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पूर्व भारतीय टेस्ट क्रिकेटर हेमंत कानितकर का निधन

महाराष्ट्र क्रिकेट के पूर्व विकेटकीपर हेमंत कानितकर का बीती रात उनके निवास पर निधन हो गया. अमरावती (महाराष्ट्र) में जन्में कानितकर 72 साल के थे. महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अनुसार उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनके दो पुत्र पूर्व क्रिकेटर हृषिकेश और आदित्य कानितकर हैं.

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महाराष्ट्र क्रिकेट के पूर्व विकेटकीपर हेमंत कानितकर का बीती रात उनके निवास पर निधन हो गया. अमरावती (महाराष्ट्र) में जन्में कानितकर 72 साल के थे. महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अनुसार उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनके दो पुत्र पूर्व क्रिकेटर हृषिकेश और आदित्य कानितकर हैं.

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हेमंत कानितकर लगभग 15 सालों तक प्रथम क्षेणी क्रिकेट खेले. इस दौरान क्लाइव लॉयड के नेतृत्व में 1974-75 में भारत के दौरे पर आई वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ वो दो टेस्ट खेले. बतौर बल्लेबाज खेले गए इन दो टेस्ट मैचों के अलावा उन्हें टीम इंडिया के कैप को पहनने का मौका दोबारा नहीं मिला.

1963 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण करने वाले विकेटकीपर कानितकर बहुत ही बढ़िया बल्लेबाज थे लेकिन फारुख इंजीनियर, बुधि कुंदरन और इंद्रजीत सिंह जैसे दिग्गज क्रिकेटरों के समकालीन होने की वजह से राष्ट्रीय टीम में अपनी नियमित जगह नहीं बना सके. हालांकि उन्होंने अपने टेस्ट करियर की बेहतरीन शुरुआत की थी.

हेमंत कानितकर ने विवियन रिचर्ड्स और गॉर्डन ग्रीनीज के साथ अपने टेस्ट करियर का आगाज किया था. इतना ही नहीं इस टेस्ट में टीम इंडिया की ओर से पचासा जड़ने वाले एकमात्र खिलाड़ी हेमंत ही थे. वेस्टइंडीज ने इस मैच में भारत को 267 रनों से हरा दिया था. वेस्टइंडीज के खिलाफ खेली गई इस पहली टेस्ट पारी में उन्होंने शानदार 65 रन बनाए लेकिन अगली तीन पारियों में वो 18, 8 और 20 रन ही बना सके. इसके बाद उन्हें टेस्ट क्रिकेट खेलने का मौका दोबारा नहीं मिल सका.

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कानितकर को ‘लिटिल मास्टर’ का सलाम
सुनील गावस्कर ने ‘सनी डेज़’ में कानितकर की इस पहली टेस्ट पारी के बारे में लिखा है. ‘कानितकर अपना पहला टेस्ट खेल रहा था और जो पहली गेंद उसने खेली वो एंडी रॉबर्ट्स ने फेंकी. कानितकर ने डिफेंसिव खेला और रॉबर्ट्स की यह गेंद दनदनाती हुई उनकी उंगलियों पर जा लगी. में आज तक यह नहीं समझ सका कि उसने यह चोट कैसे बरदास्त की. मैं दूसरे छोर पर खड़ा था और आज भी ये बात मुझे परेशान करती है. वो अपना पहला टेस्ट बहुत बहादुरी से खेला. जब वो खेलने आया तो उसका सीना चोटों के निशान से काला नीला पड़ गया... जब 11 चौके की मदद से वो 65 रनों की पारी खेलकर वह पवेलियन लौट रहा था तो पहले की ही तरह उसका चेहरा भावशून्य था.’

रिकॉर्ड तोड़ पारी के साथ प्रथम श्रेणी क्रिकेट में चमके
बिल्डिंग कॉनट्रैक्टर के बेटे कानितकर ने अपने 21वें जन्मदिन से केवल तीन दिन पहले प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण के साथ ही अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी. पहले ही मैच में उन्होंने सौराष्ट्र के खिलाफ नाबाद 151 रन ठोक डाले और इस प्रकार महाराष्ट्र के लिए तब सिर्फ दूसरे ऐसे क्रिकेटर बन गए जिसने पहले ही मैच में शतक लगाया हो. तब कानितकर से पहले यह कारनामा केवल खंदु रांगनेकर कर चुके थे. इतना ही नहीं 151 रनों की यह पारी महाराष्ट्र के लिए पदार्पण मैच में खेली गई तीसरी बड़ी पारी भी बन गई.

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कानितकर कितने अच्छे बल्लेबाज थे इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि 1970-71 में 98.14 की औसत से 687 रन और 1973-74 में 69.88 की औसत से 629 रन बनाकर वो रणजी ट्रॉफी सीजन के टॉप स्कोरर थे. कानितकर को 1973 में ‘इंडियन क्रिकेट क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ घोषित किया गया.

कानितकर 1978 तक महाराष्ट्र के लिए खेलते रहे. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कानितकर ने 42.79 की औसत से कुल 5007 रन बनाए. महाराष्ट्र के लिए रणजी ट्रॉफी में उन्होंने 43.75 की औसत से 3632 रन जोड़े. 1970-71 में राजस्थान के खिलाफ कानितकर ने 250 रनों की पारी खेली जो उनकी सर्वश्रेष्ठ प्रथम श्रेणी पारी रही.

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