पिछले दिनों वर्ल्ड कप से टीम इंडिया के बाहर होने के बाद बीसीसीआई की इमेज को एक झटका तब लगा, जब टीम की जर्सी से मुख्य प्रायोजक ओप्पो ने अपने हाथ बीच में ही खींच लिए. सूत्र के मुताबिक, ओप्पो को उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं हुआ और प्रायोजन का खर्च कंपनी को भारी पड़ने लगा. चीन की स्मार्टफोन बनाने वाली इस कंपनी ने करीब 1,080 करोड़ देकर पांच साल के लिए प्रायोजन के अधिकार लिए थे.
ओप्पो के साथ 14 घरेलू सीरीज और 20 विदेशी सीरीजों के लिए 5 साल का करार किया गया था, जिसमें चैंपियंस ट्रॉफी, वर्ल्ड कप और टी-20 वर्ल्ड कप शामिल हैं. लेकिन कंपनी को ये सौदा मुफीद नहीं लगा. हालांकि आंकड़े बताते हैं कि 2019 की पहली तिमाही में ओप्पो 7.6 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारतीय बाजार में बनी हुई है, लेकिन पिछले साल के मुकाबले ओप्पो की बिक्री में मामूली बढ़त हुई हैं. कंपनी ने इसी आंकड़ों को देखते हुए फैसला लिया कि अब बीसीसीआई का साथ छोड़ने में ही भलाई है. ओप्पो की बिक्री भले ही न बढ़ी हो, लेकिन भारतीय स्मार्ट फोन बाजार 7 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि इस दौरान पूरी दुनिया में 6 फीसदी की दर से स्मार्ट फोन की बिक्री घटी है.
दो साल पहले ओप्पो ने कहा था ‘भारत में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं है- जीवन का हिस्सा है, एक सभ्यता है या यूं कहें एक धर्म है’ लेकिन अब इसी कंपनी को ये कीमत महंगी पड़ रही है. टीम इंडिया की जर्सी पर बेंगलुरु की एक कंपनी बायजू ने ओप्पो की जगह ले ली है.
‘ओप्पो और बायजू आपस में मोलभाव कर रहे हैं, सीओए को इस बारे में बता दिया गया है. वो आपस में ओनरशिप ट्रांसफर की शर्तों पर बात कर रहे हैं.’ नाम न बताने की शर्त पर बीसीसीआई के एक बड़े अधिकारी ने इंडिया टुडे को ये जानकारी दी.
डील के मुताबिक ओप्पो कंपनी बीसीसीआई को हर मैच के लिए 4.61 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि आईसीसी मुकाबलों के लिए ये रकम 1.56 करोड़ हो जाती थी. बीसीसीआई को माली तौर पर कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि नई कंपनी उतने ही पैसे देगी जितना ओप्पो देती थी, लेकिन इस फैसले से टीम की इमेज को झटका जरूर लगा है.
बीसीसीआई के अधिकारी ने कहा, ‘बोर्ड प्रायोजन के ट्रांसफर की इजाजत देता है, लेकिन इस करार में एक गुप्त क्लॉज है, जिसके तहत व्यावसायिक डील की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती’ .
बीसीसीआई के दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘ओप्पो के इस फैसले से बोर्ड को फायदा ही होगा, क्योंकि प्रायोजक ट्रांसफर करने पर दूसरे आयोजक को 10 फीसदी रकम ज्यादा देनी होगी, अब उन्हें 6 महीने का नोटिस देना होगा और इस बीच वो आपस में तय करेंगे कि आखिर ये 10 फीसदी अतिरिक्त रकम का बोझ कौन उठाएगा.'
(पीटीआई के इनपुट के साथ)