बेरोजगारी और नौकरी न मिलने की वजह से इंजीनियर ने चोरी का रास्ता अपनाया. यह गिरोह खास तौर पर स्पलेंडर बाइक को निशाना बनाता था और चुराए गए वाहनों को ग्रामीण इलाकों में 10 से 15 हजार रुपए में बेच देता था.