टेस्ट क्रिकेट अपने नए रूप में प्रवेश कर चुका है. 138 सालों से खेले जा रहे क्रिकेट के इस सबसे पुराना प्रारूप में वो बदलाव करना पड़ा जो न केवल ऐतिहासिक है बल्कि जिसके नए प्रतिमान भी गढ़ने की आशा है. इसकी लोकप्रियता निश्चित ही पिछले कुछ दिनों में कम हुई है लेकिन क्रिकेट की समझ रखने वालों में इसकी विश्वसनीयता वैसे ही बरकरार है जैसे ईश्वर को मानने वालों में उनकी आस्था.
आज क्रिकेट तीन फॉर्मेट में खेली जा रही है. प्रत्येक फॉर्मेट का इसके चाहने वालों के बीच एक अलग महत्व है. पिछले कुछ सालों में इसका सबसे छोटा प्रारूप टी20 बहुत लोकप्रिय हुआ जबकि 1970 में कैरी पैकर के वर्ल्ड सीरीज के आगमन के बाद से ही वनडे क्रिकेट एक अलग ही महत्व रखता है. वनडे क्रिकेट की शुरुआत से
पहले टेस्ट और फर्स्ट क्लास मैच ही खेले जाते थे . उस दौर ने कई लोकप्रिय क्रिकेटर्स को देखा, जिन्हें आज भी याद किया जाता है. सर डॉन ब्रैडमैन, सर वाली हेमंड, नारी कांट्रैक्टर, वीनू मांकड़, रणजी सिंह, दिलीप सिंह सरीखे क्रिकेटर उस दौर की पैदाइश थे.
वनडे के आगमन के बाद ये दोनों फॉर्मेट कदम से कदम मिला कर चलने लगे. टेस्ट क्रिकेट तब भी अपनी वरीयता बरकरार रखने में सफल रहा. लेकिन जब से फटाफट क्रिकेट यानी टी20 का ग्लैमर इससे जुड़ा है तब से
टेस्ट का आकर्षण इसे देखने वालों के बीच काफी हद तक कम हो गया है.
खिलाड़ियों के बीच इसके ग्लैमर या फिर आकर्षण में कोई कमी नहीं आई है लेकिन कोई भी खेल सिर्फ खिलाड़ियों के खेलने से सफल नहीं होता. उसकी लोकप्रियता को मापने के लिए दर्शकों की संख्या और टीवी पर
टीआरपी की जरूरत होती है क्योंकि खेल की दुनिया में टीमों और खिलाड़ियों को उनके प्रशंसकों की ही तालियों से बल मिलता है.
टीवी दर्शकों से हुआ टेस्ट क्रिकेट का बंटाधार लोगों के जेहन में टेस्ट क्रिकेट का मतलब लगातार पांच दिनों तक ठुक-ठुक करती क्रिकेट से है. आज का युवा जो कम समय की वजह से टी20 क्रिकेट की ओर आकर्षित हुआ है वो टेस्ट क्रिकेट को बैठ कर टीवी पर या फिर मैदान में जाकर नहीं देखना चाहता है. आज खेल की दुनिया को मार्केट लीड करता है. कोई भी क्रिकेट सीरीज होती है तो उसका टीवी पर एक प्रसारणकर्ता निर्धारित होता है. उसे (प्रसारणकर्ता को) इसका अधिकार हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. प्रसारणकर्ता को टीवी पर लाइव क्रिकेट देखने वालों की तादाद से मतलब होता है. यानी टीआरपी से उसका सीधा सरोकार होता है. क्रिकेट के बिजनेस में लगे प्रसारणकर्ता नुकसान नहीं उठाना चाहते. क्रिकेट की नियामक संस्था के पास यह रिपोर्ट है कि टी20 और वनडे क्रिकेट के लिए तो आसानी से प्रसारणकर्ता मिल जाते हैं लेकिन ऐसा ही टेस्ट क्रिकेट के लिए नहीं होता क्योंकि इसकी टीआरपी बहुत नहीं होती. जब दर्शक ही नहीं मिलेंगे तो उसका सीधा असर प्रसारण के दौरान दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के रेट पर पड़ना तय है. और ये सबसे बड़ी चिंता का विषय है.
2009 में की गई डे नाइट टेस्ट की परिकल्पना क्रिकेट की सर्वोच्च नियामक संस्था- एमसीसी ने 2009 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि एशेज जैसी आइकोनिक सीरीज को छोड़ दिया जाए तो दुनिया भर में टेस्ट क्रिकेट को देखने वालों की संख्या में खतरनाक स्तर पर कमी आई है. इससे तो क्रिकेट का यह प्रारूप मर जाएगा. इसके बाद ही एमसीसी ने दिन-रात के टेस्ट क्रिकेट की परिकल्पना को दुनिया के सामने रखा.
एमसीसी का यह कहना बिल्कुल सही है. क्रिकेट के गढ़ों में से एक भारत में आज हालात यह है कि भारतीय टीम का सामना विश्व की सर्वोच्च वरीयता प्राप्त टेस्ट टीम से हो रहा है और स्टेडियम लगभग खाली रह जाते हैं. बीते पांच सालों की बात करें तो 2013 में जब सचिन तेंदुलकर ने संन्यास लिया था, तब उनके करियर के आखिरी टेस्ट मैच के दौरान भारत में कोई स्टेडियम पूरी तरह भरा था. उससे पहले और उसके बाद के आंकड़े निराशाजनक हैं.
...और हो गया डे नाइट टेस्ट क्रिकेट का जन्म टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता के गिरते ग्राफ को ध्यान में रखकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने गुलाबी रंग की गेंद के साथ छह साल तक दुनिया भर में परीक्षण करने के बाद आखिरकार 27 नवंबर से दुनिया के सबसे पुराने क्रिकेट स्टेडियमों में से एक एडिलेड ओवल में पहला आधिकारिक दिन-रात का टेस्ट कराने का फैसला किया. यह एक ऐतिहासिक घटना थी और पूरी दुनिया इसे टेस्ट क्रिकेट के हक में सकारात्मक बदलाव के रूप में देख रही है.
ईसीसी ने अपना पक्ष साफ करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक मैच टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ाने की योजना का हिस्सा है. आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेविड रिचर्डसन ने कहा कि दिन-रात के टेस्ट मैच से ऐसे देशों में क्रिकेट के इस प्रारूप की लोकप्रियता में इजाफा लाने में मदद मिलेगी, जहां टेस्ट देखने स्टेडियम में बहुत कम संख्या में दर्शक पहुंचते हैं.
रिचर्डसन ने कहा, ‘वास्तविकता यही है कि टेस्ट क्रिकेट कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है, जैसे कुछ देशों में दर्शकों की संख्या में कमी. इसके अलावा टेस्ट क्रिकेट को सीमित ओवरों वाले प्रारूप से भी काफी चुनौती मिल रही है. या तो हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और टेस्ट क्रिकेट के प्रति रुचि खत्म हो जाने दें या तो बिल्कुल नई रचनात्मकता के साथ सर पर खड़ी इस समस्या का समाधान निकालें.’
डे नाइट टेस्ट के पहले दिन ही गिरे 12 विकेट ऐसा नहीं है कि दिन-रात के टेस्ट मैचों में दिक्कतें सामने नहीं आएंगी. हाल के दिनों में क्रिकेट जगत में इन मुश्किलों को लेकर अच्छी खासी बहस चल रही थी. इसका मुख्य कारण यह है कि शाम के वक्त बल्लेबाजों को गेंद को देखने में दिक्कत हो सकती है और फिर रात के दौरान बल्लेबाजों को अधिक स्विंग का सामना करना होगा. आईसीसी ने हालांकि इन तमाम बातों को नजरअंदाज करते हुए दिन-रात के टेस्ट को प्रोमोट करने का फैसला किया. एडिलेड के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच खेली जा रही इस पहली डे नाइट टेस्ट क्रिकेट के पहले दिन 12 बल्लेबाज पवेलियन लौट चुके हैं. दुनिया की तमाम नजरें इस मैच के आगे के दिनों पर टिकी हैं. नतीजा भले जो भी हो, क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत हो चुकी है.
टेस्ट क्रिकेट में एक और बदलाव की दरकार पिछले कुछ सालों से टेस्ट क्रिकेट नतीजा देने लगा है. इसमें पहले की अपेक्षा ड्रॉ के नतीजे कम ही देखने को मिलते हैं. वनडे और खासकर टी20 क्रिकेट का प्रभाव यह है कि कई टेस्ट नतीजे तो अब महज तीन दिनों के भीतर ही आ जाते हैं. क्रिकेट के कई दिग्गज भी इस फॉर्मेट को चार दिनों का बनाने की मांग कर रहे हैं. तो यकीनन अगले कुछ सालों में इसकी अवधि छोटी की जा सकती है. चार दिनों के भीतर कप्तान नतीजा देने की कोशिश करेंगे तो बल्लेबाज रन तेजी से बनाएंगे और वनडे मैचों की तरह यहां कम गेंदों पर रनों का अंबार लगेगा यानी चौके छक्के की बरसात होगी. आज भले ही डे नाइट टेस्ट मैच से वो उपलब्धि हासिल न हो लेकिन इस चार दिन के मैच से टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की रुचि जरूर बढ़ेगी और बहुत संभव है कि यह इसकी लोकप्रियता के ग्राफ को ऊपर करने में कामयाब रहेगा.