क्रिकेट वर्ल्ड कप के लिए टीम इंडिया के 30 संभावित खिलाड़ियों का चयन कर दिया गया . क्रिकेट प्रशंसकों की उम्मीदों से उलट युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, हरभजन सिंह और जहीर खान को इस सूची में जगह नहीं मिली. हर किसी के मन में एक ही सवाल है कि आखिरकार इन सीनियर खिलाड़ियों से साथ ऐसा क्यों हुआ. हम आपको बताते हैं, इसकी वजह...
1. टीम में चुने जाने का पहला पैमाना प्रदर्शन होता है. पिछले दो सालों में सहवाग ने 13 वनडे मैच खेले हैं जिसमें उनका औसत 20.23 रहा. वहीं, गंभीर ने 30 वनडे मुकाबले में 23.58 की औसत से रन बनाए. किसी भी ओपनर के लिए ये औसत बेहद ही साधारण हैं. विजय हजारे टूर्नामेंट में दोनों खिलाड़ियों ने कुल 6 मैच खेले जिसमें दोनों ने 1-1 अर्धशतक जड़े. इसी टूर्नामेंट में हरभजन सिंह ने पंजाब की कप्तानी की और 6 मैचों में सिर्फ 7 विकेट झटक पाए. युवराज सिंह ने भी बल्ले से कोई खास प्रदर्शन नहीं किया, पांच मैचों में 168 रन. जहीर तो इसी साल मई में खेले गए आईपीएल में आखिरी बार मैदान पर उतरे थे. फिटनेस की फांस में ऐसे फंसे कि मुंबई की रणजी टीम में भी जगह नहीं मिली.
2. इस बार वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के मैदानों पर खेला जाएगा. न्यूजीलैंड तो नहीं पर ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैदान दुनिया की अन्य मैदान की तुलना में ज्यादा बड़े हैं. आंकड़े यही बताते हैं कि इन मैदानों पर बाउंड्री से ज्यादा खेल डबल और ट्रिपल का है. यानी क्षेत्ररक्षण खेल का एक अहम पहलू बनकर उभरता है. ऐसे में इन पांच खिलाड़ियों की उम्र और फिटनेस उनके चयन के आड़े आ गई. सहवाग, गंभीर, जहीर और हरभजन युवाओं की तुलना में कम फुर्तीले हैं. युवराज की फील्डिंग पर कोई सवाल नहीं उठता, पर बीमारी ने उन्हें भी धीमा कर दिया है. ऐसे में धोनी खेल के इस अहम पक्ष को नजर अंदाज नहीं कर सकते. सच यही है कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था.
3. क्रिकेट उन चंद खेलों में से है, जिसमें कप्तान की भूमिका अहम होती है. चाहे वह मैदान पर फैसला लेने की बात हो या फिर टीम का चयन. 2011-12 के ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद ही धोनी ने इशारों में साफ कर दिया था कि भविष्य की टीम इंडिया में सीनियर खिलाड़ियों के लिए जगह नहीं है. धोनी की इस चाहत को बोर्ड का समर्थन भी मिला, धीरे-धीरे सीनियर खिलाड़ी संन्यास लेते गए और युवा खिलाड़ी टीम का हिस्सा बनते गए. भारतीय टीम को तो पिछले दो-तीन सालों में इन खिलाड़ियों के बिना खेलने की आदत सी हो गई है. हमनें इनके बिना ही आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी जीता. घरेलू सीरीजों में जीत की लय बरकरार रखी. संकेत साफ थे, इसके बावजूद इन पांच खिलाड़ियों के टीम में जगह बनाने की उम्मीद करना बेमानी सा लगता है.
4. अगर प्रशंसकों का दिल रखने के लिए क्रिकेट बोर्ड इन पांच खिलाड़ियों को 30 संभावित खिलाड़ियों में शामिल भी कर लेता तो आगे क्या. आप अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए कि क्या ये खिलाड़ी अंतिम 15 में जगह बनाने में कामयाब हो पाते. जवाब आप जानते हैं, बिल्कुल नहीं. ऐसे में युवाओं को मौका क्यों न दिया जाए. आखिरकार भविष्य तो वही हैं और उन्हें इस वक्त प्रोत्साहित नहीं किया गया तो शायद कहीं देर ना हो जाए. आज की तारीख में सफलता का एक मात्र मंत्र है... Catch Them Young. चाहे वह कॉरपोरेट दुनिया हो या फिर क्रिकेट का मैदान. जिसने युवाओं पर भरोसा दिखाया, सफलता उसे ही मिली.
5. बदलाव का दौर ऐसा ही होता है. अब आपने घर को ही ले लीजिए. जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, आपके फैसलों को घर के वरिष्ठ सदस्यों को भी मानना पड़ता है. टीम इंडिया भी इसी फेज से गुजर रही है. एक वक्त इन खिलाड़ियों का दौर था, इन्होंने ही हमें वर्ल्ड चैंपियन बनाया. इनका सिक्का बोलता था, पर अब परिस्थितियां अलग हैं. बोर्ड ने भी मान लिया है कि अब युवा चेहरों पर ही सारा दारोमदार है. वर्ल्ड कप क्रिकेट का आखिरी टूर्नामेंट तो है नहीं, इसके बाद भी खेल जारी रहेगा.
इन दलीलों के जरिए हम ये नहीं बताना चाहते कि आज के युवा खिलाड़ी वीरू, गंभीर, युवी, भज्जी और जहीर से बेहतर हैं. हकीकत यही है कि ये ना होते तो हम 2011 में वर्ल्ड चैंपियन शायद ही बन पाते. रिकॉर्ड भी इस बात का समर्थन करते हैं. पिछले वर्ल्ड कप में इन खिलाड़ियों ने कुल 40.38 की औसत से 1171 रन बनाए थे जिसमें दो सेंचुरी शामिल हैं. इन खिलाड़ियों ने कुल 14 कैच पकड़े और 45 विकेट लिए. पर इतिहास की मधुर यादों के लिए भविष्य कुर्बान नहीं कर सकते.