
श्रीलंका दौरे पर गई भारतीय क्रिकेट टीम के सफर का अंत अच्छा नहीं रहा और टी-20 सीरीज़ में भारत को हार का सामना करना पड़ा. श्रीलंका के खिलाफ खेली गई वनडे और टी-20 सीरीज़ अपने आप में ऐतिहासिक रही, जहां ये पहली बार हुआ कि दो भारतीय टीमें एक साथ दो टूर कर रही हैं और इस सीरीज़ में कई युवाओं ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला.
इसी सीरीज़ में डेब्यू करने वाले खिलाड़ी देवदत्त पडिक्कल भी हैं, जिनके डेब्यू को लेकर सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई है. ये पूरी बहस क्या है, इसको लेकर किस तरह के तर्क रखे जा रहे हैं. पूरे विषय को जानिए...
देवदत्त पडिक्कल का डेब्यू और सोशल मीडिया की बहस...
श्रीलंका दौरे पर टी-20 सीरीज़ खेल रही भारतीय टीम को उस वक्त बड़ा झटका लगा था, जब टीम के ऑलराउंडर क्रुणाल पांड्या कोरोना पॉजिटिव पाए गए. फिर क्रुणाल के संपर्क में आए करीब 8 अन्य खिलाड़ियों को भी क्वारनटीन करना पड़ा. इसकी वजह से टीम स्क्वायड में मौजूद अन्य युवा खिलाड़ियों को प्लेइंग इलेवन में जगह मिली.
28 जुलाई को खेले गए दूसरे टी-20 में डेब्यू करने वालों में देवदत्त पडिक्कल भी शामिल रहे. अपने मैच के डेब्यू वाले दिन देवदत्त की उम्र 21 साल 21 दिन थी. यानी वो सबसे कम उम्र में डेब्यू करने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल रहे. लेकिन खास बात ये रही कि वह सन 2000 या उसके बाद पैदा होने वाले ऐसे पहले पुरुष क्रिकेटर बने, जो टीम इंडिया के लिए खेल रहे हैं.
अब बहस का सबसे बड़ा मुद्दा यही बना. क्योंकि जब देवदत्त पडिक्कल के डेब्यू की खबर सामने आई तो सोशल मीडिया पर क्रिकेट कॉमेंटेटर और क्रिकेट के जानकारों ने लिखा कि देवदत्त पडिक्कल पहले मिलेनियल बने हैं, जिन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिला है.
इन दावों के जवाब में सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे गलत दावा करार दिया और भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा शेफाली वर्मा, जेमिमा रोड्रिग्स को ऐसा करने वाली शुरुआती भारतीय क्रिकेटरों में शामिल किया. शेफाली वर्मा ने हाल ही में 17 साल की उम्र में भारतीय टीम में डेब्यू किया, शेफाली का जन्म 2004 में हुआ है. जबकि जेमिमा का जन्म साल 2000 में हुआ था. इन दोनों के अलावा भी राधा यादव, ऋचा घोष ऐसी खिलाड़ी हैं, जिनका जन्म 2000 के बाद ही हुआ.
महिला क्रिकेट बनाम पुरुष क्रिकेट...
ये मुद्दा सोशल मीडिया पर श्रीलंका के खिलाफ दूसरे टी-20 से ही छाया हुआ है. महिला क्रिकेट टीम ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से बड़े स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है, ऐसे में नई जेनरेशन में उनके प्रशंसकों की संख्या बढ़ी है. यही वजह है कि लोग बड़े स्तर पर महिला खिलाड़ियों, सीरीज़, मैच, इवेंट्स को फॉलो कर रहे हैं.
ऐसे में जब महिला क्रिकेट को किसी भी तरह के दोयम दर्जा दिए जाने की झलक भी दिखी, तब लोगों ने इसे सही नहीं माना और इस डिबेट की शुरुआत हुई. हालांकि, बाद में कई कॉमेंट करने वाले लोगों ने अपनी गलती में सुधार भी किया और देवदत्त पडिक्कल के फर्स्ट मिलेनियल वाले दावे को ‘पहले पुरुष क्रिकेटर’ लिखा.
बहस पर क्या कहते हैं क्रिकेट के एक्सपर्ट?
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई की किताब Democracy's XI: The Great Indian Cricket Story के अनुवादक और क्रिकेट ब्लॉगर केतन का इस पूरे विवाद पर कहना है, ‘समस्या यही है कि जब हम क्रिकेट टीम कहते हैं तो पुरुषों की टीम ही ख़्याल में आती है. महिला टीम के लिए हमें महिला क्रिकेट टीम लिखना-बोलना पड़ता है. कभी हमने ये नहीं लिखा कि भारतीय पुरुष टीम के कप्तान विराट कोहली.’
इस बड़ी बहस के मसले पर केतन ने आगे कहा, ‘हमारा परसेप्शन ही ऐसा बना है कि क्रिकेट प्राइमरी तौर पर पुरुष टीमों का खेल है, लड़कियां तो बस आ गईं खेलने. जबकि क्रिकेट का पहला वर्ल्ड कप महिलाओं का हुआ था. पुरुषों का बाद में. दिमाग़ में बैठा नहीं है अभी. इसीलिए कहा गया कि पडिक्कल पहले क्रिकेटर हैं, 21वीं सदी में पैदा होकर टीम में आने वाले. लेकिन बदलाव हो रहा है, आगे भी होगा.’
किताब ‘Sachin and Azhar at Cape Town’ के लेखक अभिषेक मुखर्जी की राय भी कुछ ऐसी ही है. इस बहस पर अभिषेक ने हमें बताया कि पडिक्कल पहले भारतीय क्रिकेटर नहीं हैं, जो मिलेनियल होकर टीम इंडिया का हिस्सा बने हैं. कई महिला खिलाड़ी उनसे पहले ऐसा कर चुकी हैं, ये एक फैक्ट है जिसे कोई झुठला नहीं सकता है.
अहम विषयों पर महिला खिलाड़ियों को पहले स्थान पर तवज्जो ना देने के मसले पर अभिषेक ने कहा कि अभी चीज़ें बदल रही हैं और ये कुछ वक्त लेगा. लेकिन आज से 10 साल पहले जो स्थिति थी, अब उससे काफी बेहतर है. अभी लोग टोकना शुरू कर चुके हैं, लेकिन शायद 5 साल बाद वो वक्त होगा जब किसी को टोकने की नौबत नहीं आएगी.