हो और वह व्यक्ति सिगरेट पी रहा हो, तो आग लगने का खतरा रहता है.
इंसान के शरीर में जो फैट होता है वह कम तापमान में भी लंबे समय तक सुलगता रह सकता है. इसलिए शराब पीते समय मुंह से शराब गिर रही है, और गलती से उसमें सिगरेट से आग लगती है, आपके पेट के अंदर मौजूद शराब तक आग पहुंच जाएगी. इसके बाद क्या होगा वो आपको समझ आ गया होगा. पहले शराब जलेगी. फिर शरीर के अंगों के साथ फैट. आप धीमे-धीमे करके जल जाएंगे. लेकिन यह घटना बेहद दुर्लभ होती है. ये तभी संभव है जब कोई जानबूझकर आपके शरीर के अंदर आग पहुंचाए. यह प्रकिया संभव है. ये वैज्ञानिक भी है. इसमें कोई दैवीय शक्ति शामिल नहीं है.