भारत समेत एशिया के कई दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी देशों में इस बार सूखा पड़ सकता है. वजह होगी गर्मी. ज्यादा तापमान. इसके पीछे क्या है? विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के मुताबिक इस बार अल-नीनो (El Niño) की वजह से गर्मी ज्यादा होगी. बारिश भी डिस्टर्ब होगी. या कम होगी. मॉनसून का दूसरा हिस्सा ज्यादा प्रभावित हो सकता है.
WMO के मुताबिक मई 2023 में अल-नीनो असर दिखाना शुरू कर देगा. इसकी वजह से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून पर भारी असर पड़ेगा. क्योंकि इसी मॉनसून पर पूरे देश की कृषि व्यवस्था चलती है. देश की 70 फीसदी सिंचाई इसी बारिश से होती है. किसान इस पर निर्भर रहते हैं. हालांकि इसमें बदलाव की संभावना भी है. लेकिन कह नहीं सकते.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दावा किया है कि इस बार देश में सामान्य बारिश होगी. अल-नीनो का असर मॉनसून के दूसरे हिस्से में देखने को मिल सकता है. लेकिन इससे पहले भारत को गर्मी से जूझना पड़ेगा. खतरनाक हीटवेव का सामना करना पड़ेगा. इससे लोगों की सेहत पर असर पड़ेगा. खेती-बाड़ी पर असर होगा. इसके अलावा कई तरह के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सिस्टम को भी नुकसान होगा.
दिल्ली समेत भारत का 90% हिस्सा झेलेगा भयानक गर्मी
यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज की एक स्टडी के मुताबिक इस साल भारत का 90 फीसदी हिस्सा भयानक गर्मी झेलने वाला है. इसमें पूरा दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) भी शामिल है. हीटवेव की वजह से यह पूरा इलाका डेंजर जोन में है. यह स्टडी हाल ही में PLOS Climate में प्रकाशित हुई थी. इसमें कहा गया था कि इस हीटवेव की वजह से भारत अपने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल से दूर हो जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत और दुनिया को मिलकर इसे रोकने का प्रयास करना चाहिए. नीतियां बनानी चाहिए. उनपर अमल होना चाहिए. क्योंकि देश में गर्मी की हालत देख रहे हैं लोग. महाराष्ट्र में 13 लोग हीटवेव से मर गए. यह स्टडी क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी इंडेक्स (CVI) पर आधारित है. जो बताता है कि हमारे देश का कौन सा हिस्सा कितनी गर्मी सह सकता है. साथ ही इंडिया हीट इंडेक्स (HI) की भी जांच की गई है.
देश की 80 फीसदी आबादी लगातार हीटवेव के खतरे से जूझते हैं. लेकिन इसे लोग जलवायु परिवर्तन का असर नहीं मानते. इसी वजह से इस पर ध्यान नहीं देते. यही नुकसान की वजह है. अगर तत्काल क्लाइमेट चेंज और हीटवेव को लेकर नीतियां नहीं बनाई गईं, तो दिल्ली जैसे शहरों में लोगों की हालत हीटवेव से खराब हो जाएगी.
In March 2023, the WMO warned of a likely global temperature spike due to the warming El Niño event.
— The Weather Channel India (@weatherindia) April 24, 2023
Now, climate models also predict that the approaching El Niño phase may lead to severe #heatwaves & #droughts across South & Southeast Asia, including India.
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पिछले साल देश के इन इलाकों में रहा सूखा
मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन इलाकों में सामान्य से 20 फीसदी से ज्यादा कमी रही, उनमें मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. सितंबर में बारिश ठीक हो गई थी. नहीं तो ज्यादा सूखे के हालात होते. इस इलाके में जून में सामान्य की तुलना में 92% बारिश हुई. जबकि, जुलाई में 117%, अगस्त में 103% और सितंबर में 108% ज्यादा बारिश हुई.
2022 में 1874 बार 'भारी बारिश', जबकि 296 बार 'बहुत भारी बारिश' हुई. वहीं, 2021 में 1636 बार 'भारी बारिश' और 273 बार 'बहुत भारी बारिश' हुई थी. भारी बारिश तब मानी जाती है, जब 115.6 मिमी से 204.6 मिमी तक पानी बरसता है. और जब 204.5 मिमी से ज्यादा पानी बरसता है तो उसे बहुत भारी बारिश माना जाता है.
क्या है अल नीनो?
ट्रॉपिकल पैसिफिक यानी ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र में समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आने वाले बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं. इस बदलाव की वजह होती है समुद्री सतह के तापमान का सामान्य से अधिक हो जाना. यानी सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होना. इसकी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग भी हो सकती है.
भारत के मौसम पर क्या असर होगा?
अल नीनो का दुनियाभर के मौसम पर बड़ा असर होता है. बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखता है. राहत की बात ये है कि ये अल नीनो या ला नीना हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में आते हैं. अल नीनो में प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी-भूमध्यरेखीय इलाके के सतह का तापमान तेजी से बढ़ता है.
पूर्व दिशा से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर हो जाती है. इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की सतह का गर्म पानी भूमध्य रेखा के साथ-साथ पूर्व की ओर बढ़ता है. इससे बारिश में बदलाव आता है. कम बारिश वाली जगहों पर ज्यादा बारिश होती है. यदि अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय है तो भारत में उस साल कम बारिश होती है. जो इस बार दिख रहा है.
सर्दियां ला नीना में बीतीं, गर्मियां न्यूट्रल
कोलंबिया क्लाइमेट स्कूल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट एंड सोसाइटी के मुताबिक 2020 में शुरू हुआ ला नीना अब फरवरी से अप्रैल 2023 के बीच अल नीनो में बदल रहा है. यानी एन्सो-न्यूट्रल हो रहा है. इसका असर जून से अगस्त के बीच देखने को मिलेगा. क्योंकि प्रशांत महासागर का पश्चिमी हिस्सा गर्म हो रहा है.
अक्षय देवरास कहते हैं कि पश्चिमी प्रशांत महासागर की सतह के नीचे पानी लगातार गर्म हो रहा है. यह तेजी से मध्य प्रशांत की ओर बढ़ रहा है. इसलिए मार्च से मई 2023 के बीच न्यूट्रल फेज 78 फीसदी तक होने की उम्मीद है. यानी भारत के लिए बुरी खबर है. क्योंकि सर्दियों में ला नीना था. जो गर्मियों को एन्सो-न्यूट्रल में बदल रहा है. मॉनसून में सामान्य से 15 फीसदी कम तक बारिश होने की आशंका है. इसमें सुधार हो सकता है, अगर आर्कटिक से पैदा होने वाली हवाएं देर से बारिश करा दें. जैसा- साल 2021-22 में हुआ था.
पिछले साल मॉनसून के बाद हुई बारिश
देश में 36 मौसम संभाग हैं. इनमें से 40% इलाके को कवर करने वाले 12 संभागों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है. वहीं, 43% इलाके को कवर करने वाले 18 संभागों में सामान्य. 6 संभागों में सामान्य से कम बारिश हुई. ये संभाग देश 17% इलाके को कवर करते हैं. इन इलाकों में सामान्य से 20% से 59% तक बारिश कम हुई है.