कानितकर का सबसे यादगार प्रदर्शन था 1998 में भारत पाकिस्तान के बीच ढाका में सिल्वर जुबिली इंडीपेंडेंस कप के बेस्ट ऑफ थ्री फाइनल्स के आखिरी मैच में, खराब रोशनी के चलते दोनों पारियों से 2-2 ओवर कम कर दिए गए थे.
गांगुली और रॉबिन ने जमाया रंग
पाकिस्तान ने पहले बैटिंग करते हुए सईद अनवर और एजाज अहमद के शतकों की मदद से निर्धारित 48 ओवरों में पांच विकेट के नुकसान पर 314 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया. जवाब में भारत की तरफ से सचिन और सौरव गांगुली की जोड़ी ने पहले विकेट के लिए 71 रनों की साझेदारी करके भारत की उम्मीदों को जगाया लेकिन वो रॉबिन सिंह और सौरव गांगुली थे जिन्होंने दूसरे विकेट के लिए 179 रन जोड़कर भारत को मैच जिताऊ हालत में ला खड़ा किया. लेकिन रॉबिन सिंह के आउट होने के बाद लगातार अंतराल में विकेट गिरने से मैच भारत के हाथ से निकलता दिख रहा था. सात विकेट गंवा चुके भारत को जीत के लिए आखिरी ओवर में 9 रनों की जरूरत थी गेंदबाजी का जिम्मा खतरनाक स्पिनर सकलैन मुश्ताक के पास था.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कम ही खेले कानितकर
इसके बाद रिषिकेश कानितकर ने मुश्ताक की गेंद पर चौका मारकर भारत को जीत दिलाई थी. हालांकि कानितकर का इंटरनेशनल करियर बहुत लंबा नहीं चला उन्होंने भारत के लिए सिर्फ दो टेस्ट और 34 वन-डे ही खेले लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में कानितकर ने विभिन्न टीमों के लिए लंबे समय तक क्रिकेट खेली.
रणजी के सफलतम खिला़ड़ियों में शुमार हैं कानितकर
कानितकर ने अपने कोचिंग करियर पर ज्यादा ध्यान देने के लिए हर तरह की क्रिकेट से संंन्यास ले लिया. क्षेत्ररक्षण में आ रही समस्या को उन्होंने इस निर्णय का प्रमुख कारण बताया. पुणे में जन्मे कानितकर ने अंतिम बार दिसंबर 2013 में राजस्थान के तरफ से खेला था. भारतीय टीम में साल 2000 में अपना स्थान गंवाने के बाद कानितकर घरेलू क्रिकेट में एक शीर्ष खिलाड़ी के रूप में उभरे और आज वह रणजी ट्राफी में 8000 से अधिक रन बनाने वाले तीन खिलाड़ियों में से एक हैं. कानितकर ने रणजी ट्रॉफी में 28 शतक बनाए हैं. रिटायर होने के बाद अब कानितकर का ध्यान कोचिंग पर है. उन्होंने हाल ही में बीसीसीआई के अंडर 19 खिलाडि़यों के लिए पूर्वी क्षेत्र के स्थानीय शिविर का संचालन किया था.